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'ईश्वर की मार' मानकर पर्यावरण परिवर्तन से गरीब होतीं महिलाएं
21-Jan-2022 2:17 PM
'ईश्वर की मार' मानकर पर्यावरण परिवर्तन से गरीब होतीं महिलाएं

दक्षिण एशिया में बढ़ता तापमान और भारी बारिश के कारण महिलाओं पर सबसे ज्यादा मार पड़ रही है. ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण घर से काम करने वाली महिलाओं की आय कम होती जा रही है.

  (dw.com) 

एक अध्ययन के मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग का दक्षिण एशिया की गरीब महिलाओं की आय पर सीधा असर हो रहा है. तापमान और बारिश बढ़ने के कारण घर से काम करने वाली इन महिलाओं की आय में कमी देखी गई है क्योंकि उनके काम के घंटे कम हो रहे हैं.

घर से काम करने वाली महिलाओं के संगठन होमनेट साउथ एशिया ने भारत, नेपाल और बांग्लादेश की 202 महिलाओं का एक सर्वे करने के बाद एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है. यह रिपोर्ट बताती है कि ये महिलाएं अब कम काम कर पा रही हैं जिस कारण उनकी कमाई भी कम हो गई है.

दक्षिण एशिया में जितनी कामगार महिलाएं हैं उनका करीब एक चौथाई हिस्सा घर से काम करने वाली महिलाओं का है. पुरुषों के मुकाबले यह संख्या कहीं ज्यादा है क्योंकि सिर्फ 6 प्रतिशत पुरुष ही घर से काम करते हैं. होमनेट का कहना है कि घर से काम करने वाली महिलाओं का यह समूह सबसे कम आय वाले समूहों में से है और सबसे कमजोर तबका है.

रिपोर्ट के मुताबिक तापमान बढ़ने का असर महिलाओं की उत्पादकता पर हुआ है. अधिक गर्मी के कारण ये महिलाएं घर में ज्यादा देर काम नहीं कर पा रही हैं. रिपोर्ट कहती है कि ये महिलाएं अक्सर खाना या कपड़े आदि बनाने का काम करती हैं और इनकी उत्पादकता में 30 प्रतिशत तक की कमी देखी गई है.

पहले से ही गरीबी की मार
रिपोर्ट में नेपाल की एक कपड़ा सिलने वाली महिला गोमा दर्जी की कहानी बताई गई है. गोमा दर्जी कहती हैं, "हमारा घर पूरी तरह पक्का नहीं है. छत टीन की है जो गर्मी में इतनी गर्म हो जाती है कि दोपहर में काम करना मुश्किल हो जाता है. अगर पंखा चलाऊं तो बिजली का बिल ज्यादा आता है, जो मैं दे नहीं सकती.”

कुछ ऐसी ही कहानी भारत की एक रेहड़ी लगाने वाली महिला की है. ममताबेन नाम की इस महिला की आय गर्मी और बारिश के कारण कम हो गई है क्योंकि वह पहले से कम देर रेहड़ी लगा पा रही है. ममताबेन ने बताया, "गर्मी इतनी ज्यादा है कि जो भी खाना बनाते हैं अगर वो उसी दिन ना बिके तो खराब हो जाता है. और अब किसी भी मौसम में बरसात हो जाती है, साल में कभी भी बारिश हो जाती है. जब बारिश होती है तो लोग हमारी रेहड़ी पर नहीं आते. खाना नहीं बिकता तो बहुत नुकसान होता है.”

घर से काम करने वाली इन महिलाओं में बड़ा हिस्सा शहरी झुग्गी-बस्तियों में रहने वालों का है. ये गरीब महिलाएं पहले से ही बुरी आर्थिक स्थिति में जी रही हैं और आय घटने का उनके जीवन स्तर पर कई गुना बुरा असर होता है. रिपोर्ट कहती है कि इन महिलाओं की औसत आय 1.90 डॉलर यानी लगभग 140 रुपये रोजाना के औसत से कहीं काफी कम है.

पिछले एक दशक में दक्षिण एशिया में मौसम में बड़े परिवर्तन देखने को मिले हैं. एकाएक मौसम का बदल जाना आम हो गया. सूखा, बाढ़, अत्याधिक गर्मी और सर्दी जैसी आपदाओं की पुनरावृत्ति बढ़ी है. होमनेट के मुताबिक सर्वे में शामिल दो तिहाई लोग मानते हैं कि यह सब ईश्वर कर रहा है.

जागरूकता की कमी
लोगों में जागरूकता की कमी है और पर्यावरण परिवर्तन से निपटने के लिए जरूरी उपायों की जानकारी ना के बराबर है. रिपोर्ट के मुताबिक इस कारण अधिकतर महिलाएं ऐसे कदम उठा रही हैं जो मदद करने के बजाय नुकसानदायक साबित होते हैं. जैसे कि आय घटने पर ये महिलाएं काम बदल लेती हैं या फिर घर बदल लेती हैं.

रिपोर्ट की मुख्य शोधकर्ता धर्मिष्ठा चौहान ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया कि ऐसी महिलाएं अंतरराष्ट्रीय सप्लाई चेन का हिस्सा हैं, इसलिए जरूरी है कि बड़ी कंपनियां इन महिलाओं की मदद के लिए निवेश करें. वह कहती हैं, "इन महिलाओं को कौशल विकास और पर्यावरण परिवर्तन से लड़ने में सक्षम बनाने के लिए मदद की जरूरत है.”

चौहान कहती हैं, "पर्यावरण परिवर्तन को ये महिलाएं भारी बारिश वाले ज्यादा दिन या गर्मी में बढ़ोतरी आदि से पहचानती हैं. लेकिन ज्यादातर महिलाएं मानती हैं कि पर्यावरण परिवर्तन के बारे में वे कुछ भी नहीं कर सकतीं.”

होमनेट ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि महिलाओं को गर्मी से बचाने वाली सामग्री से बने ऐसे घर मिलने चाहिए जिनमें ऊर्जा की कम खपत होती है. इसके अलावा उन्हें पीने के पानी की बेहतर सुविधा और अपना घर ठीक से बनाने के लिए आर्थिक मदद की भी जरूरत बताई गई है.

वीके/एए (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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