विचार / लेख
-रमेश अनुपम
27 मार्च 1966 संडे के अंग्रेजी दंडकारण्य समाचार पत्र का बैनर न्यूज है..
Pravir Killed
पूरा न्यूज इस तरह है :
The Maharaja of Bastar Shri Pravir Chandra Bhanjdeo is dead. He dead Police bullets at the palace last night. News of his death was known officially only this noon . His body was found in his drawing room amongst some adivasis who also were lying dead. The commissioner who is here, with D. I.G The Collecter and other officers entered the palace when the fact that Pravir was dead was confirmed Post mortem over his dead body was done in the afternoon today in the Palace.
उसी दिन अंग्रेजी दंडकारण्य समाचार पत्र में एक और समाचार भी प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया गया। वह समाचार था कमिश्नर वीरभद्र सिंह का इस गोलीकांड के संबंध में दिया गया आधिकारिक बयान।
इसे भी मैं यहां दे रहा हूं ताकि सनद रहे और महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की हत्या को बेहद बारीकी के साथ समझा जा सके।
कमिश्नर के इस बयान के साथ ही एक छोटा सा समाचार और भी प्रकाशित है, जिसका शीर्षक तथा समाचार दिलचस्प और थोड़ा चौंकाने वाला है :
'दंडकारण्य समाचार' बस्तर से प्रकाशित एकमात्र समाचार पत्र था जो अंग्रेजी और हिंदी में एक साथ प्रकाशित हो रहा था। च्दंडकारण्य समाचार’ एक निष्पक्ष समाचार पत्र माना जाता था।
'दंडकारण्य समाचार’ पत्र में प्रकाशित इन समाचारों के अध्ययन से बहुत सारे निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।
राजमहल में हुए 25 मार्च के गोलीकांड के विषय में भी इससे बहुत सारी सच्चाई निकल कर सामने आती है। तत्कालीन सरकार और पुलिस, प्रशासन की हकीकत भी इससे बयां हो जाती है।
राजमहल में हुए गोलीकांड और महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की नृशंस हत्या के बारे में भी कुछ गोपन-अगोपन तथ्यों का भी खुलासा होता है।
अंग्रेजी में प्रकाशित समाचार से यह अवगत होता है कि राजमहल में हुए गोलीकांड में महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव मारे गए थे।
अखबार का शीर्षक ही है..
Pravir Killed
उपर्युक्त समाचार के अनुसार उनकी डेड बॉडी ड्राइंग रूम में पाई गई थी।
साधारण बुद्धि से भी यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि गोलीकांड के समय महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव अपने ड्रॉइंग रूम में बैठे रहे होंगे।
बाहर आदिवासियों के लावा लश्कर के साथ तीर धनुष या बंदूक लेकर वे नहीं खड़े हुए थे। तब क्या पुलिसवालों ने उनके ड्रॉइंग रूम के भीतर घुसकर उन्हें गोली मारी थी ?
एक निहत्थे महाराजा को जिनके पास उस समय कोई हथियार भी नहीं रहा होगा पुलिस चाहती तो गिरफ्तार भी कर सकती थी।
कहां तीर धनुष और कहां बंदूक ?
तो मामला कुछ और था।
महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव जो शासन-प्रशासन की आंख की किरकिरी बन चुके थे। बस्तर के आदिवासियों के मसीहा बन चुके थे।
उन्हें सदा-सदा के लिए शांत करा दिया जाना ही इस वीभत्स गोलीकांड का एकमात्र प्रयोजन था ?
शेष अगले सप्ताह..