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भारत का पहला 'जिला सुशासन सूचकांक' जारी करेंगे अमित शाह
22-Jan-2022 5:31 PM
भारत का पहला 'जिला सुशासन सूचकांक' जारी करेंगे अमित शाह

नई दिल्ली, 22 जनवरी | मजबूत शासन प्रदर्शन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जम्मू-कश्मीर सरकार के सहयोग से प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (डीएआरपीजी) द्वारा तैयार भारत का पहला 'जिला सुशासन सूचकांक' वर्चुअल तरीके से जारी करेंगे।

एक आधिकारिक बयान के अनुसार, पीएमओ, कार्मिक, पीजी और पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे।

जम्मू और कश्मीर सरकार के मुख्य सचिव अरुण कुमार मेहता से प्राप्त सहयोग ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में शासन मॉडल की विविधता को मापने वाले सूचकांक की अवधारणा और इसके निर्माण को साकार किया है। यह भारत के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए जिला स्तर पर शासन के समान मानदंड के लिए एक रोडमैप प्रदान करता है।

केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह ने 25 दिसंबर, 2021 को राष्ट्रीय सुशासन सूचकांक जारी किया था।

सुशासन सूचकांक-2021 के अनुसार जम्मू और कश्मीर ने 2019 से 2021 की अवधि में सुशासन संकेतकों में 3.7 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की है। वाणिज्य व उद्योग, कृषि व इससे संबद्ध क्षेत्र, सार्वजनिक अवसंरचना व उपयोगियताओं, न्यायपालिका और सार्वजनिक सुरक्षा क्षेत्रों में राज्य का ठोस प्रदर्शन देखा गया है। वहीं,व्यापार करने में सुगमता, कर संग्रहण,कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने, ग्रामीण बस्तियों से जुड़ाव, महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण, स्वास्थ्य बीमा कवरेज और सभी के लिए आवास में महत्वपूर्ण सुधार दर्ज किए गए हैं।

इसके अलावा दोषी सिद्ध करने की दर, अदालती मामलों के निपटारे और महिला पुलिस कर्मियों के अनुपात में सुधार हुआ। केंद्रशासित प्रदेश ने नागरिक केंद्रित शासन क्षेत्र में एक ठोस प्रदर्शन किया है।

राष्ट्रीय स्तर पर शासन में ठोस प्रदर्शन की इस पृष्ठभूमि में जम्मू और कश्मीर सरकार की जिला स्तर पर शासन के मानदण्ड की पहल काफी महत्व रखती है। जिला सुशासन सूचकांक ने जिला स्तर पर विभिन्न शासन हस्तक्षेपों के प्रभाव को चिह्न्ति करने और लक्षित हस्तक्षेपों के साथ जिला स्तरीय शासन में सुधार के लिए भविष्य का एक रोडमैप प्रदान करने में सहायता की है। हितधारक परामर्श के लिए भारत सरकार के स्तर पर 10 दौर की बैठकों की जरूरत थी। इसमें जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव, जिला अधिकारियों, आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय के साथ बैठकें और अन्य राज्यों के शिक्षाविद और क्षेत्र विशेषज्ञों के साथ परामर्श शामिल हैं। (आईएएनएस)

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