विचार / लेख

अपूर्व का ‘अपुर संसार’
24-Jan-2022 12:34 PM
अपूर्व का ‘अपुर संसार’

Photo Credit Nemai-Ghosh

-अपूर्व गर्ग
साढ़े छह फीट लम्बे सत्यजीत रे चल रहे थे और कालीबाड़ी, रायपुर द्वार से लेकर मैदान तक उनके साथ रहने के लिए हमें दौड़ लगानी पड़ी।

दरअसल, तब मैं छोटा बच्चा था, शरारतें तो करता था पर शरारतों से ज़्यादा उत्सुकता को शांत करने की फिराक में रहता। मुझे बिल्कुल नहीं पता था कि इन्होंने पथेर पांचाली, अपराजितों, अपुर संसार, चारुलता, तीन कन्या जैसी महान फिल्में बनाईं हैं।

मुझे नहीं पता था कि इन्हें पदमश्री, पदम् विभूषण, डी लिट्, रमन मैगसेसे पुरस्कार, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार जैसे सबसे बड़े अवार्ड मिले। हालाँकि बाद में ऑस्कर और भारत रत्न से इन्हें अलंकृत किया गया।

मुझे ये जरूर पता था कि मेरा नाम अपूर्व ‘अपुर संसार’ से ही प्रेरित होकर रखा गया है।

आज तो बहुत से नन्हे-मुन्ने अपूर्व हैं पर उस दौर में जब अजय-विजय-संजय-अनिल-सुनील-नरेश-दिनेश थे...तब क्लास ही नहीं स्कूल में मैं अकेला अपूर्व था। ये और बात है बंगाल में कई ‘ओपोरबो’

‘ओपू।’ थे ...खैर...

घर में बड़ी चर्चा थी। ‘अपुर संसार’ वाली बात मुझे बताई गई थी, इसलिए मैं ज़्यादा उत्सुक था।

सत्यजीत रे कालीबाड़ी स्कूल आने वाले थे, रविंद्र सभागृह के शिलान्यास के लिए। हम लोग कालीबाड़ी स्कूल में पढ़ते ही नहीं थे बल्कि बगल में घर भी था।

दरअसल, रायपुर में सत्यजीत रे ‘सदगति’ की शूटिंग के सिलसिले में आए हुए थे। ‘सदगति’ प्रेमचंद की कहानी पर आधारित फिल्म थी, जिसमें ओमपुरी, स्मिता पाटिल ने अभिनय किया था और इसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला था। इस फिल्म में ‘धनिआ’ बच्ची की भूमिका हमारी माँ की स्कूल की छात्रा ऋचा मिश्रा ने निभाई थी।
 
सत्यजीत रे रायपुर के सर्किट हाउस में रुके थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने उन्हें राजकीय अतिथि का दर्जा दिया था।

बंगाली कालीबाड़ी समाज उन्हें सर्किट हाउस से कालीबाड़ी लाया और हम शिलान्यास स्थल तक उनके साथ दौड़ लगा रहे थे।

वाकई मुझे अंदाज नहीं था मैं किन महान हस्ती के पीछे चल रहा हूँ। उस वक्त तो उनकी महानता से ज़्यादा उनके लम्बे कद को देख चकित था।

मेरे साथ मेरा प्रिय मित्र रंजन भी दौड़ लगा रहा था। रे साहब रुके, उन्होंने लोगों को ऑटोग्राफ दिए।

मेरे भाई को सत्यजीत रे के व्यक्तित्व का अंदाज था। उसके पास ऑटोग्राफ बुक थी और वो ऑटोग्राफ लेने में कामयाब भी रहा और मैं लगातार इस अपूर्व शख्सियत के ‘अपुर संसार’ से कैसे अपूर्व शब्द मेरे लिए निकला इस पर सोचता रहा और शिलान्यास करके उनके विदा होते तक उनके साथ बना रहा।

वो जितने लम्बे थे, महान थे उतने ही सरल और प्यार से सबसे मिल रहे थे। उनके साथ और पास रहते ये लग ही नहीं रहा था हम दुनिया के बड़े सेलिब्रिटी के निकट हैं।

बाद के दिनों में बॉलीवुड के बड़े-बड़े दिग्गज कलाकारों से मिलना हुआ फोटो लेना हुआ पर आज भी  सत्यजीत रे को देखना, उनके तेज कदमों के साथ दौड़ लगाना, भाई को ऑटोग्राफ देना, रंजन की शरारतों को देखकर हम लोगों की तरफ देखकर मुस्कुराना जिस तरह दिल में बसा है वो जगह कोई कलाकार नहीं बना पाया।
बहुत से सेलिब्रिटी से मिलना होता रहा पर
अपूर्व का ‘अपुर संसार’ तो बस वही था...

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