विचार / लेख
-दीपक मंडल
अंदरूनी फूट से जूझ रही कांग्रेस का संकट ख़त्म होता नजऱ नहीं आ रहा है। पांच राज्यों में चुनाव से पहले पार्टी में जिस एकता की जरूरत महसूस की जा रही थी, वह दूर की कौड़ी नजर आने लगी है। गुलाम नबी आज़ाद को पद्म भूषण मिलने के बाद पार्टी के दो धड़ों के बीच जिस तरह से बयानबाजी का दौर चला उससे साफ हो गया है कि पार्टी में कलह कम होने के बजाय बढ़ती जा रही है।
कांग्रेस का यह अंदरूनी झगड़ा 26 जनवरी को तब और खुल कर सामने आया, जब पार्टी में जी-23 गुट का नेतृत्व करने वाले गुलाम नबी आजाद को पद्मभूषण मिलने पर दूसरे गुट के नेता जयराम रमेश ने ‘गुलाम’ कह दिया।
पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य की ओर से पद्म भूषण लेने से इनकार करने की तारीफ करते हुए रमेश ने कहा, ‘उन्होंने सही फैसला किया है। वह आजाद रहना चाहते हैं कि न कि गुलाम।’
माना जा रहा है कि जयराम रमेश ने इस टिप्पणी के जरिए गुलाम नबी आजाद पर तंज किया। लेकिन कपिल सिब्बल ने आजाद को बधाई दी और कहा कि यह बिडंबना ही है कि कांग्रेस को उनकी सेवाओं की जरूरत नहीं है, जबकि राष्ट्र सार्वजनिक जीवन में उनके योगदान को स्वीकार करता है।
आनंद शर्मा और राज बब्बर ने भी ग़ुलाम नबी आज़ाद को बधाई दी। ये सभी नेता कांग्रेस के उस जी-23 का हिस्सा हैं जिसने 2020 में सोनिया गांधी को पत्र लिखकर कांग्रेस में आमूलचूल बदलाव की मांग की थी।
चुनाव से पहले कांग्रेस में झगड़ा बढऩा बड़ा संकट
इन बयानों से साफ है कि कांग्रेस में धड़ेबाजी सतह पर है और यह घटने के बजाय बढ़ती जा रही है। इससे चुनावों से पहले कांग्रेस की संभावनाओं को काफी चोट पहुंची है। यूपी में ऐन चुनाव से पहले कांग्रेस के सीनियर नेताओं का पार्टी छोडक़र जाना पार्टी में बढ़ते जा रहे अंतर्कलह का नतीजा है।
आरपीएन सिंह कांग्रेस छोडऩे वाले पांचवें बड़े नेता हैं। उनसे पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया, अमरिंदर सिंह के अलावा यूपी से नाता रखने वाले जितिन प्रसाद, अदिति सिंह पार्टी छोड़ चुके हैं।
सिर्फ आरपीएन सिंह ही नहीं बल्कि पडरौना विधानसभा से कांग्रेस के घोषित प्रत्याशी मनीष जायसवाल ने पार्टी से इस्तीफा देकर अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली है।
जि़ला अध्यक्ष राजकुमार सिंह और जि़ला महासचिव टीएन सिंह ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। कांग्रेस पर दूसरी पार्टियों के हमले भी तेज हैं। बीएसपी चीफ मायावती ने तो यहां तक कह दिया है कि यूपी के वोटर कांग्रेस पर अपना वोट बर्बाद न करें।
वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी का कहना है, ‘यूपी में कांग्रेस अपने नेताओं को एकजुट रखने में नाकाम रही है। प्रियंका गांधी खुल कर प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू का साथ देती रही हैं, इसलिए आरपीएन सिंह जैसे बड़े नेताओं की नाराजगी बढ़ गई। लल्लू के काम करने की अपनी शैली है।’
वे कहते हैं, ‘आरपीएन सिंह और दूसरे कुछ नेताओं से वह पार्टी में जूनियर हैं, इसलिए उनका उनसे तालमेल नहीं बैठ रहा है। बताया जाता है कि लल्लू के काम करने की स्टाइल से ये नेता खुश नहीं थे। इसलिए पार्टी के कई सीनियर लीडर उसका दामन छोड़ चुके हैं। लल्लू के काम करने की शैली की वजह से राज्य में पार्टी के उपाध्यक्ष और मीडिया प्रभारी रहे सत्यदेव त्रिपाठी जैसे नेता ने पार्टी छोड़ दी।’
क्या जी-23 को बीजेपी से शह मिल रही है?
यूपी में कांग्रेस में कलह का ही नतीजा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी का बड़ा चेहरा रहे इमरान मसूद ने समाजवादी पार्टी जॉइन कर ली, जबकि पार्टी ने उन्हें टिकट भी नहीं दिया।
कांग्रेस के अंदर का यह झगड़ा आज से नहीं चल रहा है। पार्टी में अनदेखी से नाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में चले गए। सचिन पायलट के अंसतोष को थामने के लिए पार्टी को एड़ी-चोट का जोर लगाना पड़ा। पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू, अमरिंदर सिंह और चरणजीत सिंह चन्नी के बीच के झगड़े ने कांग्रेस को इस चुनावी साल में बुरी तरह झकझोर दिया।
उत्तराखंड में हरीश रावत ने भी जब बगावत के संकेत दिए तो उन्हें मनाने के लिए राहुल गांधी को मशक्कत करनी पड़ी। लेकिन कांग्रेस की इस दिक्कत का अंत नहीं दिख रहा है। पार्टी नेतृत्व को यह समझ नहीं आ रहा है कि इस मुश्किल से कैसे निपटा जाए। कांग्रेस नेतृत्व बेबस होकर नेताओं को पार्टी छोड़ कर जाता देख रहा है।
राम दत्त त्रिपाठी कहते हैं, ‘जब-जब पार्टी के पुराने नेता नेतृत्व को लेकर सवाल उठाते हैं या संगठन में परिवर्तन की मांग करते हैं तो उसे लगता है कि जी-23 जैसे गुट को बीजेपी की ओर से शह मिल रही है। लेकिन यह भी सच है कि कांग्रेस, पार्टी के अंदर की इस स्थिति से निकल नहीं पा रही है। यह वक्त बताएगा कि आने वाले समय में पार्टी के अंदर यह झगड़ा और कितना नुकसान पहुंचा सकता है।’
कांग्रेस के झगड़े का असर पूरे विपक्ष पर
पिछले साल नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस में फूट को लेकर दिलचस्प टिप्पणी की थी। उनका कहना था कि कांग्रेस, बीजेपी को सत्ता से उखाड़ फेंकने की बात करती है। लेकिन जब पार्टी के नेता आपस में लड़ रहे हैं, तो उससे बीजेपी का मुकाबला करने की उम्मीद करना तो बेमानी ही होगी।
उन्होंने कहा था कि कांग्रेस की इस कार्रवाई का असर हर उस पार्टी पर होगा, जो बीजेपी की अगुआई वाले एनडीए से बाहर है, क्योंकि करीब 200 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है।
अब्दुल्ला ने यह टिप्पणी उस दौर में की थी, जब सिद्धू साथ झगड़े के बीच पंजाब में अमरिंदर सिंह ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।
चुनाव के दौर में भी पार्टी नेताओं के सुर अलग-अलग
पार्टी में पुराने नेताओं को लगता है कि राहुल, सोनिया और प्रियंका मिलकर उन्हें दरकिनार करने में लगे हैं। त्र-23 नाम के गुट में शामिल ये नेता मानते हैं कि कांग्रेस में जो सुधार होना चाहिए वो नहीं हो रहा है। जबकि नौजवान नेताओं का लगता है कि गांधी परिवार के इर्द-गिर्द एक गुट घेरा बनाए हुए है, इसलिए राहुल-सोनिया को इन्हें धीरे-धीरे किनारे करना चाहिए।
दो साल पहले पार्टी के एक पूर्व प्रवक्ता संजय झा ने एक अंग्रेज़ी अख़बार में एक लेख लिखकर पार्टी में सुधार लाने पर ज़ोर दिया था जिसके नतीजे में पार्टी ने उन्हें प्रवक्ता के पद से हटा दिया था।
उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा था, ‘जिन मुद्दों की हमने अपने लेख में चर्चा की थी, इच्छाशक्ति और बदलाव लाने का जज़्बा जो पार्टी के लिए जरूरी है वो अब भी पार्टी नहीं कर सकी है। अभी बयानबाजी हम ज़्यादा सुन रहे हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर कोई खास बदलाव नहीं हुआ है।’
बहरहाल, कांग्रेस में झगड़े इतने बढ़े हुए हैं कि पांच राज्यों के अहम चुनावों से पहले भी यह अपनी तैयारियों को चाक-चौबंद नहीं कर पा रही है। पार्टी के नए-पुराने नेता हर दिन नए बयान दे रहे हैं। और किसी भी मुद्दे पर आपस में भिड़ते हुए दिख रहे हैं।
कुल मिलाकर कांग्रेस में इस वक्त अंदरूनी झगड़े बढ़ते ही दिख रहे हैं। दिक्कत यह है कि इस पर फिलहाल कोई लगाम लगने की सूरत नहीं दिखती। चुनावों को देखते हुए भी पार्टी के नेता एक सुर में बोलते नहीं दिख रहे। (बीबीसी)