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कनक तिवारी लिखते हैं- पद्म सम्मान : महामना से क्षमा सहित !
28-Jan-2022 1:39 PM
कनक तिवारी लिखते हैं- पद्म सम्मान : महामना से क्षमा सहित !

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘एकपंथ दो काज’ के मुहावरे को चरितार्थ किया है। अंगरेजी के मुहावरे के हिन्दी अनुवाद ‘एक तीर से दो शिकार‘ कहना ठीक नहीं होगा। गुजरात के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा राजधर्म मानने की सलाह का हिसाब चुकता कर दिया। राज कायम करना ही धर्म है। वाराणसी के सांसद मोदी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रवर्तक महामना पंडित मदनमोहन मालवीय के लिए भारत रत्न का ऐलान कर अपने संसदीय क्षेत्र का सम्मान किया। यह अलग बात है कि 1909-1910 के कांग्रेस अध्यक्ष रहे मदनमोहन मालवीय ने ही 1910 में हिन्दू महासभा की स्थापना की। मनमोहन सिंह और मोदी अमेरिका भी के संयुक्त याचक हैं। हिन्दू महासभा और हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दू जैसे शब्दों से जिन्हें प्यार है वे इस शब्द को सही पुरस्कार देना चाहेंगे। भाजपा विजय पताका फहराकर अटल ‘बिहारी‘ नाम को सार्थक करेगी क्या?

मदनमोहन मालवीय के निधन के वर्षों बाद भारत रत्न देना उनके सच्चे प्रशंसकों तक के गले नहीं उतरता दिखा। उन्नीसवीं सदी के छठे दशक में रवीन्द्रनाथ टैगोर, विवेकानन्द और गांधी की त्रिमूर्ति पैदा हुई। तीनों का योगदान अद्भुत और अतुलनीय है। घबराहट यह है कि कहीं इन्हें कोई भारत रत्न नहीं दे दे, जबकि तीनों निस्संदेह विश्वरत्न हैं। गांधी को नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। यदि वह उन्हें मिल जाता तो गांधी अपमानित हो जाते। मालवीय के साथ वाजपेयी को पुरस्कार देना एक और सवाल पैदा करता है। एक व्यक्ति को मरणोपरांत सम्मान दिया गया तो दूसरे जीवित व्यक्ति को। क्या भाजपा को भारत रत्न के लिए डॉ.श्यामाप्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय का नाम वाजपेयी के पहले नहीं सूझा होगा? ये दोनों तो दक्षिणपंथी हिन्दू परिवार में वाजपेयी से सीनियर रहे हैं। क्या इतिहास आगे की ओर बहेगा तो आडवाणी जी का नंबर लगेगा और फिर मोदी जी का एकदम निश्चित है।  

भारत रत्न देशभक्ति के थर्मामीटर पर क्वथनांक बिन्दु को नहीं दिया जाता। एक दक्षिणपंथी सरकार चाहे कांग्रेस की हो या भाजपा की यदि भगतसिंह को भारत रत्न देने की तजवीज करेगी तो देश तो उसका विरोध करेगा। भारत रत्न का सम्मान सचिन तेंदुलकर, लता मंगेशकर, वैज्ञानिक सी.एन.आर. राव, भीमसेन जोशी, पंडित रविशंकर, अमर्त्य सेन, अब्दुल कलाम, सत्यजीत रे वगैरह को उनके विशेष क्षेत्र में असाधारण योग्यता के कारण दिया गया है।

मदनमोहन मालवीय की तासीर के लोग किसी विधा के विशेषज्ञ की तरह नहीं आंके जा सकते और न वाजपेयी की तरह राजनेता के रूप में। मालवीय एक असाधारण जननेता और देशभक्त थे। उन्हें भारत रत्न का सम्मान देने से प्रधानमंत्री को राजनीतिक फायदा हुआ है। भारत रत्न तो जूता, साबुन का विज्ञापन कर रहे हैं। फिर भी वे जूते, साबुन नम्बर एक पर नहीं पहुंच रहे।

बाकी पद्म पुरस्कार ऐसे व्यक्तियों को दिये गये हैं बल्कि अब भी दिए जा रहे हैं जो संविधान की हिदायतों के अनुसार योग्य नहीं हैं। पुरस्कार का कई लोगों के लिए क्रमिक विकास भी किया गया। उन्हें पहले पद्मश्री, पद्मभूषण और फिर पद्मविभूषण के सम्मान से नवाजा गया। सम्मान उत्तरोत्तर तरक्की का सबूत नहीं होते। प्राथमिक सम्मानों के लिए आवेदन पत्र मंगाए जाते हैं और साथ में बायोडेटा तथा संस्तुतियां भी। यदि समाज सेवा के आधार पर पुरस्कार दिए गए तो यह प्रत्येक स्वतंत्रता संग्राम सैनिक को दे दिया जाना चाहिए था। देश की आज़ादी के लिए संघर्ष करने से बड़ी कौन सी सेवा हो सकती है?
 
पूर्व प्रधानमंत्रियों को भारत रत्न दिए जाने का सिलसिला है। बाकी प्रधानमंत्रियों को भी इस सम्मान से क्यों वंचित रखा जाए। मालवीय का योगदान जवाहरलाल नेहरू को छोडक़र बाकी प्रधानमंत्रियों से तो इतिहास में बड़ा आंका जाएगा। आजादी की लड़ाई में उनकी प्रकृति तथा बराबरी के इतने नेताओं की यादें हैं जिन्हें भारत रत्न दिया जाने से सूची बहुत लंबी हो जाएगी। महामना का तो इस्तेमाल हुआ है। वाजपेयी ने इतने दलों का गठजोड़ बनाकर पूरे कार्यकाल हुकूमत की जिसका कोई सानी नहीं है। बेहतर यही है कि पद्म सम्मानों को खत्म किया जाए। क्रांतिकारियों ने भगतसिंह और चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में जो कुर्बानियां की हैं, उनका सम्मान करना तो दूर, सरकार की आंखों में उनके लिए कृतज्ञता और आंसू तक नहीं दिखाई देते। यदि मतदान कराया जाए तो भगतसिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और सुभाषचंद्र बोस के मुकाबले मैदान में कोई नहीं ठहरेगा।

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