राष्ट्रीय

कांग्रेस की अवस्था है विपक्ष की दुविधा
15-Mar-2022 1:17 PM
कांग्रेस की अवस्था है विपक्ष की दुविधा

आज भी विपक्ष में सिर्फ कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है जिसके पास दो मुख्यमंत्री, तीन और राज्य सरकारों में प्रतिनिधित्व, 88 सांसद, 688 विधायक और 46 पार्षद हैं. विपक्ष के लिए यह स्थिति अच्छी भी है और बुरी भी.

  डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट- 

बीजेपी के विस्तार के सामने कांग्रेस आज बौनी नजर आती है. बल्कि चुनाव दर चुनाव कांग्रेस का कद और घटता ही जा रहा है. ऐसे में वो विपक्ष के आखिर किस काम आ रही है, राजनीतिक पर्यवेक्षकों का यह सवाल उठाना लाजमी है.

विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते कांग्रेस को विपक्ष का इंजन होना चाहिए था. लेकिन स्थित कुछ ऐसी हो गई है कि वो विपक्ष को आगे खींचने की जगह आगे बढ़ने से रोक रही है. एक तरह से वो एक ऐसे जमीन मालिक की तरह हो गई है जो न खुद उस जमीन का इस्तेमाल कर रहा और न किसी और को करने दे रहा है.

कांग्रेस बनाम विपक्ष
विपक्ष भी महाराष्ट्र को छोड़ कर और कहीं एकजुट होता नजर नहीं आ रहा और इसका सीधा फायदा बीजेपी निकाल ले रही है.

राष्ट्रीय नेतृत्व को लेकर संशय हो या पुराने नेता बनाम नए नेताओं का आतंरिक झगड़ा, कई कारण हैं जो कांग्रेस को डुबा रहे हैं. लेकिन इस समय की बीजेपी की राजनीतिक मशीनरी से राष्ट्रीय स्तर पर टक्कर लेना न अकेले कांग्रेस के बस की बात है न कांग्रेस-रहित विपक्ष के.

विपक्ष का नेतृत्व करने में कांग्रेस से प्रतिस्पर्धा करने वाली तृणमूल कांग्रेस अभी कांग्रेस की परछाई के बराबर भी नहीं है. आम आदमी पार्टी भले ही दो राज्यों में सत्ता में आ चुकी है, लेकिन उसका कुल चुनावी बल अभी तृणमूल से भी कम है.

हमें और आपको ये आंकड़े बार बार देखने पड़ते हैं लेकिन पार्टियां इन्हें नींद में भी नहीं भूलतीं. इसलिए पार्टियां अपनी अपनी हैसियत नहीं समझती हैं, यह मानना खुद को भ्रमित रखने के बराबर होगा.

विचारों का सवाल
इसके बावजूद वो आपस में प्रतिस्पर्धा करती हैं क्योंकि सबको 'सबसे बड़ी पार्टी' का तमगा चाहिए. सत्ता में नहीं तो विपक्ष में सही. लेकिन इस तमगे की ललक तब तक ही बरकरार रहेगी जब तक विपक्ष के लिए जमीन रहेगी.

और अपनी जमीन बचाए रखने के लिए विपक्ष को इस तमगे के आगे सोचना पड़ेगा. विपक्ष के कई नेता काफी समय से कहते आ रहे हैं कि बीजेपी को टक्कर देने के लिए सभी पार्टियों की मिली जुली ताकत लगेगी.

इस फॉर्मूले के मुताबिक एक इंद्रधनुषीय गठबंधन बनाना होगा और जो पार्टी जिस राज्य में, जिस सीट पर बीजेपी को टक्कर देने में सबसे मजबूत स्थिति में हो उस सीट को उस पार्टी के लिए छोड़ना होगा.

हालांकि अभी इस फॉर्मूले तो क्या इस सवाल पर भी विपक्ष में सहमति नहीं हो पाई है कि आखिर जनता के बीच क्या लेकर जाएंगे. क्या है जो उन्हें बीजेपी से अलग बनाता है? किस आधार पर वे वो खुद को मतदाता के लिए बीजेपी से बेहतर विकल्प बता पाएंगे?

बीजेपी का मूल मंत्र आज भी 'हिंदुत्व' ही है, जबकि विपक्ष आज भी इस उलझन में है कि उसे 'हिंदुत्व' को अपनाना है या उसका विरोध करना है. जब तक  विपक्षी पार्टियां अपनी उलझनों के परे साफ देखने की क्षमता हासिल नहीं कर लेतीं, तब तक शायद वो बीजेपी से कम और एक दूसरे से ज्यादा लड़ती रहेंगी. (dw.com)
 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news