विधानसभा
मदनवाड़ा न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट में निष्कर्ष
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 16 मार्च। तेरह साल पहले राजनांदगांव जिले के मदनवाड़ा में पुलिस पर नक्सल हमले के प्रकरण की न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट बुधवार को विधानसभा में पेश की गई। जांच प्रतिवेदन में तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता पर कड़ी टिप्पणी की गई है, और यहां तक कहा गया कि घटना के दौरान आईजी बुलेट प्रूफ कार में बैठे रहे, और उनकी मौजूदगी में नक्सली शहादत पाए एसपी विनोद कुमार चौबे, और अन्य मृत पुलिस कर्मियों के बुलेट प्रूफ जैकेट, शस्त्र और जूते निकालकर ले गए। यदि आईजी ने बुद्धिमत्तापूर्ण कदम उठाया होता तो नतीजा बिल्कुल अलग आता। प्रतिवेदन में पुलिस कर्मियों को आउटऑफ टर्न प्रमोशन देने पर भी सवाल खड़े किए।
जस्टिस एसएन श्रीवास्तव की एक सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट सीएम भूपेश बघेल ने प्रश्नकाल के बाद विधानसभा के पटल पर रखी। मदनवाड़ा नक्सल हमले में तत्कालीन एसपी विनोद कुमार चौबे समेत 29 पुलिस कर्मी शहीद हुए थे। आयोग की 109 पेज की रिपोर्ट में घटना को लेकर पुलिस कर्मियों को वीरता पदक देने पर भी सवाल खड़े किए हैं।
प्रतिवेदन में यह कहा गया कि मदनवाड़ा मामले में कोई भी पुलिस अधिकारी ने ऐसा कोई कार्य किया जिससे वे वीरता पुरस्कार के लायक हैं। पूरे ऑपरेशन के दरमियान जो पुलिस कर्मी जो नक्सलियों की फायरिंग का जवाब दिए वे हमेशा गोली झेलने वाले थे या वे प्राप्तकर्ता के कार्नर में खड़े थे। कोई भी अग्रिम हमला नहीं किया गया। जो पुलिस फायरिंग की गई वह मात्र छिटपुट थी। यदि कोई वीरता पुरस्कार दिया जाना था या पुरस्कृत करना था वह शहादत पाए हुए एसपी को दिया जाना चाहिए था। और पुलिसकर्मियों को मरणोपरांत दिया जाना चाहिए था। क्योंकि उन पर दोनों ओर से फायरिंग हो रही थी। उन्होंने नक्सलियों से पूरी ताकत से लड़ा, और अपने जीवन की आहूति दी।
तत्कालीन एसपी विनोद कुमार चौबे यह जानते हुए भी कि नक्सलियों की संख्या बहुत ज्यादा है, परन्तु उन्होंने नक्सलियों पर अग्रिम हमला किया, और अपना जीवन अपना कर्तव्य निर्वहन करते हुए समर्पित कर दिया। कोई भी आउटऑफ टर्न प्रमोशन नहीं दिया जाना चाहिए था। क्योंकि नक्सलियों का कोई नुकसान नहीं हुआ। एक ही जगह पर दो नक्सल एम्बुश थे। परन्तु किसी भी पुलिस बल ने नक्सल पर अग्रिम आक्रमण नहीं किया सिवाय शहादत पाए हुए एसपी, अदम्य साहस का परिचय नक्सलियों से लड़ते हुए दिया।
जांच आयोग का यह भी निष्कर्ष है कि रिकॉर्ड पर जो दस्तावेज उपलब्ध है, जो भी पुलिस बल वहां था वह पूरे समय सिर्फ एक मूक दर्शक की तरह देखते रहे। तथा उन्होंने नक्सलियों को यह कहने की अनुमति दी कि जो वे चाहते हैं वे करें। तथा यह लगता है कि वे सिर्फ झेलने वाले सिरे पर खड़े थे। यह बहुत दुखद स्थिति है कि आईजी जोन की मौजूदगी में नक्सलियों ने बीपी जैकेट, तथा शस्त्र, और जूते एक शहादत पाए एसपी चौबे के निकाल लिए। उन्होंने मृत सभी पुलिस कर्मियों के बीपी जैकेट शस्त्र, और अन्य चीजे निकाल लिए।
प्रतिवेदन में आगे यह भी कहा गया है कि यदि पुलिस में नक्सलियों के ऊपर कोई गोली चलाई होती, तो नक्सलियों के हिस्से कुछ मृत्यु भी होती। यह स्वीकृत तथ्य है कि कोई भी नक्सल मृत्यु का वरण किया, और न ही उनके शरीर पर कोई भी खरोच आई। यदि आईजी जोन में बुद्धिमतापूर्ण कृत्य किया होता, या साहस दिखाया होता, तो नतीजा बिल्कुल अलग होता। उसने जो भी किया वह कुछ नहीं था बल्कि एक तरह से उसकी तरफ से कार्यरतापूर्ण था। क्योंकि उसके पास पर्याप्त समय था कि वह सीआरपीएफ या सीएएफ को बूलाकर उनका उपयोग कर सकता था। ऐसा प्रतीत होता है कि वह भी अपने जीवन के लिए डर रहा था, तथा ठीक उसी समय उसने एसपी चौबे को नक्सलियों से मुकाबला करने के लिए अग्रिम हमले में ढकेल दिया। यह स्पष्ट रूप से साक्ष्य में आया है कि आईजी जोन अपने अपने बूलेट प्रूफ कार में बैठा रहा तथा उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया जैसा कि पुरूस्कार देने के उदाहरण में दिखाई दिया।
प्रतिवेदन में यह भी कहा गया कि मुकेश गुप्ता ने बहादुरी दिखाई होती तो नक्सल बीपी जैकेट, जूते, आम्र्स तथा असला सहादत पाए हुए पुलिस कर्मियों से निकालकर नहीं ले जाते। नक्सलियों द्वारा जो सीडी बनाई गई वह पुलिस को भेजी गई, उसमें यह स्पष्ट है कि 29 पुलिस कर्मियों को मारने के बाद तथा जवानों को मारने के बाद नक्सली पूरी तरह उत्सव मना रहे थे।
प्रतिवेदन में सरकार ने जांच आयोग के सुझाव पर खुफिया तंत्र को मजबूत करने की दिशा में निर्देश जारी किए हैं, साथ ही अन्य सुझावों पर वित्त और गृह विभाग को कार्रवाई के लिए पत्र जारी किया गया है।