राष्ट्रीय

आधी रात को दौड़ते युवक का वायरल वीडियो देश के हालत का एक क्रैश कोर्स है
22-Mar-2022 12:38 PM
आधी रात को दौड़ते युवक का वायरल वीडियो देश के हालत का एक क्रैश कोर्स है

नॉएडा की सड़कों पर आधी रात को दौड़ते हुए प्रदीप मेहरा की असली कहानी टीवी चैनलों के सर्कस में नहीं है. उस रात फिल्म निर्माता का कैमरा प्रदीप के रूप में देश के करोड़ों युवाओं के सपनों और जीवट से एक साथ टकरा गया.

   डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट- 

खुद को प्रदीप मेहरा की जगह रख कर देखिए. आप हिंदुस्तान के एक छोटे से शहर के रहने वाले हैं. परिवार में संसाधन कम हैं लेकिन आप की आंखों में जीवन में कुछ कर दिखाने का सपना है. आप दिल्ली एनसीआर आ जाते हैं और अपने सपने को हकीकत में बदलने के लिए कमर तोड़ मेहनत में जुट जाते हैं.

आप अपने लक्ष्य को साधने की तैयारी भी कर रहे हैं और साथ ही उस तैयारी का खर्च उठाने के लिए नौकरी भी. और इसी क्रम में एक रात आप नॉएडा की सड़कों पर एक फिल्म निर्माता से टकरा जाते हैं. फिल्मकार अपने मोबाइल पर आपकी वीडियो बना लेता है, फिर उसे सोशल मीडिया पर डाल देता है और फिर कुछ ही घंटों में वीडियो वायरल हो जाती है.

करोड़ों युवाओं की कहानी
वीडियो वायरल क्यों हुई यह आप समझ ही सकते हैं. उस रात प्रदीप मेहरा फिल्म निर्माता विनोद कापड़ी से नहीं टकराए. दर असल कापड़ी ही प्रदीप के रूप में देश के करोड़ों युवाओं के सपनों और जीवट से एक साथ टकरा गए.

प्रदीप की ही कहानी लीजिए. वीडियो में उन्होंने बताया कि वो उत्तराखंड के अल्मोड़ा से हैं. रोजगार के ताजा सरकारी आंकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड में युवाओं के बीच बेरोजगारी राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा है.

जहां देश में करीब 15 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं, उत्तराखंड में करीब 20 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं. राज्य में बेरोजगारी पिछले एक दशक में दोगुनी हो गई है और अब आलम यह है कि कुल बेरोजगार लोगों में करीब 70 प्रतिशत युवा हैं.

दून विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग के प्रमुख राजेंद्र ममगैन ने एक लेख में लिखा है कि अल्मोड़ा और राज्य के अन्य पहाड़ी इलाकों में समस्या और विकराल है. राज्य के कुल बेरोजगार युवाओं में आधे से ज्यादा पहाड़ी इलाकों में ही हैं. इन इलाकों के 24 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं.

नौकरी की तलाश
लिंग के हिसाब से भी आंकड़े उपलब्ध हैं जिनसे प्रदीप की कहानी को और बेहतर समझा जा सकता है. राज्य के पहाड़ी इलाकों के युवा पुरुषों में 30 प्रतिशत बेरोजगार हैं. अब लीजिये प्रदीप की कहानी के अगले अध्याय को.

वीडियो में उन्होंने बताया कि वो भारतीय सेना में भर्ती की तैयारी कर रहे हैं. वो सेना में ही नौकरी क्यों करना चाहते हैं ये तो उन्होंने नहीं बताया, लेकिन इसका भी आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं. हिन्दुस्तान में हर साल लाखों युवा सेना में भर्ती होने के लिए अलग अलग परीक्षाएं देते हैं.

उन लाखों में से सिर्फ कुछ हजार को ही सेना में नौकरी मिल भी पाती है और बाकी फिर किसी और नौकरी की तलाश में लग जाते हैं. और पिछले दो सालों से तो सेना में भर्ती बंद ही पड़ी हुई है. सरकार का कहना है कि भर्ती प्रक्रिया अस्थायी रूप से कोविड की वजह से स्थगित है और जल्द ही फिर से शुरू की जाएगी.

प्रदीप शायद तब तक रोज रात इसी तरह अपनी छह किलोमीटर की दौड़ पूरी करते रहेंगे. लेकिन क्या उनका देश उन्हें गारंटी दे सकता है कि उनकी मेहनत जल्द ही रंग लाएगी?  भारतीय टीवी चैनलों को देख कर तो ऐसा नहीं लगता.

कैसे होंगे सपने पूरे
उन्हें तो प्रदीप के रूप में वायरल कंटेंट की सामग्री मिल गई है. वो उन्हें पकड़ के अपने अपने स्टूडियो ले जा रहे हैं, और उनकी कहानी के पीछे के मर्म पर रौशनी डालने की जगह उन्हें स्टूडियो में दौड़ कर दिखाने के लिए कह रहे हैं.

मीडिया का ये सर्कस जाना पहचाना है. इसमें प्रदीप जैसे वायरल कंटेंट की संभावना वाले लोगों को सड़क से उठा कर अस्थायी रूप से सेलिब्रिटी बना दिया जाता है और दो दिन के तमाशे के बाद फिर से सड़क पर ही पटक दिया जाता है.

प्रदीप की असली कहानी इन टीवी चैनलों के सर्कस में नहीं है. प्रदीप की कहानी उनके उस संकल्प में है जिससे मजबूती पा कर वो बार बार लिफ्ट लेने के प्रस्ताव को ठुकरा देते हैं और अपनी मंजिल की तरफ दौड़ते रहते हैं.

कल आपको भी अगर कोई प्रदीप जिंदगी की सड़क पर अपने सपनों को हकीकत में बदलने की चाहत लिए यूं दौड़ता नजर आए तो उसे दौड़ने दीजिएगा. उसे जाते जाते पीछे से निहारिएगा और दुआ कीजिएगा कि इस संकल्प की धूल के कुछ जादुई कण आपकी जिंदगी में भी बिखर जाएं. (dw.com)
 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news