राष्ट्रीय
लोकसभा में सोमवार को केंद्र सरकार ने दंड प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022 पेश किया. इसमें किसी अपराध के मामले में गिरफ्तार और दोषसिद्ध अपराधियों का रिकॉर्ड रखने के लिए तकनीक के इस्तेमाल की इजाजत देने का प्रस्ताव है.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
इस विधेयक को लोकसभा में 58 के मुकाबले 120 मतों से पेश करने की मंजूरी मिली. इस विधेयक को हाल में केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दी थी. विधेयक पेश करते हुए गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने कहा कि मौजूदा अधिनियम को बने 102 साल हो गए हैं. मंत्री ने लोकसभा में कहा कि उसमें सिर्फ उंगली के निशान और पांव के निशान लेने की अनुमति दी गई, जबकि अब नई प्रौद्योगिकी आई है और इस संशोधन की जरूरत पड़ी है.
सरकार का कहना है कि संशोधन से जांच एजेंसियों को मदद मिलेगी और दोषसिद्धि भी बढ़ेगी. वहीं इस विधेयक के विरोध में लोकसभा में कांग्रेस सांसदों ने कहा कि यह अनुच्छेद 20 और 21 का उल्लंघन है.
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आरएसपी, बहुजन समाज पार्टी जैसे दलों ने इस पर इतना विरोध किया कि इसे पेश करने को लेकर वोटिंग करानी पड़ी. विपक्ष की मांग पर हुई वोटिंग में विरोधी 58 मतों के मुकाबले पक्ष में आए 120 मतों के आधार पर सदन में इस पेश करने की मंजूरी दी गई. कांग्रेस ने कहा कि यह बिल निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है.
पुलिस को मिलेगी और ताकत?
विधेयक के पारित होने के बाद पुलिस के पास यह अधिकार आ जाएगा कि वह आरोपी या सजायाफ्ता लोगों के शारीरिक और जैविक नमूने ले सकेगी. पुलिस आंखों की पुतलियों की पहचान, हथेली-पैरों की छाप, फोटो और लिखावट के नमूने भी ले सकेगी.
सरकार का कहना है कि ज्यादा रिकॉर्ड होने से अपराधियों को पकड़ने और उन्हें सजा दिलाने के काम में तेजी आएगी.
बिल पुलिस थाना प्रभारी या हेड कांस्टेबल रैंक के पुलिसकर्मी को आरोपियों के नमूने लेने का अधिकार देता है. इन मापों के रिकॉर्ड संग्रह की तारीख से 75 वर्षों तक बनाए रखा जाएगा. यह बिल अपराधियों की पहचान अधिनियम 1920 को खत्म कर नया कानून बनाने के लिए लाया गया है. (dw.com)