संपादकीय

दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एक नाबालिग की संदिग्ध मौत पर ममता बैनर्जी का घटिया और हिंसक बयान
12-Apr-2022 5:15 PM
दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एक नाबालिग की संदिग्ध मौत पर ममता बैनर्जी का घटिया और हिंसक बयान

पश्चिम बंगाल में 14 बरस की एक लडक़ी को एक जन्मदिन की पार्टी से उसके घर वापिस पहुंचाया गया, उसके बदन से खून निकल रहा था, अगली सुबह उसकी तबियत बिगड़ी, और उसकी मौत हो गई। परिवार ने पुलिस में शिकायत के पहले उसका अंतिम संस्कार कर दिया, और पांच दिन बाद पुलिस ने तृणमूल कांग्रेस के एक नेता के बेटे के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट लिखाई। परिवार का कहना है कि जो लोग मेरी बेटी को जन्मदिन की पार्टी में ले गए थे, उन्होंने उसे पहुंचाकर धमकी दी थी कि अगर हमने अपना मुंह खोला तो वे घर को आग लगा देंगे, उस वक्त हम डर गए थे इसलिए पुलिस में रिपोर्ट नहीं की थी, लेकिन अब इंसाफ चाहिए। अंतिम संस्कार के इतने दिन बाद पुलिस की जांच की संभावना भी बड़ी सीमित हो जाती है, और बंगाल में यह बात भी मुमकिन है कि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के नेता किसी परिवार को इस हद तक डरा सकते हैं कि वे बेटी के गुजरने के तनाव के बीच पुलिस रिपोर्ट की न सोच पाएं। परिवार का कहना है कि पुलिस ने तृणमूल कांग्रेस के नेता के दबाव में बिना पोस्टमार्टम कराए लडक़ी का जबरन अंतिम संस्कार करवा दिया। तृणमूल कांग्रेस के इसी नेता के 21 साल के बेटे पर अपने दोस्तों के साथ मिलकर इस नाबालिग लडक़ी से सामूहिक बलात्कार का आरोप है। अभी-अभी बंगाल में घर में आग लगाकर दर्जन भर लोगों को मार डालने का मामला खबरों में बना हुआ है, और उसमें भी तोहमत तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेता पर है। इसलिए राज्य में सत्ता के ऐसे आतंक के बीच यह मुमकिन है कि लोग सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं के खिलाफ शिकायत की हिम्मत न जुटा सकें।

लेकिन इस मामले की हकीकत से परे आज यहां इस पर चर्चा का मकसद कुछ और है। बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की सर्वेसर्वा ममता बैनर्जी ने अपने राज्य की इस चौदह बरस की नाबालिग लडक़ी की मौत पर सवाल उठाते हुए कहा है कि कहानी बताई जा रही है कि रेप की वजह से नाबालिग लडक़ी की मौत हो गई, क्या आप उसे रेप कहेंगे? वो लड़क़ी गर्भवती थी या उसका प्रेम-प्रसंग चल रहा था, क्या आपने जानने की कोशिश की? पुलिस ने मुझे बताया है कि लडक़ी और उस लडक़े का अफेयर चल रहा था।

ममता बैनर्जी का यह बयान परले दर्जे की घटिया सोच है, और एक राज्य की शासन प्रमुख के लिए ऐसी सोच धिक्कार की बात है। वे इस मामले की जांच की बात तो कर रही हैं, लेकिन जांच करने वाली अपनी मातहत एजेंसियों को वे अपना रूख पहले ही बता दे रही हैं। ममता बैनर्जी जैसी सनकी, और अस्थिर चित्त की नेता का कहा हुआ उनकी सरकार के लोगों के लिए एक धार्मिक फतवे सरीखा होता है। इस तरह के सार्वजनिक बयान के बाद उनकी सरकार में किसकी हिम्मत है जो कि इस लडक़ी के प्रेम-प्रसंग से परे कोई और संभावना जांच सके? ममता बैनर्जी को एक दुखी परिवार के जख्मों पर नमक रगड़ते हुए ऐसा बयान देते एक महिला के रूप में भी शर्म नहीं आई। उनके बयान में कानून की एक बहुत मामूली समझ कहीं भी नहीं झलकती कि लडक़ी नाबालिग थी, और ममता की पार्टी के एक नेता के जिस बेटे पर बलात्कार का आरोप लगा है, वह वयस्क था। केवल उम्र के ऐसे फर्क से यह मामला बलात्कार का बन जाता है, लेकिन ममता बैनर्जी ऐसे संवेदनाशून्य बयान पहले भी देते आई हैं। इसे देखकर ऐसा लगता है कि उनके भीतर की महिला लगातार सत्ता में बने रहने से मर चुकी है, और एक नाबालिग लडक़ी की लाश के साथ भी उनकी न तो एक महिला की हैसियत से हमदर्दी है, न ही उस राज्य की मुख्यमंत्री की हैसियत से उन्हें ऐसी मौत पर कोई अफसोस है, और न ही एक इंसान के रूप में एक गमजदा परिवार के साथ उनकी कोई हमदर्दी है। सत्ता बहुत से लोगों पर इस किस्म का असर डालती है, और बहुत सी महिलाएं भी लंबे समय तक सत्ता में बने रहकर अपनी संवेदना खो बैठती हैं। बंगाल की राजनीति में वामपंथियों, भाजपाईयों, और तृणमूल कांग्रेसियों के बीच खूनी संघर्ष लंबे समय से चलते रहा है, और वहां का माहौल हिंसा को लेकर संवेदनाशून्य हो चुका है। भारत के नेताओं में महिलाओं से बलात्कार को लेकर गंदी सोच एक बड़ी आम बात है, और अधिकतर पार्टियों के नेता बलात्कार के लिए महिलाओं को ही उन पर बलात्कार के लिए किसी न किसी तरह से जिम्मेदार ठहराने के फेर में रहते हैं, लेकिन जब कोई बड़ी महिला नेता भी ऐसी ही जुबान का इस्तेमाल करती है, तो हमारा मन भारी हो जाता है।

पश्चिम बंगाल में सत्ता की छत्रछाया में सत्तारूढ़ पार्टी के लोगों द्वारा विधानसभा चुनाव के बाद से लेकर अब तक लगातार कई बार की गई हिंसा की कई किस्म की जांच चल रही है। कलकत्ता हाईकोर्ट और दूसरी संवैधानिक संस्थाओं ने बंगाल की हिंसा पर तरह-तरह की जांच शुरू करवाई है, वे अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची हैं। इस बीच ममता बैनर्जी ने केन्द्र सरकार के साथ टकराव के अपने पुराने रूख को तो जारी रखा ही हुआ है, उन्होंने राज्य में चल रही हिंसा की जिम्मेदारी भी एक शासन प्रमुख के रूप में लेने से इँकार कर दिया है। यह पूरा सिलसिला उन्हें महज एक सत्तारूढ़ नेता भर बनाकर छोड़ रहा है। ममता बैनर्जी ही नहीं, इस देश के अनगिनत और ऐसे नेता हैं जो मुख्यमंत्री या केन्द्र सरकार की बड़ी कुर्सियों तक पहुंचे, लेकिन उन ओहदों के नाम से परे वे किसी तरह से भी महान नेता नहीं बन पाए। उनके पास क्षमता भी थी, उनमें संभावनाएं भी थीं, लेकिन उनमें महानता का गुण नहीं था, इसलिए वे चुनावी कामयाबी से आगे नहीं बढ़ पाए। ममता बैनर्जी को कुछ इंसानियत सीखने की जरूरत है, और अपनी सरकार, अपनी पार्टी के हर जुर्म को मंजूरी देने की अपनी जिद्द छोडऩे की जरूरत है। देश में एक बड़ी भूमिका निभाने की उनकी हसरत जरूर है, लेकिन आए दिन की उनकी ऐसी हरकत उन्हें ऐसी हसरत से दूर धकेलने का ही काम कर रही है। देश के समाज के सजग हिस्से को नेताओं की घटिया सोच और गंदी जुबान के खिलाफ खुलकर बोलना और लिखना चाहिए।
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