विचार / लेख

मोदी की आपस में टकरातीं ये दो चुप्पियाँ
29-Apr-2022 3:53 PM
मोदी की आपस में टकरातीं ये दो चुप्पियाँ

-सरोज सिंह
पश्चिम बंगाल के खडग़पुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे। भाषण के बीच में पास की मस्जिद से अजान की आवाज आती है। आवाज़ सुनते ही पीएम मोदी दो मिनट के लिए चुप हो जाते हैं।
उस चुप्पी के बाद अपना भाषण ये कहते हुए शुरू करते हैं, ‘हमारे कारण किसी की पूजा, प्रार्थना में कोई तकलीफ ना हो, इसलिए मंैने कुछ पल के लिए भाषण को विराम दिया।’
इसके बाद 2017 में गुजरात के नवसारी की एक सभा में भी पीएम मोदी अजान के समय भाषण देते हुए चुप हो गए थे।
साल 2018 में त्रिपुरा में भी ऐसा ही किया था। उस वक्त पीएम मोदी की इस ‘चुप्पी’ ने खूब तारीफ बटोरी थी।
उनके धुर विरोधी रहे समाजवादी पार्टी नेता आजम खान ने कहा, ‘इसे मुसलमानों का तुष्टीकरण नहीं कहना चाहिए, ये अल्लाह का खौफ है।’
दूसरी चुप्पी
बात साल 2022 की है।
देश के तकरीबन 100 पूर्व नौकरशाहों ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है। चिट्ठी में भारत में वर्तमान में चल रही मुसलमानों और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के खिलाफ चल रही कथित नफरत की राजनीति पर प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाया गया है।
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक चिट्ठी में लिखा गया है, ‘नफरत की राजनीति जो इस समय समाज झेल रहा है, उसमें आपकी चुप्पी (पीएम) कानों को बहरा करने वाली है।’
गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों से अजान और लाउडस्पीकर को लेकर देश के अलग अलग प्रदेशों में राजनीति गरमाई हुई है। महाराष्ट्र में जहाँ एक पार्टी ने सभी मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने के लिए तीन मई की समय सीमा निर्धारित की है। वहीं उत्तर प्रदेश में ध्वनि प्रदूषण का हवाला देते हुए मंदिर, मस्जिदों से तकरीबन 10 हजार लाउडस्पीकर हटाए गए हैं। इसके अलावा मीट बैन, हिजाब, शोभायात्रा पर देश के अलग अलग हिस्सों में जो हिंसा और राजनीति हुई, इसकी बातें किसी से छिपी नहीं हैं।
नौकरशाहों की चिट्ठी में पीएम मोदी की इन बातों पर ‘चुप्पी’ का ही जिक्र है।
चिट्ठी में लिखा गया है, ‘पूर्व नौकरशाह के रूप में हम आम तौर पर ख़ुद को इतने तीखे शब्दों में व्यक्त नहीं करना चाहते हैं, लेकिन जिस तेज गति से हमारे पूर्वजों द्वारा तैयार संवैधानिक इमारत को नष्ट किया जा रहा है, वह हमें बोलने और अपना गुस्सा व्यक्त करने के लिए मजबूर करता है।’
दोनों चुप्पी में अंतर
2016, 2017 और 2018 में पीएम मोदी अपने भाषण के दौरान अजान सुन कर जब ‘चुप’ हो जाते थे, तो उनके धुर विरोधी आजम खान तक तारीफ करते थे। लेकिन उनकी आज की चुप्पी सवालों के घेरे में है।
इस बार नौकरशाहों ने भी इस पर सवाल उठे, न्यायालय में भी मामला पहुँचा और राजनीतिक विरोधी तो सवाल पूछ ही रहे हैं।
बुधवार को नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला भी इन सब पर खूब बोले।
मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘सियासत के लिए एक गलत माहौल बनाया जा रहा है। कहा जा रहा है मस्जिदों में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। क्यों भाई, जब मंदिरों में हो सकता है तो मस्जिदों में क्यों नहीं। दिन में पाँच बार नमाज होती है। इसमें गुनाह क्या है?
‘आप हमें कहते हैं कि हलाल मीट नहीं खाना चाहिए। आखिर क्यों? हमारे मजहब में कहा गया है। आप इस पर रोक क्यों लगा रहे हो। हम आपको मजबूर नहीं कर रहे हैं खाने को। मुझे बताइए किस मुसलमान ने किसी गैर मुसलमान को हलाल मीट खाने को मजबूर किया। आप अपने हिसाब से खाइए, हम अपने हिसाब से खाएंगे। हम आपसे नहीं कहते कि मंदिरों में माइक नहीं लगने चाहिए। मंदिरों में माइक नहीं लगते क्या?गुरुद्वारे में माइक नहीं लगता है क्या? लेकिन आपको केवल हमारा माइक दिखता है। हमारे कपड़े खटकते हैं, आपको सिर्फ हमारा नमाज पढऩे का तरीका पसंद नहीं है।’
पीएम से गुहार क्यों?
नौकरशाहों की तरफ से लिखी चिट्ठी पर 108 लोगों के हस्ताक्षर हैं। इनमें दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन, पूर्व विदेश सचिव सुजाता सिंह, पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई और पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के प्रधान सचिव रहे टीकेए नायर शामिल हैं।
पीएम मोदी की चुप्पी के सवाल पर नजीब जंग ने कहा, ‘जिन ब्यूरोक्रेट्स ने ये चिट्ठी लिखी है, उसका नाम है ‘कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप’। इसमें 200 नौकरशाह शामिल हैं। संविधान का जब कभी उल्लंघन होता है या दाग लगता हुआ हमें दिखता है, हम उस बारे में चिट्ठी लिखते रहते हैं।
पिछले आठ-दस महीनों में हमने महसूस किया है कि देश में सांप्रदायिकता का नया दौर चला है, जिसमें सरकार को जो कार्रवाई करनी चाहिए वो नहीं की गई है। राज्य के डीएम और एसपी को जो कार्रवाई करनी चाहिए वो बहुत चिंताजनक है। इससे अल्पसंख्यक समुदाय जैसे मुसलमान, सिख, ईसाई उनमें भय का माहौल बनता जा रहा है।’
हमारा मानना है कि हिंदुस्तान में एक शख्स है, जिसकी बात देश सुनता है, वो हैं प्रधानमंत्री मोदी। वो एक कद्दावर नेता हैं। वो एक इशारा कर देंगे तो ये वारदातें रूक जाएंगी। अगर रुकेंगी नहीं तो कम तो जरूर हो जाएंगी। जो लोग ऐसा कर रहे हैं, उनको इशारा मिलेगा कि ऐसा नहीं चल सकता।’
पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई भी इस चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने वालों में से एक हैं।
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘भले ही सांप्रदायिक हिंसा के ये मामले राज्यों में हो रहे हों, हम राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी चिट्ठी लिख सकते थे, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी प्रभावशाली नेता हैं, उनकी एक लाइन बोलने से सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों तक संदेश पहुँच जाएगा।’
‘हमने इसका उदाहरण पहले भी देखा है। सीएए-एनआरसी विवाद के दौरान अमित शाह का एक बयान था कि जल्द ही एनआरसी लागू किया जाएगा, लेकिन दो दिन बाद जब प्रधानमंत्री मोदी ने कह दिया कि अभी इस पर फैसला नहीं लिया गया है, तो उसके बाद से अमित शाह की तरफ से एनआरसी पर कोई बयान नहीं आया। साफ है, उनके शब्दों का प्रभाव कितना है।’
चिट्ठी पर बीजेपी की प्रतिक्रिया
नौकरशाहों की चिट्ठी में कहा गया है कि पिछले कुछ सालों में कई राज्यों- असम, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में अल्पसंख्यक समुदायों, खासकर मुसलमानों के प्रति नफरत और हिंसा में बढ़ोतरी ने एक भयावह आयाम हासिल कर लिया है। पत्र में कहा गया है कि दिल्ली को छोडक़र इन राज्यों में भाजपा की सरकार है और दिल्ली में पुलिस पर केंद्र सरकार का नियंत्रण है।’
हालांकि बीजेपी ने इस चिट्ठी पर तीखी प्रतिक्रिया दी है।
बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, ‘प्रधानमंत्री मोदी द्वारा चलाई जा रही जनकल्याणकारी योजनाओं जैसे फ्री वैक्सीन, फ्री राशन, जनधन अकाउंट पर तो ये ग्रुप कभी कुछ नहीं कहता। पीएम मोदी के नेतृत्व में हमारी सरकार पॉजिटिव गवर्नेंस के एजेंडे पर काम कर रही है, जबकि इस तरह के ग्रुप नकारात्मकता फैलाने का काम कर रहे हैं।’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो चुप्पियों के अंतर पर बोलते हुए राम बहादुर राय कहते हैं,
‘पहली चुप्पी जो थी वो नरेंद्र मोदी के धर्मनिरपेक्षता में सर्वधर्म सम्भाव में आस्था की चुप्पी थी। आज की चुप्पी संवैधानिक संघ की जो मर्यादा है वो उसकी चुप्पी है।’
मतलब जो राज्यों में हो रहा है, उसकी जिम्मेदारी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की है। अगर प्रधानमंत्री कुछ बोलते हैं तो मुख्यमंत्री के कार्य में वो हस्तक्षेप होगा। कानून व्यवस्था राज्यों का विषय है। एक अनुभवी मुख्यमंत्री होने के नाते, पीएम मोदी को पता है कि कहाँ उनको बोलना है और कहाँ चुप रहना है।
‘जो लोग प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख रहे हैं वो कोई साम्प्रदायिक सहिष्णुता का उदाहरण नहीं दे रहे हैं। वो इस आग में अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रहे हैं। जो कुछ अभी हो रहा है, वो आजादी के बाद 1967 के बाद पहली बार हुआ था। आज की परिस्थितियां अलग है। जो कुछ छिटपुट घटनाएं हो रही हैं, उसे राज्य सरकारें संभाल रही हैं। कोई नरसंहार नहीं हो रहा है। जैसे सुप्रीम कोर्ट ने कहा धर्म संसद रोको तो उत्तराखंड की सरकार ने रोक दिया। इसलिए हर बात में प्रधानमंत्री को घसीटना उचित नहीं है। बोलने से ज्यादा चुप रहने में धैर्य और बुद्धि की जरूरत होती है।’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो चुप्पियों के अंतर पर बोलते हुए सुधींद्र कुलकर्णी कहते हैं, ‘अजान के समय भाषणों में चुप रहने की परंपरा राजनीति में पुरानी है। मैं खुद उन कई मौकों का गवाह रहा हूँ, जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी किसी रैली में होते और अजान की आवाज सुन लेते तो वो चुप हो जाते थे। अगर प्रधानमंत्री मोदी ने इसे ( 2016, 2017, 2018) में जारी रखा, ये बड़ी बात है। वो शायद अज़ान के समय चुप नहीं होना चाहते थे, लेकिन चूंकि परंपरा चली आ रही थी, तो उन्हें चुप रहना पड़ा।’
वो आगे कहते हैं, ‘इस साल नफरत के माहौल में पीएम मोदी का चुप रहना बड़ी बात है। प्रधानमंत्री होने के नाते जब सांप्रदायिक हिंसा इतनी फैल रही है, दिल्ली तक इससे अछूती नहीं रहती है, धर्म संसद के नाम पर नफरत वाले भाषण हो रहे हैं। लेकिन पीएम के मुँह से एक शब्द नहीं निकलता, ये चुप्पी बिना कुछ कहे, बहुत कुछ कह दे रही है। ये ज़्यादा निंदनीय है।’ (bbc.com/hindi)
 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news