विचार / लेख
-दिनेश श्रीनेत
सलीम गौस के निधन की खबर पढ़ी और आँखों के आगे दूरदर्शन वाले पुराने दिन घूमने लगे। सन् 1987 की बात है। अपट्रान का ब्लैक एंड व्हाइट टीवी था, जिसके दरवाजे स्लाइड करते हुए खुला करते थे। पिता को गुजरे सात साल हो गए थे। भाई दूसरे शहर जा चुके थे। पुराने घर में अतीत की भुतैली स्मृतियां ही डोला करती थीं, लिहाजा हम मां-बेटे सारा खाली वक्त उस टीवी के आगे ही बिताते थे।
उन्हीं दिनों 'सुबह' नाम का एक टीवी सीरियल शुरू हुआ था, जिसमें दो युवा दोस्तों की कहानी थी। उसके युवा अभिनेता ने अपनी बड़ी और भावप्रवण आँखों और गहरी आवाज़ से स्क्रीन पर आते ही खींच लिया। कॉलेज के युवाओं की यह कहानी धीरे-धीरे ड्रग्स की तरफ बढ़ गई। भरत रंगाचारी का निर्देशन था जो सिर्फ 42 साल की उम्र में गुजर गए। इस सीरियल में संवाद कम होते थे और दृश्य तब के चलन से अलग तरीके से शूट किए जाते थे।
सीरियल में एक मुकाम आता है जब नायक को ड्रग्स के लिए पैसे की जरूरत होती है और वह अपने बुजुर्ग अभिभावकों (शायद नाना-नानी) को ही मार देता है। तब के और आज के लिहाज से भी यह दृश्य विचलित करने वाला था। लिहाजा जब उस एपिसोड के बाद विरोध के स्वर उठे तो दूरदर्शन ने उसका प्रसारण रोक दिया।
बाद में सलीम गौस श्याम बेनेगल की 'भारत एक खोज' जब राम बने तो मुझे लगा कि राम ऐसे ही रहे होंगे। कैलेंडर वाले राम और अरुण गोविल से बिल्कुल अलग, सच्चे और वास्तविक। मैंने बस उसके बाद सलीम गौस को नहीं देखा। हालांकि बाद की कई फिल्मों में वे प्रभावशाली खलनायक बनकर आए।
वे पूना फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट से निकले अभिनेता थे। स्क्रीन पर महज अपनी उपस्थिति से बांध लेने की कला थी उनमें। ऐसा न होता तो इतने सालों में बाद जब जाने कितने लोग और बातें विस्मृत हो जाती हैं एक अभिनेता कैसा याद रह जाएगा भला?
यह 1992 से पहले की बात है और राम का अभिनय किसी सलीम ने किया था, उन दिनों इस बात पर कभी ध्यान नहीं गया था।
(फेसबुक से)