संपादकीय
रमजान के धार्मिक मौके पर उत्तरप्रदेश के अयोध्या में एक बड़ा साम्प्रदायिक तनाव होने का खतरा अभी टल गया दिख रहा है। लेकिन उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पुलिस के अयोध्या के अफसरों ने साम्प्रदायिक दंगा फैलाने की कोशिश में सात स्थानीय नौजवानों को गिरफ्तार किया है, और कुछ फरार हैं, सबके-सब हिन्दू हैं। इन्होंने अयोध्या की तीन मस्जिदों और एक मजार पर मुस्लिमों के लिए आपत्तिजनक और अपमानजनक पोस्टर, मांस के टुकड़े, और एक धार्मिक ग्रंथ के फाड़े हुए पन्ने फेंके। ये सारे के सारे लोग सोच-समझकर साजिश और तैयारी से साम्प्रदायिक आग लगा रहे थे, और ऐसा करते हुए इन सबने मुस्लिमों में प्रचलित जालीदार टोपी पहन रखी थी जो कि वीडियो रिकॉर्डिंग में साफ दिख रही है। इन नौजवानों का सरगना एक ऐसा ब्राम्हण है जिसके ऊपर पहले भी साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाडऩे के मुकदमे दर्ज हैं। अयोध्या की पुलिस ने न सिर्फ आनन-फानन इन लोगों को गिरफ्तार किया, सुबूत और रिकॉर्डिंग जुटाई, बल्कि कामयाबी से धरपकड़ करने वाली पुलिस को एक लाख रूपये का ईनाम भी दिया गया है।
इन नौजवानों ने पुलिस को बतलाया कि वे दिल्ली की जहांगीरपुरी में रामनवमी जुलूस पर पथराव को लेकर नाराज थे, और उसका बदला निकालना चाहते थे। अब अगर हिन्दुस्तान के किसी शहर में निम्न-मध्यम वर्ग परिवारों के बेरोजगार लडक़े इकट्ठा होकर कुछ हजार रूपये से तबाही का इंतजाम कर सकते हैं, तो यह नौबत देश के लिए इसलिए खतरनाक है कि आज करोड़ों नौजवान बेरोजगार हैं, इनमें सभी धर्मों के लोग हैं, और इन्हें दूसरे धर्म के लोगों से, सरकार से, समाज से, अदालत से, पुलिस से, एक या कई तबकों से शिकायतें हो सकती है। और ऐसे में अगर वे किसी दूसरे धर्म से हिसाब चुकता करने या दंगा फैलाने का इंतजाम कर सकते हैं, और उसकी तोहमत किसी दूसरे धर्म पर डालने के लिए ऐसी टोपी पहन सकते हैं जिसे कि हिन्दुस्तान में पहनावे से पहचान कहा जाता है, तो यह पूरा देश ही सुलगाया जा सकता है, आग में झोंका जा सकता है। लोगों को याद होगा कि अभी कुछ महीने पहले ही पंजाब में एक से अधिक गुरुद्वारों में विचलित दिखते हुए कमजोर लोगों को पीट-पीटकर मार डाला गया, उन पर ऐसा शक किया जा रहा था कि वे वहां सिक्ख पंथ के प्रतीकों का अपमान करने के लिए पहुंचे थे। महज शक के आधार पर उन्हें भक्तों की भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था। इसके पहले के कुछ दूसरे मामले वहां बरसों से चले आ रहे हैं जिनमें धार्मिक ग्रंथ की बेअदबी की तोहमत है, और वह पिछले चुनाव में एक बड़ा चुनावी मुद्दा भी था।
यह देश कृषि प्रधान देश नहीं है, यह धर्म प्रधान देश है। यहां पर आस्था का प्रदर्शन देश का सबसे बड़ा उत्पादन है। और ऐसे में जिसको जिससे हिसाब चुकता करना हो, उन्हें धर्म नाम का एक हथियार सबसे पहले सूझता है जिससे किसी को मारा जा सकता हो। जब धर्म काम का नहीं रहता, तभी कोई दूसरा हथियार तलाशना पड़ता है। आज देश में धार्मिक आस्था के एक सबसे बड़े प्रतीक, अयोध्या में रमजान के मौके पर इतना बड़ा बवाल करवाने की तैयारी की गई थी जिससे अयोध्या के बाहर भी देश भर में तनाव हो सकता था। देश भर में कुछ जानवरों के मांस, कुछ धार्मिक ग्रंथों के पन्ने लेकर कहीं भी साम्प्रदायिक हिंसा और दंगे करवाए जा सकते हैं। किसी देश को बारूद के ढेर पर इस तरह बिठाकर रखना जायज नहीं है। समझदारी तो यह होती कि इस देश में धर्म की जगह तय की गई होती, धर्म का सार्वजनिक और हिंसक प्रदर्शन बंद किया गया होता, और राजनीति में धर्म, और खासकर साम्प्रदायिकता को घटाया गया होता। लेकिन यह लगातार बढ़ते चल रहा है, इसका कोई अंत भी नहीं दिख रहा है। देश के दो सौ रिटायर्ड नौकरशाहों ने प्रधानमंत्री को एक खुली चिट्ठी लिखकर देश में बढ़ती साम्प्रदायिकता और उस पर प्रधानमंत्री की चुप्पी पर निराशा जाहिर की है। देश की अदालतें भी देश में फैल रहे धार्मिक सैलाब के सामने कड़ाई से पेश आने की हिम्मत शायद नहीं जुटा पा रही हैं। राजनीतिक दलों में से कुछ ऐसे हैं जो कि परजीवी प्राणियों की तरह धर्म और साम्प्रदायिकता पर ही पलते और बढ़ते हैं। यह पूरी नौबत इस देश के वर्तमान और भविष्य दोनों के लिए बहुत ही खतरनाक है। हिन्दुस्तान एक विकसित और सभ्य लोकतंत्र बनने की संभावना रख रहा था, लेकिन अब ऐसी संभावनाएं कम से कम कुछ दशक तो पीछे जा चुकी हैं। आज देश की आबादी के एक बड़े हिस्से की सोच इस हद तक नफरतजीवी, हिंसक, और साम्प्रदायिक हो चुकी है कि वह अपनी बेरोजगारी, पेट्रोल के रेट, बढ़ती महंगाई, सबको भूलकर सिर्फ नफरत खा-पीकर काम चला रहा है, और इसी में उसे आत्मगौरव हासिल है। किसी भी लोकतंत्र के लिए यह नौबत भयानक है जहां पर पूरी की पूरी पीढिय़ां जिंदगी के तमाम असल मुद्दों को छोडक़र सिर्फ भडक़ाऊ साम्प्रदायिकता और राष्ट्रीयता के झूठे गौरव पर अपनी जिंदगी समर्पित कर देने पर आमादा हैं। पता नहीं यह सिलसिला कभी जाकर थमेगा भी, या फिर धर्मराज होने के नाम पर यह देश खत्म ही हो जाएगा।
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