विचार / लेख
-आर.के. जैन
वर्ष 1974 से ही इंदिरा जी की लोकप्रियता व उनके कुछ फैसलों, उनका समाजवादी नीतियों की तरफ झुकाव, अमेरिका की नाराजगी आदि को लेकर उन्हें अस्थिर करने की कुछ ताकतों द्वारा साजिशें रचनी शुरू कर दी गई थी।
ऐसा ही एक मामला रेलवे की हड़ताल का था। समाजवादी व ट्रेड यूनियन लीडर जॉर्ज फर्नाडिस के नेतृत्व में पूरे देश के 17 लाख रेलवे कर्मचारी दिनांक 8 मई 1974 को रेलवे का चक्का जाम कर हड़ताल पर चले गये थे। रेलवे कर्मचारियों की सेवा शर्तों, व वेतनमान को लेकर यह हड़ताल हुई थी। रेलवे किसी भी देश की जीवन रेखा होती हैं तो समझा जा सकता है कि रेलवे का चक्का जाम होने से देश की क्या हालत हुई होगी। बिजलीघरों में कोयले की ढुलाई से लेकर, खाद्यान्न, औद्योगिक सामग्री आदि सब ठप्प हो गई थी। यातायात का सबसे सस्ता और सुगम साधन रेल सेवा ही थी तो यात्रियों को भी कितनी परेशानी हुई होगी सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। तब तक हमारे देश के रोड ट्रांसपोर्ट की क्षमता भी बेहद सीमित थी तो हड़ताली नेताओं को लगा था कि उनकी मांगों के सामने सरकार एक दिन में ही घुटने टेक देगी और उनकी सारी मांगें मान लेगी।
यहां रेलवे यूनियन के नेता मार खा गये क्योंकि उन्होंने इंदिरा जी को आँकने में भारी भूल की थी। हड़ताल शुरू होते ही इंदिराजी ने सख्ती दिखाते हुए यूनियन के नेताओं को जेलों में डाल दिया और हड़ताली कर्मचारियों की सेवाएँ समाप्त करनी शुरू कर दी। उनसे रेलवे के क्वार्टर भी खाली कराने शुरू कर दिये। लगभग 30000 कर्मचारियों व यूनियन नेताओं को रेलवे की नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था। आवश्यक वस्तुओं की माल ढुलाई के लिये सेना व रेलवे के रिटायर्ड कर्मचारियों तथा जो थोड़े कर्मचारी हड़ताल पर नहीं गये थे को लगाया गया ताकि आम जन जीवन प्रभावित न हो। प्रमुख रेल मार्गों की यात्री रेल सेवाएँ भी चालू रखवाई गई थी। कहने का मतलब यह है कि रेलवे हड़ताल से आम जनजीवन बहुत ज़्यादा प्रभावित नहीं होने दिया गया था।
सरकार ने हड़ताली कर्मचारियों व यूनियन नेताओं को यह स्पष्ट कर दिया था कि कर्मचारी बिना शर्त हड़ताल समाप्त कर काम पर लौटे तभी उनसे बात की जा सकती हैं। सरकार की सख्ती का नतीजा यह हुआ कि 20 दिनों तक हड़ताल करने के बाद भी उनकी कोई मांग नहीं मानी गई और सभी कर्मचारी काम पर लौट आये। जिन हड़ताली नेताओं व कर्मचारियों की सेवाएँ समाप्त की गई थी उनमें से कुछ को ही बहाल किया गया था। 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी और उनके नेता जार्ज फर्नांडीज मंत्री बने तो बर्खास्त कर्मचारियों को उम्मीद थी कि उन्हें बहाल कर दिया जायेगा पर जनता पार्टी की सरकार भी उन्हें बहाल न कर सकी थी।
कर्मचारियों का अपनी माँगों को लेकर हड़ताल करने को मैं गलत नहीं मानता पर रेलवे जैसी आवश्यक सेवाओं, जिनसे पूरा देश प्रभावित हो सकता है, देश में अव्यवस्था फैल सकती हैं व देश की सुरक्षा तक खतरे में पड़ सकती है में हड़ताल करने को मैं गलत मानता हूँ। इंदिराजी यदि इस हड़ताल को सख्ती से नहीं कुचलती तो देश में भयानक अराजकता फैल सकती थी और स्वार्थी यूनियन नेताओं को अपनी मनमानी करने का रास्ता मिल जाता। इसी सख्ती के कारण रेलवे में फिर कभी दुबारा हड़ताल नहीं हुई भले ही उनकी सुविधाओं, सेवा शर्तों में कटौती ही क्यूँ न होती रही हो।