विचार / लेख
-सुसंस्कृति परिहार
एक तरफ समान नागरिक अधिकारों की बात सरकार द्वारा उठाई जा रही है जिसे लेकर हालांकि काफी विरोध के स्वर अभी से उठने लगे हैं जबकि अभी यह कानून बनकर सामने नहीं आया है। आज जब अलीराजपुर मध्यप्रदेश आदिवासी समाज से एक समाचार निमंत्रण पत्र के साथ सामने आया तो आंखें खुल गईं। सचमुच कितनी विविधताओं के मिले जुले स्वरुप से भारत बना हुआ है। जिसमें नागरिक अधिकार कितने अलग थलग हैं। संहिता बनाना सहज प्रक्रिया हो सकती है लेकिन लागू करना टेढ़ी खीर होगा।
नानपुर गांव मोरिफलिया अलीराजपुर के पूर्व सरपंच समरथ मौर्य के प्रेम प्रसंग का एक विचित्र मामला सामने आया है। समरथ नाम का 35 वर्षीय भिलाला युवक 15 साल तक अपनी तीन प्रेमिकाओं के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहा वे तीन क्रमश: 33,28 और 25वर्ष की हैं। इन तीनों से समरथ के छै बच्चे हैं। समरथ ने विगत 30 अप्रैल और 1 मई की दरमियानी रात्रि में परम्परागत तौर पर वैवाहिक पूरी रस्में करते हुए अपनी दुल्हन त्रयी के साथ फेरे लिए। विशेष बात ये उनके बच्चे बाराती बने हुए थे। इस शादी में बड़ी संख्या में समाज के स्त्री पुरुष शामिल रहे। हालांकि बड़ी यानि पहली पत्नी नानीबाई को विशेष रुप से सजा संवारा गया। शायद बड़ी होने के कारण।
सवाल इस बात का है कि भिलाला आदिवासी समाज में जब लिव इन रिलेशनशिप की छूट है दो तीन लड़कियों से संबंध रख बच्चे पैदा करने की भी छूट है तो फिर इतने वर्षों बाद शादी की जरूरत क्यों इन पड़ी? वस्तुत:भिलाला समाज ने एक परिपाटी बना रखी है जब तक वे शादी की रस्में पूरी नहीं करते तब तक उन्हें समाज के मांगलिक कार्यों से वंचित रखा जाता है जो अपमान जैसा है। इसीलिए इन शादियों की जरूरत पड़ी। उधर समरथ की माली हालत इतनी समर्थ नहीं थी कि वह तीन पत्नियों नानबाई, मेला और सकरी के साथ शादी का खर्चा वहन कर सके इसीलिए इतनी देर हो गई। अब जब वह समर्थ हुआ उसने बाकायदा शानदार निमंत्रण पत्र छपवाकर धूमधाम से शादी की। आदिवासी समाज में कम से कम प्रेम की महत्ता तो है और उसे निभाने का दुस्साहस भी।
आदिवासी समाज की ये शादी लोगों के बीच काफी चर्चित है लगता है लोग मुश्किल में ना पड़ जाएं। यकीनन समान नागरिक संहिता ना होने की वजह इस तरह की स्थितियां सामने आईं हैं। वस्तुस्थिति यह है कि शादी गैर संवैधानिक नहीं है भारतीय संविधान का अनुच्छेद 342 आदिवासी समाज के रीति-रिवाज एवं विशिष्ट सामाजिक परम्पराओं को संरक्षण देता है। इसलिए आदिवासी समाज में घटित इस घटना से विचलित ना हों।
जहां तक समान नागरिक संहिता की बात है वह एकाएक लागू नहीं की जा सकती है। इसके लिए बहुत गहरे अध्ययन और समझ के बाद ही बनाना चाहिए वरना स्थितियां बिगड़ते देर नहीं लगेगी।