विचार / लेख
-शंभुनाथ
प्रेमचंद की कहानी ‘ईदगाह’ करोड़ों लोगों ने पढ़ी होगी। यह एक बड़ी मार्मिक कहानी है। कहानी ऐसी चीज है कि वह सबकी होती है, धर्म- जाति से ऊपर उठकर सबको अपील करती है।
‘ईदगाह’ में बच्चे हामिद का मेले में चिमटा चुनना कई संकेतों से भरा है। प्रेमचंद अपनी रचनाओं में जो कुछ चुनते हैं, उसके पीछे एक चेतना होती है। उनके समय बाजारवाद का वैसा प्रचंड रूप न था, जैसा आज है। ईद हो दिवाली हो, कोई त्यौहार हो बाजार ही खुशियों का स्रोत हो जाता है। इस कहानी का मार्मिक स्थल वह है, जब हामिद अमीना को चिमटा लाकर देता है और वह बच्चे को डांटती है, फिर रोने लगती है!
लेकिन ‘ईदगाह’ बड़े स्प्ष्ट ढंग से बताती है कि बाजार में दो तरह की चीजें होती हैं-‘प्रलुब्धकारी’ और ‘जरूरी’! हामिद तेज हवा में न बहकर प्रलुब्धकारी वस्तुओं की जगह जीवन में जो जरूरी है, वह चुनता है। इस तरह ‘ईदगाह’ मुख्यत: बाजारवाद या उपभोक्तावाद से विद्रोह की कहानी है।
आज हमारे जीवन में उपभोक्तावाद ने ‘प्रलुब्धकारी’ और ‘जरूरी’ का फर्क मिटा दिया है, जिस तरह राजनीति ने धर्म और सांप्रदायिकता का। फिलहाल इन विडंबनाओं से बाहर निकलने की राह सूझ नहीं रही है, फिर भी आपको ‘ईद मुबारक’ तो कह ही सकते हैं!
यह भी याद कर सकते हैं कि अक्षय तृतीया है आज। माना जाता है कि आज ही महाभारत युद्ध का अंत हुआ था! इसका एक और मतलब है, आज के दिन कोई नया काम करने के लिए पंचांग में शुभ मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती। पुरोहित हाशिए पर होते हैं। एक और कथा है, जो मुख्य है-आज के दिन पांडवों को सूर्य से अक्षय पात्र मिला था!
कोई पर्व हो, उसे आज अपना बटुआ खोलने का पर्व बना दिया जा रहा है या घर से लाठी- तलवार निकालने का, जबकि सारे पर्व होते हैं अपना दिल खोल देने के लिए!
आम मनुष्य को मनुष्यता के जन्म से जो अक्षय पात्र मिला है, वह है उसका हृदय, उसका विवेकी मन! इस पर कभी- कभी धर्मांधता और बाजार सभ्यता के आवरण चढ़ जाते हैं। पर क्या मनुष्य को अंतिम रूप से हृदयहीन और विवेकहीन किया जा सकता है? मानव विवेक अक्षय है!!