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गर्भपात : सुप्रीम कोर्ट को नहीं है औरतों के जीवन की कद्र
05-May-2022 3:58 PM
गर्भपात : सुप्रीम कोर्ट को नहीं है औरतों के जीवन की कद्र

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट महिलाओं के हाथ से सुरक्षित गर्भपात का अधिकार लगभग पूरी तरह वापस लेने की सोच रखती है। डीडब्ल्यू की कार्ला ब्लाइकर इसे एक खतरनाक और क्रूर कदम बताती हैं, जिससे महिलाओं का जीवन खतरे में पड़ जाएगा।

  डॉयचे वैले पर कार्ला ब्लाइकर का लिखा-

अगर सुप्रीम कोर्ट की चले तो अमेरिका में ऐसी किसी भी औरत के लिए रहने लायक जगह नहीं बचेगी जिसका गर्भ ठहर सकता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के लीक हुए ड्राफ्ट से पता चला कि वह ऐतिहासिक रो वर्सेज वेड फैसले को पलटने की तैयारी में हैं। यह वही कानून है जिससे गर्भपात का राष्ट्रव्यापी अधिकार मिला था। सन 1973 में रो वर्सेज वेड मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर गर्भपात के अधिकार को संवैधानिक मान्यता मिली थी।

सन् 1992 के एक फैसले में इस अधिकार को बरकरार रखा गया था, उसे भी पलटे जाने की योजना है। यह बातें सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सैमुएल एलीटो के लिखे ओपिनियन में सामने आई है जिसे उजागर किया पोलिटिको नाम के प्रकाशन ने।  ‘रो शुरु से ही भयंकर रूप से गलत है, इसे पलटने का वक्त आ गया है। अब समय आ गया है कि संविधान का पालन करें और गर्भपात का मुद्दा लोगों के द्वारा चुने प्रतिनिधियों के हाथ में दे दिया जाए।’

रिपब्लिकन राज्य कर रहे हैं गर्भपात पर प्रतिबंध लगने का इंतजार
अगर सुप्रीम कोर्ट इस रास्ते पर आगे बढ़ती है तो अमेरिका के सभी राज्य अपने यहां इससे जुड़े कानून बना सकेंगे। राज्यों के गवर्नर और राज्य विधायिकाएं चाहें तो राज्य में गर्भपात पर पूरी तरह रोक लगा सकेंगी। कई सालों से गर्भपात को लेकर अमेरिका में छिड़ी बहस को करीब से देखा है कार्ला ब्लाइकर ने।

रिपब्लिकन पार्टी के शासन वाले कई राज्यों ने पहले ही इसे साफ कर दिया है कि वो ऐसा करना चाहते हैं। टेक्सस और मिसीसिपी जैसे राज्य हाल में गर्भ गिराने से जुड़ी कई सख्तियां लेकर आए हैं। कंजर्वेटिव सांसदों को ऐसा करने से कोई भी रोक नहीं पाएगा अगर एक बार गर्भपात के केंद्रीय अधिकार को वापस ले लिया गया।

यानि अगर आप गर्भवती होने की उम्र और हालत में हैं तो साफ संदेश है कि अमेरिका की सबसे बड़ी अदालत को आपकी कोई परवाह नहीं है। आपके चुने प्रतिनिधि भी उसके फैसले को लागू करने में बिल्कुल भी समय नहीं गंवाएंगे। ना ही उन लोगों को आपकी पड़ी है जो किसी भी कीमत पर भ्रूण की जान बचाने के लिए ‘प्रो-लाइफ’ का नारा लाए और उसे राजनीति की मुख्य धारा में जगह दे दी।

इनमें से किसी ने एक बार भी उस महिला के जीवन के बारे में परवाह नहीं की जिसके गर्भ में वह भ्रूण पलेगा। महिलाओं के जीवन की ऐसी अनदेखी करना क्रूर है। आखिर, गर्भपात के लिए हर तरह का कानूनी रास्ते बंद करने के बाद भी वे किसी ना किसी तरह तो ऐसा करेंगी ही। सीधे तौर पर इसका मतलब होगा कि उन्हें दूसरे रास्ते, जो कि अकसर असुरक्षित होते हैं, अपनाने होंगे। जिसके पास सामथ्र्य होगी वह  किसी डेमोक्रैट शासित राज्य में जाएगी। जहां उसे गर्भपात की सुविधा और देखभाल मिल सकती है। जिसके पास पैसे नहीं होंगे या अपना काम काज या स्कूल छोडक़र, छुट्टी लेकर किसी और राज्य में जाने की सुविधा भी नहीं होगी वह दूसरे रास्ते पकडऩे के लिए मजबूर हो जाएगी।

एक सुरक्षित, साफ सुथरे और कानूनी रास्ते को बंद कर असहाय लोगों को अवैध गर्भपात के रास्ते पर धकेलना कैसे सही ठहराया जा सकता है। इसमें तो कितनी ही जानें जाने का खतरा है।

क्यों नहीं होना है गर्भवती? बुरी बात
अमेरिका की हर लडक़ी, औरत और कोई भी जो गर्भवती हो सकती है, लेकिन नहीं होना चाहती, सोचिए उस पर कितना दबाव होगा। यही हाल उन सबका होगा जो सोच समझ कर अपना परिवार नियोजन करना चाहते हैं और किसी मेडिकल कारण से गर्भपात करवाना चाहते हैं। उनकी सोचिए जो यौन दुव्र्यवहार, बलात्कार वगैरह के चलते गर्भवती हुई हों। एक तो सदमा और ऊपर से गर्भ को पालने की मजबूरी- उन्हें किस हाल में छोड़ेगी।

गर्भ गिराने का कानूनी अधिकार ना होने से इसके लिए जो असुरक्षित रास्ते आजमाए जाएंगे, उनसे तो जान पर बन आना तय है। किसी और मामले में अगर महिला को कोख में पल रहे बच्चे को पूरे वक्त तक रखने की मजबूरी हो, तो उसकी मानसिक दशा पर कितना बुरा असर पड़ेगा।

सुप्रीम कोर्ट से लीक हुई बात को अगर अमली जामा पहना दिया जाता है तो इसी के साथ पांच दशकों से महिलाओं को मिले उनके शरीर और जीवन से जुड़े यह अहम फैसला लेने का अधिकार छिन जाएगा। इसके बाद तो हर राज्य अपने अपने हिसाब से कानून बनाकर महिलाओं से इस चुनाव की सीमाएं तय करने को आजाद हो जाएगा।

यह वही आजादी और बहादुरी की धरती है जहां कंजर्वेटिव राज्यों में मुंह और नाक पर मास्क पहन कर रखने की मजबूरी को लोग अपनी निजी स्वतंत्रता के अधिकार का हनन मानते थे। उन्हीं राज्यों में अब गर्भवती होते ही किसी इंसान से उसके निजी अधिकार, शरीर पर अधिकार, अपने जीवन से जुड़े अहम फैसले लेने का अधिकार, सब हवा होने जा रहा है। (dw.com)

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