विचार / लेख
संजीव भागवत गुप्ता
छत्तीसगढ़ अपने घने वनों के साथ-साथ प्रचुर प्राकृतिक संपदा के लिए भी जाना जाता है। लेकिन प्रकृति द्वारा प्रदत्त यह उपहार एक दूसरे के पूरक नहीं है। यदि आपको जमीन के भीतर छिपे खनिज को बाहर निकालना होगा तब वनों की बलि देनी होगी और यदि वन चाहते हैं तब आपको खनिज संपदा से दूर रहना होगा। यही इन दिनों सरगुजा क्षेत्र में हो रहा है। सरगुजा के घने जंगलों के नीचे बड़ी मात्रा मेंं कोयला छिपा हुआ और यह क्षेत्र पेड़ों तथा जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियों को अपने भीतर समेटे हुए उन्हें पल्लवित और पोषित कर रहा है। क्षेत्र में कोयला खनन का विरोध करना यहां के निवासियों के लिए स्वाभाविक है क्योंकि खनन से वहां पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान होगा और अंतत:खामियाजा वहां निवास करने वाले मनुष्य और जीव-जंतु को ही भुगतना होगा।
अब सवाल उठता है कि ऐसे में किया जाए, क्योंकि यदि कोयला खनन नहीं हुआ तब बिजली नहीं मिलेगी और विकास कार्य ठप होगा। और यदि कोयला खनन हुआ तब सैकड़ों एकड़ में जंगल कटेंगे।
क्या यह केवल सरगुजा क्षेत्र, या छत्तीसगढ़, या केवल भारत की समस्या है। जवाब सीधा सा है कि पूरा विश्व इस समस्या से जूझ रहा है। मनुष्य के विकास में विज्ञान का प्रमुख योगदान रहा है और नए अविष्कारों ने मानव जीवन को आसान किया है। लेकिन इससे प्रकृति को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है।
अब फिर सवाल उठता है कि क्या हम इससे चेते या वही गलती लगातार कर रहे हैं। अभी की परिस्थिति में तो कहा जा सकता है कि हम नहीं चेते हैं।
अब इस समस्या का समाधान क्या हो सकता है?
यह स्वाभाविक सी बात है कि जहां समस्या होगी वहां समाधान भी होगा। हां उस समाधान की तरफ हम कितना कदम बढ़ाते हैं यह हमारे ऊपर निर्भर करता है। प्रकृति ने धरती के भीतर यदि कोयला दिया है तब बाहर सूर्य का प्रकाश, हवा और पानी भी तो दिया है। विज्ञान ने सूरज की रोशनी, हवा और पानी से बिजली बनाने का अविष्कार तो कर ही लिया है, लेकिन सरकारें इसे क्यों नहीं प्रोत्साहित करती हैं?
यह प्रकृति का ही वरदान है कि भारत के कई राज्यों में साल भर पर्याप्त मात्रा में सूर्य की रोशनी रहती है और यहां के घर सौर ऊर्जा से रौशन हो सकते हैं। सरकार क्यों नहीं ऐसी योजना लाती है कि सभी घरों में सौर ऊर्जा लगाना अनिवार्य हो। इसके लिए सरकार सब्सिडी भी दे सकती है। इससे स्वाभाविक रूप से कोयला खदानों की निर्भरता कम होगी। यही योजना पवन और पन-बिजली के लिए भी ला सकते हैं। यह कार्य गांव, कस्बों और शहरों में सहकारी रूप में भी किया जा सकता है।
देश के वैज्ञानिक लगातार नई खोजों के लिए कार्य कर रहे हैं स्वाभाविक है कि इस ओर भी कार्य हो रहा होगा। यदि आप सवाल उठाएंगे कि सौर ऊर्जा खर्चीला है तब इसे कैसे आम आदमी की पहुंच के लिए आसान बनाया जाए इस पर भी विचार होने चाहिए। यदि सरकार और जनता चाहे तब यह असंभव नहीं है।
अब यदि धरती का सीना चीर कर कोयला निकालना और वनों को बर्बाद करना आसान और फायदेमंद लगता है तब यह समस्या आने वाले समय में और विकराल होती जाएगी।