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मीडिया का सच-पत्रकार पिता-पुत्र की पीड़ा, घर चलाना मुश्किल, काम की तलाश!
09-May-2022 2:44 PM
मीडिया का सच-पत्रकार पिता-पुत्र की पीड़ा, घर चलाना मुश्किल, काम की तलाश!

लगभग 70 साल के नचिकेता देसाई , नारायण देसाई के पुत्र और महादेव देसाई के नाती हैं। उनके दादा गांधीजी के सचिव रहे। पटेल की जीवनी लिखी। खुद नचिकेता कई बड़े अखबारों में काम कर चुके। बेटा टाईम्स ऑफ इंडिया में काम कर रहा था, वह पिछले साल छंटनी का शिकार होकर बेरोजगार हो गया है, अब वे फेसबुक पर पोस्ट करके काम मांग रहे हों।

-पंकज मुकाती
दो दिन पहले फेसबुक पर एक पोस्ट पढ़ी। जिसने अंदर तक झकझोर दिया। ये पोस्ट एक वरिष्ठ पत्रकार ने लिखी है। जिनका नाम है नचिकेता देसाई।  

#Nachiketa Desai  वरिष्ठ पत्रकार हैं। नचिकेता जी की पीड़ा इस देश के तमाम ईमानदार पत्रकाओं की पीड़ा है। नचिकेता को इस उम्र में बीमारी के बावजूद काम की तलाश है। क्योंकि कोरोना के बाद हुई स्टाफ की कटौती में उनके बेटे को भी टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बाहर कर दिया गया।

-वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता देसाई फ़ेसबुक पर लिखते हैं-
We are facing dire financial crisis. My son, also a journalist, lost his job last year January when the Times of India laid off hundreds of journalists across the country. Right now, I am the only earning member who slogs as an editor, writer, translator for anyone who needs their work to be done. Both my son and I can take up writing, editing, translation (from Gujarati to English, Hindi to English and vice versa). Please spread the word – we are up for hire.

यानी वे सीधे-सीधे आजीविका के लिए काम की तलाश में हैं। पिता-पुत्र दोनों गहरे आर्थिक संकट में हैं। नचिकेता देसाई ने देश के नामी मीडिया घरानों में काम किया है।  कई बड़े पत्रकारों और मेरे पत्रकारिता की पढाई के दिनों में मैं उनका नाम सुनता रहा हूँ। कई गांधीवादी लोग नचिकेता जी और पिता के कामों और उनकी ईमानदारी के किस्से सुनाते रहे हैं।

ये महात्मा गांधी के अनन्य सहयोगी रहे महादेव देसाई के पोते हैं। इनके नाना ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे हैं। ऐसे नामी घराने और गांधीवादी जीवन, ईमानदार पत्रकारिता वाले नचिकेता को आज तंगी से गुजरना पड़ रहा है। वे फेसबुक पर काम मांग रहे हैं। उनके पास घर चलाने का कोई इंतजाम नहीं है।

नचिकेताजी ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि -वे  आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। उनका बेटा टाईम्स ऑफ इंडिया में नौकरी करता था, छंटनी का शिकार हो गया, तबसे बेरोजगार है। नचिकेता देसाई गुजराती और हिंदी से अंग्रेजी में ट्रांसलेशन करते हैं, लेकिन उनको काम नहीं मिल रहा है।

नचिकेता देसाई के परिवार की गांधीवादी विचारकों और गांधीवाद को मानने वालों के बीच बड़ी प्रतिष्ठा है। उनके बाबा महादेव देसाई गांधीजी के सचिव थे। उन्होंने सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ बारडोली सत्याग्रह चलाया।
सत्याग्रह पर लिखी गई महादेव भाई की किताब से ही सरदार की उपलब्धियों का पता चलता है। सरदार पटेल की जीवनी भी महादेव देसाई ने ही लिखी। पटेल के जिंदा रहते लिखी गई ये पहली जीवनी है। संभवत: इस जीवनी के बाद ही पटेल की लौह पुरुष की छवि और मजबूत होकर सामने आई।

नचिकेता देसाई के पिता नारायण देसाई भी गांधीवादी थे। उन्होंने भी तमाम किताबें लिखीं जिसमें महादेव देसाई की जीवनी भी शामिल है। नारायण देसाई ने इंदिरा गांधी के खिलाफ आंदोलन किया और जनता पार्टी के साथ गए।

वह महात्मा गांधी ही थे जिन्होंने इतने बड़े और पढ़े लिखे और अंग्रेजों के दौर में नोटों में खेलने वाले सरदार पटेल और महादेव देसाई जैसे लोगों को खादी पहनकर घूमने को बाध्य कर दिया। वह गांधी ही थे जिन्होंने इतने उच्च स्तर के पढ़े-लिखे लोगों को निजी सम्पदा नहीं बनाने दिया, न खुद निजी सम्पदा बनाई।

आज गांधी, पटेल के सहयोगी और ओडिसा के मुख्यमंत्री रहे परिवार को ऐसा संकट झेलना पड़ रहा है। इस पर कोई यकीन करेगा ? यकीनन नहीं। पर ये संभव है। बहुत से चेहरे जो ईमानदारी से पत्रकारिता में हैं उनके पास आज वाकई रोजी-रोटी तक का संकट है।

ऐसे कई लोगों को मैं जानता हूँ जो लिखने-पढऩे के अपने पेशे से जुड़े हुए है, पर आजीविका के लिए कोई ऐसा काम कर रहे हैं, जो उनके लिए बेहद मजबूरी और आत्मग्लानि का है। पर कोई और चारा रह नहीं जाता।

मैं नाम नहीं लिखूंगा पर पिछले तीन साल में ऐसे कई पत्रकार, फोटोग्राफर साथियों को देखा है। ऐसी लम्बी फेहरिस्त है जिसमे ईमानदार पत्रकार और फोटो जर्नलिस्ट नाश्ते की दूकान चलाते, अचार बेचते, किसी शॉपिंग मॉल में काउंटर पर खड़े रहने की नौकरी कर रहे हैं। क्योंकि उनके पास आजीविका का कोई
साधन नहीं है।

पर इन सबने पत्रकारिता को फिर भी नहीं छोड़ा है क्योंकि इन्हे अपने पेशे से प्यार है। ये भले इस पेशे में आई तंगहाली को लेकर तल्ख टिपण्णी करते हों। इस के  ब्लैकमेलर, गिरोह वाले स्वरुप में खुद को फिट नहीं पाते हो, पर अंत में यही कहते हैं- पत्रकारिता करते रहेंगे।

ऐसे जज्बे वाले लोगों के साथ ये संकट निश्चित हो सकता है। क्योंकि ईमानदार और ऊपर से सच्चा पत्रकार हमेशा खुद्दारी से जीता है। उसे किसी के आगे हाथ
फैलाने में आत्मग्लानि का भाव रहता है। वो ये मानता है कि मैं जिस पेशे में रहा हूँ वहां मैंने कई लोगों की सेवा की है।  अब मैं हाथ कैसे फैला दूँ।

निश्चित ही नचिकेता जी ने बहुत मुश्किल से इस पोस्ट के लिए खुद के मन को राजी किया होगा। बावजूद इसके उन्होंने किसी से पैसे नहीं काम माँगा है, यही एक ईमानदारी है, इस पेशे की ईमानदार कौम की।
कई लोगों ने नचिकेता जी को पैसे की मदद का ऑफर किया पर उन्होंने अपनी अगली पोस्ट में लिखा है। मुझे पैसे या दया नहीं चाहिए मुझे काम चाहिए।

 नचिकेता जी की दूसरी पोस्ट -
A couple of friends offered money after they read my post that my family is in a money crisis as there is no work for me and my son. I am not seeking alms, I am seeking work that pays.
ये अकेले नचिकेता देसाई की ही समस्या नहीं है। अपने आसपास देखेंगे तो आपको मीडिया के  कई ऐसे चेहरे मिलेंगे जो मुस्कुराते हुए दिखेंगे पर उनके भीतर बड़ा सा सूखा दौड़ रहा होगा। काम का, सम्मान का पैसे का।

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