विचार / लेख
यादों का पन्ना
-आर.के. जैन
आजादी से पहले ही तीन रियासतों के अलावा सभी देशी रियासतों के राजाओं ने भारतीय गणराज्य में विलय के पत्रों पर हस्ताक्षर कर दिये थे। छोटी बड़ी सब मिलाकर 625 रियासतें थीं। कुछ राजाओं के पास अपनी सेना और अपने कानून थे पर सभी रियासतें अंग्रेजों के अधीन थी। ये रियासतें जनता से लगान/टैक्स वसूलती और एक निश्चित रक़म अंग्रेजी खजाने में जमा करती थी और शेष रकम से अपना गुजारा करते थे।
भारत में विलय की शर्तों में इन राजाओं को रियासत के आकार के हिसाब से प्रिवी पर्स देने का प्रावधान था। प्रिवी पर्स के अलावा उनके महलों और साज संपत्ति पर भी उनका ही अधिकार था। देश की 662 रियासतों को प्रिवी पर्स के रूप में एक निश्चित राशि मिलती थी। छह रियासतों को तो 26.00 लाख से 15.00 लाख रुपये सालाना मिलते थे। दस लाख रुपये से ज़्यादा रक़म पाने वाली रियासतों की संख्या कुल पंद्रह थी जबकि लगभग 102 रियासतों को लगभग 1.00 लाख रुपये ही मिलते थे। कुछ रियासतों को तो 5000/- रुपये से भी कम मिलते थे। मैसूर, हैदराबाद, त्रावणकोर, जयपुर, पटियाला और बड़ौदा रियासतों को सबसे ज़्यादा रक़म मिलती थी। प्रिवी पर्स राजाओं और उनके उत्तराधिकारियों को आजीवन मिलना तय हुआ था जिसमें 1947 को आधार वर्ष मान कर हर साल बढ़ोतरी होती थी। उस समय सोने के भाव लगभग पचास रुपये प्रति तोला था जबकि इस समय सोना पचास हजार रुपये प्रति दस ग्राम है।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राजाओं को दिये जाने वाले प्रिवी पर्स पर वर्ष 1969 में एक अध्यादेश के जरिये रोक लगा दी थी जिसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा निरस्त कर दिया गया था। संसद में उस समय कांग्रेस के पास पूर्ण बहुमत नहीं था तो इंदिरा जी ने समय पूर्व 1971 में लोकसभा के चुनाव कराकर दो तिहाई से ज़्यादा बहुमत लेकर 26 वाँ संविधान संशोधन पारित कर प्रिवी पर्स को स्थायी रूप से बंद कर दिया था। दरअसल उस समय के राजे महाराजों ने भारतीय गणतंत्र में विलय तो मजबूरीवश कर दिया था पर उनका जनता के प्रति रवैया नहीं बदला था। आम जनता के प्रति सामंती व्यवहार और उन्हें हीन भावना से देखना उनकी आदत में शुमार था। प्रिवी पर्स बंद होने के साथ साथ उन्हें जो भी विशेषाधिकार थे सब बंद हो गये थे और वह भी आम नागरिक बन गये थे।
बैंकों का राष्ट्रीयकरण और प्रिवी पर्स का बंद किया जाना ये दोनों इंदिरा जी के सबसे बड़े क्रान्तिकारी कदम आज भी माने जाते है जिन्होंने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में जान डाली थी और देश को सच्चे अर्थों में गणतंत्र बनाया था जिसने सब नागरिकों को बराबरी का अधिकार दिया था।