संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : साइबर जुर्म अब खुदकुशी की वजह बनते जा रहे हैं, तुरंत जागरूकता की जरूरत
17-May-2022 3:50 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : साइबर जुर्म अब खुदकुशी की वजह बनते जा रहे हैं, तुरंत जागरूकता की जरूरत

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से साइबर ठगी की एक भयानक खबर सामने आई है। एक महिला को 25 लाख रूपए की लॉटरी लगने का झांसा देकर ठगों ने उससे 9 लाख रूपए अपने बैंक खातों में जमा करा लिए, और फिर जब महिला को समझ आ गया कि उसे ठगा जा चुका है तो उससे यह रकम वापिस करने के नाम पर उसका एक नग्न वीडियो बनवाकर ठगों ने बुलवा लिया। इसके बाद ठगों ने उससे 5 लाख रूपए और मांगे, और यह रकम न भेजने पर यह वीडियो उसके पति के मोबाइल पर भेज दिया गया। इसके बाद पुलिस में शिकायत करने के अलावा और कुछ बचा नहीं था, और इस तरह यह मामला उजागर हुआ।

हर दिन सोशल मीडिया और मोबाइल फोन के रास्ते लोगों को ठगने और ब्लैकमेलिंग में फंसाने के अनगिनत मामले हो रहे हैं। देश भर में हर दिन हजारों ऐसे मामलों की पुलिस में रिपोर्ट भी हो रही है। किसी भी आम मोबाइल फोन पर कोई ऐसा दिन नहीं गुजरता जब ठगी और जालसाजी के कुछ फोन न आएं, और लोगों को फंसाने की कोशिश न की जाए। अभी लगातार एक नए किस्म का जाल इस्तेमाल हो रहा है जिसमें वॉट्सऐप कॉल पर लड़कियां अपनी नग्न तस्वीरों और नग्न वीडियो से लोगों को फंसा रही हैं। पहले वे कपड़े उतारते अपने वीडियो दिखाती हैं, और फिर लोगों को उकसाती हैं कि वे भी कपड़े उतारकर दिखाएं। सेक्स को लेकर भड़ास और कुंठा से लबालब हिन्दुस्तानी मर्द तुरंत इस जाल में फंस रहे हैं, और एक बार बिना कपड़ों का उनका वीडियो मुजरिमों के हाथ लग जाता है, तो उनके बदन की आखिरी बूंद तक निचोड़ लेने तक उन्हें ब्लैकमेल किया जाता है, और ऐसे कई मामलों में आत्महत्याएं भी हो चुकी हैं।

यह पूरे का पूरा मामला सोशल मीडिया, मोबाइल फोन, और सेक्स या पैसों की चाह से जुड़ी जालसाजी और धोखाधड़ी का है। मामूली ठगी से लेकर ब्लैकमेल करके आत्महत्या को मजबूर करने तक का काम धड़ल्ले से चल रहा है, लेकिन इस देश की सरकारें अपनी सारी तकनीकी क्षमता के रहते हुए भी ऐसे साइबर-मुजरिमों को पकडऩे में महीनों का वक्त लगा देती हैं, तब तक ऐसे लोग दर्जनों और लोगों को फंसा चुके रहते हैं। देश के कुछ चुनिंदा गांव ऐसे साइबर अपराधों के लिए इतनी अच्छी तरह शिनाख्त में आ चुके हैं कि वहां की पूरी नौजवान पीढ़ी इसी काम को एक पेशे की तरह अपना चुकी है। झारखंड का जामताड़ा नाम का गांव इसी धंधे के लिए तरह-तरह के मोबाइल फोन चोरों से जुटाता है, और एक-एक व्यक्ति दर्जनों सिमकार्ड रखकर रात-दिन ठगी में लगे रहता है। टेक्नालॉजी के मामले में पुलिस और दूसरी जांच एजेंसियां मुजरिमों से कई कदम पीछे चलती हैं, और मुजरिम जगह भी बदलते रहते हैं, और तरीके भी।

आज सरकार और समाज दोनों को लोगों को जागरूक करने की बहुत जरूरत है। हर तरह के सामाजिक संगठन अपने सदस्यों को इक_ा करके पुलिस के किसी जानकार व्यक्ति को बुलाकर उससे भाषण करवा सकते हैं कि साइबर अपराधों से किस तरह बचा जाए, और सोशल मीडिया पर अनजाने लोगों के जाल में फंसने से कैसे बचा जाए। जागरूकता अभी भी जांच, अदालती कार्रवाई, और नुकसान के मुकाबले बहुत सस्ती पड़ेगी। ऐसे मुजरिमों से पूरी रकम तो कभी भी बरामद नहीं हो पाती है, और सरकार का बहुत सारा खर्च ऐसी जांच और बाद की कार्रवाई में होता है। इसलिए राज्य सरकारों को अपने स्तर पर सामाजिक संगठनों, स्वयंसेवी संस्थाओं, या तरह-तरह के क्लबों, कर्मचारी संघों के साथ मिलकर जागरूकता कैम्प चलाने चाहिए, अभी पकड़ाए जा रहे जुर्म के तरीके भी बताने चाहिए, और लोगों को सावधान रहने को कहना चाहिए। दरअसल देश में डिजिटल तकनीक, मोबाइल पर बैंकिंग, आधार कार्ड या टीकाकरण जैसे कामों का ऑनलाईन होना ऐसी बातें हो गई हैं कि लोगों के फोन पर कई तरह के संदेश आते हैं, उनसे टेलीफोन पर कई तरह की जानकारी ली जाती है। कहने के लिए तो भारत सरकार ने ऑनलाईन ठगी की खबर देने के लिए अपना नंबर दिया हुआ है, लेकिन उसकी जानकारी अधिक लोगों को अभी भी नहीं है, या फिर लोगों का सरकारी इंतजाम पर उतना भरोसा भी नहीं है। चूंकि ऑनलाईन बैंकिंग जैसे काम और सोशल मीडिया का इस्तेमाल लगातार बढ़ते जाना है, इसलिए जागरूकता के अलावा दूसरा कोई बचाव का रास्ता नहीं है। सरकारें अगर चाहें तो स्कूल की बड़ी कक्षाओं और कॉलेज में छात्र-छात्राओं को साइबर-जुर्म की ओर से जागरूक करने का अभियान चला सकती हैं क्योंकि इस उम्र के अधिकतर बच्चे मोबाइल फोन, सोशल मीडिया, और एटीएम वगैरह का इस्तेमाल करते ही रहते हैं। अब साइबर जुर्म मोबाइल ऐप के मार्फत कर्ज देकर हिंसक तरीके से उसकी वसूली जैसा विस्तार कर चुका है, इसलिए सरकारों को इसे गंभीरता से लेना चाहिए।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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