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'पवन हंस' के निजीकरण में भ्रष्टाचार के आरोप, लगी रोक
17-May-2022 4:04 PM
'पवन हंस' के निजीकरण में भ्रष्टाचार के आरोप, लगी रोक

सरकारी हेलीकॉप्टर कंपनी पवन हंस के निजीकरण में भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद सरकार ने प्रक्रिया को फिलहाल रोक दिया है. आरोप है कि पवन हंस के भावी खरीदार के रूप में एक दागी कंपनी को चुना गया था.

  डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट- 

'पवन हंस' हेलीकॉप्टर उपलब्ध कराने वाली भारत सरकार की कंपनी है. कंपनी पर 51 प्रतिशत मालिकाना अधिकार भारत सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्रालय का है और 41 प्रतिशत तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) का है. 2017 में भारत सरकार ने कंपनी के निजीकरण का फैसला लिया था.

दिसंबर 2021 में पवन हंस को खरीदने के लिए सरकार को तीन बोलियां मिली थीं. जिस बोली को अंत में भारत सरकार ने चुना वो 'स्टार9 मोबिलिटी' नामक तीन कंपनियों के एक कंसोर्टियम की था. ये तीन कंपनियां थीं 'बिग चार्टर', 'महाराजा एविएशन' और 'अल्मास ग्लोबल ऑपरट्यूनिटी फंड'.

क्या है मामला

इस कंसोर्टियम में सबसे ज्यादा मालिकाना अधिकार (49 प्रतिशत) अल्मास का है. पिछले कुछ दिनों में कुछ मीडिया रिपोर्टों की बदौलत सामने आया कि अल्मास के खिलाफ एक अलग मामले में नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) ने आदेश दिए हुए हैं.

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'पवन हंस' के निजीकरण में भ्रष्टाचार के आरोप, लगी रोक

सरकारी हेलीकॉप्टर कंपनी पवन हंस के निजीकरण में भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद सरकार ने प्रक्रिया को फिलहाल रोक दिया है. आरोप है कि पवन हंस के भावी खरीदार के रूप में एक दागी कंपनी को चुना गया था.

'पवन हंस' हेलीकॉप्टर उपलब्ध कराने वाली भारत सरकार की कंपनी है. कंपनी पर 51 प्रतिशत मालिकाना अधिकार भारत सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्रालय का है और 41 प्रतिशत तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) का है. 2017 में भारत सरकार ने कंपनी के निजीकरण का फैसला लिया था.

दिसंबर 2021 में पवन हंस को खरीदने के लिए सरकार को तीन बोलियां मिली थीं. जिस बोली को अंत में भारत सरकार ने चुना वो 'स्टार9 मोबिलिटी' नामक तीन कंपनियों के एक कंसोर्टियम की था. ये तीन कंपनियां थीं 'बिग चार्टर', 'महाराजा एविएशन' और 'अल्मास ग्लोबल ऑपरट्यूनिटी फंड'.

क्या है मामला

इस कंसोर्टियम में सबसे ज्यादा मालिकाना अधिकार (49 प्रतिशत) अल्मास का है. पिछले कुछ दिनों में कुछ मीडिया रिपोर्टों की बदौलत सामने आया कि अल्मास के खिलाफ एक अलग मामले में नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) ने आदेश दिए हुए हैं.

'द वायर' और 'न्यूजक्लिक' वेबसाइटों पर छपी रिपोर्टों के मुताबिक यह मामला कोलकाता की एक निजी कंपनी के अधिग्रहण का है. ईएमसी लिमिटेड कोलकाता की एक कंपनी थी जिसे अल्मास ने दिवालिया समाधान प्रक्रिया के तहत खरीदा था.

एनसीएलटी को शिकायत मिली थी कि तय यह हुआ था कि अल्मास ईएमसी के लेनदारों को करीब 568 करोड़ रुपये भुगतान करेगी जो उसने नहीं किया. एनसीएलटी ने अल्मास को दोषी पाया और आदेश दिया कि उसकी 30 करोड़ की बैंक गारंटियों को जब्त कर लिया जाए और कंपनी और उसके अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए.

यह आदेश अप्रैल 2022 में ही आया और इस वजह से सवाल उठ रहे हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है कि इतनी जल्दी उसी कंपनी के नेतृत्व वाले एक कंसोर्टियम को सरकार ने पवन हंस को बेचने के लिए चुन लिया.

राजनीतिक विरोध

'द वायर' और 'न्यूजक्लिक' ने यह भी दावा किया है कि अल्मास केमन द्वीप समूह में पंजीकृत है जिसे एक टैक्स हेवन के रूप में जाना जाता है. कंपनी के व्यापारिक रिकॉर्ड के बारे में सार्वजनिक तौर पर काफी कम जानकारी उपलब्ध है.

इन वेबसाइटों के लिए यह जानकारी सामने लाने वाले पत्रकारों परंजॉय गुहा ठाकुरता और रवि नायर ने दावा किया है कि आने वाले दिनों में वो और भी जानकारी सामने लाएंगे.

इससे पहले कांग्रेस पार्टी ने भी पवन हंस के निजीकरण में अनियमितताओं का दावा किया था. पार्टी ने दावा किया था कि कंपनी को औने-पौने दामों में बेचा जा रहा है और वो भी एक ऐसी कंपनी को जो छह महीने पहले ही बनी है.

केंद्र सरकार ने अभी तक इन सब दावों पर आधिकारिक रूप से प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन कई मीडिया रिपोर्टों में अज्ञात सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि सरकार ने अब इस समझौते पर रोक लगा दी है. देखना होगा कि सरकार आधिकारिक रूप से और जानकारी जारी करती है या नहीं. (dw.com)

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