ताजा खबर

शादी में बलात्कार: किन देशों ने इसे गुनाह माना है
17-May-2022 7:41 PM
शादी में बलात्कार: किन देशों ने इसे गुनाह माना है

-दिव्या आर्य

क्या शादी में बलात्कार हो सकता है? अब ये सवाल भारत के सुप्रीम कोर्ट के सामने है.

दिल्ली हाई कोर्ट ने जब मैरिटल रेप को गैरकानूनी करार देने की याचिका पर सुनवाई की तो आम राय नहीं बन पाई. दो जजों की बेंच में से जज शकधर ने मैरिटल रेप को असंवैधानिक माना और जज शंकर असहमत रहे.

अब एक याचिकाकर्ता ने जज शकधर की राय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की है. शादी, यानी दो लोगों और दो परिवारों की सहमति से बना रिश्ता जिसमें सेक्स निहित है, और बलात्कार यानी सहमति के बिना बनाया गया यौन संबंध.

शादी, जो एक सुंदर, प्यार का रिश्ता हो सकती है या कुछ मामलों में मानसिक, शारीरिक, आर्थिक प्रताड़ना की घुटन से भरी.

मैरिटल रेप पीड़िता के दर्द और क़ानून पर छिड़ी बहस

ऐसी घरेलू हिंसा जब यौन संबंध में भी घर कर जाए और पति अपनी पत्नी के मना करने पर भी उसे सेक्स करने पर मजबूर करे तो इसे 'मैरिटल रेप' कहा जाता है. दुनिया के 50 से ज़्यादा देशों में 'मैरिटल रेप' अपराध माना जाता है और उनके कानून में इसके लिए सज़ा के प्रावधान हैं.

भारत में साल 2012 में चलती बस में एक छात्रा के सामूहिक बलात्कार के बाद, जब औरतों के खिलाफ हिंसा के कानूनों को कड़ा करने के लिए जस्टिस वर्मा समिति बनाई गई, तब उसने 'मैरिटल रेप' को गैरकानूनी करार देने की सिफारिश की. पर सरकार ने ये नहीं मानी.

दिल्ली हाई कोर्ट में मौजूदा याचिकाओं पर सरकार ने अपना मत साफ नहीं किया है पर बहस के दौरान कई तर्क सामने आए हैं.

मसलन, 'मैरिटल रेप को अपराध मानने से शादियां टूटने लगेंगी', 'औरतें इस कानून का गलत इस्तेमाल कर अपने पति को प्रताड़ित करेंगी' और 'घरेलू हिंसा के लिए पहले ही कानून मौजूद है' इत्यादि.

दो देश और चार सवाल चुने. नेपाल - मैरिटल रेप पर कानून बनानेवाला इकलौता दक्षिण-एशियाई देश जो सांस्कृतिक तौर पर भारत के करीब है, और ब्रिटेन - औपनिवेशिक इतिहास की वजह से जिसके कानूनों के आधार पर भारत के कई कानून बने हैं.

अक्तूबर 1991 की वो सर्द सुबह लीज़ा लॉन्गस्टाफ को आज भी याद है. जब लंदन के 'हाउस ऑफ लॉर्ड्स' में पांच जजों की बेंच ने एक पति को उनकी पत्नी के बलात्कार के लिए दोषी मानते हुए कहा, "एक बलात्कारी, बलात्कारी ही होता है और उसे अपराध की सज़ा मिलनी चाहिए, फिर चाहे पीड़िता से उसका रिश्ता जो भी हो".

लीज़ा ने मुझे बताया, "हम हाउस के ऊपरी हिस्से में पब्लिक गैलरी में बैठे थे, फैसला सुनते ही हम उछल पड़े और खुशी मनाने लगे. फौरन गार्ड आए और हमें बाहर निकाल दिया. पर क्या फर्क पड़ता है, अगले दिन खबर सभी अखबारों के पहले पन्ने पर थी."

लीज़ा और उनके साथ 'वॉर' यानी 'वुमेन अगेन्स्ट रेप' नाम के संगठन में काम कर रहीं औरतों के लिए ये 15 साल लंबी लड़ाई की जीत थी.

इस सब की शुरुआत 1970 के दशक में हुई थी जब ब्रिटेन में औरतों के खिलाफ हिंसा, उनके रोज़गार के अधिकार, आर्थिक आज़ादी जैसे कई मुद्दों पर आंदोलन तेज़ हुआ.

औरतों ने कहा कि जब पराए मर्द के द्वारा हिंसा पर न्याय की बात हो रही है तो शादी के अंदर हो रही ज़बरदस्ती पर क्यों नहीं? वो भी तब जब पति पर आर्थिक रूप से आश्रित होने की वजह से पत्नी के लिए उनके खिलाफ आवाज़ उठाना और भी मुश्किल है.

धीरे-धीरे ये आवाज़ें जुड़ीं और 'वॉर' बना. 1985 में लंदन में 'वॉर' ने 2,000 औरतों का सर्वे किया जिसमें हर सात में से एक औरत ने कहा कि उनके साथ मैरिटल रेप हुआ है. फिर संगठन ने संसद में बिल पेश किए, 'क्रिमिनल लॉ रिविज़न कमेटी' को ज्ञापन दिए, मीडिया में अपनी बात रखी, हस्ताक्षर कैमपेन चलाए और जनहित याचिकाएं डालीं.

ठीक इसी तरह नेपाल में भी एक संगठन ने ये बीड़ा उठाया. साल 2000 में 'फोरम फॉर वुमेन इन लॉ एंड डेवलपमेंट' (एफडब्ल्यूएलडी) की मीरा ढुंगाना ने सुप्रीम कोर्ट में केस फाइल किया कि बलात्कार के मामले में विवाहित औरतों के साथ भेदभाव खत्म किया जाए और 'मैरिटल रेप' को जुर्म माना जाए.

मीरा के मुताबिक, "हमारे समाज में औरत अकेली जाती है आदमी के परिवार में. मेरे ख्याल से वही एक तरह की हिंसा है. पुरुष प्रधान समाज में औरत को एक वस्तु की तरह देखा जाता है और उसे उसकी जगह बताने के लिए ही बलात्कार का इस्तेमाल किया जाता है. शादी में भी यौन हिंसा को अपना अधिकार मानते हैं."

साल 2001 में कोर्ट ने उनके हक में फैसला दिया लेकिन संसद को पांच साल लगे इसपर कानून बनाने में. साल 2006 में जब कानून बनाया गया तो उसमें सिर्फ तीन से छह महीने की सज़ा का प्रावधान रखा गया.

एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई. फिर फैसला हक में आया पर उसके आठ साल बाद ही, 2017 में, संसद ने 'मैरिटल रेप' के लिए अधिकतम पांच साल की सज़ा का प्रावधान बनाया.

क्या कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा है?
'मैरिटल रेप' को अपराध करार देने की इन लंबी कानूनी लड़ाइयों की वजह वही डर और संशय हैं - शादी के ढांचे को धक्का लगने, पुरुषों के साथ भेदभाव होने, कानून का गलत इस्तेमाल वगैरह.

गलत इस्तेमाल के डर को सभी वकीलों ने मिथक बताया और रेखांकित किया कि शादी का ढांचा किसी कानून से नहीं टूटता बल्कि पुरुषों के अपनी पत्नी के साथ हिंसा करने से उसे धक्का लगता है.

नेपाल के 'लीगल एड ऐंड कनसलटेन्सी सेंटर' (एलएसीसी) में सीनीयर लीगल ऑफिलर पुन्याशिला दावाड़ी ने अपने 21 साल के अनुभव के बिनाह पर कहा कि कोई औरत अपना परिवार नहीं तोड़ना चाहती और वो तब तक बर्दाश्त करती रहती है जब तक प्रताड़ना बहुत सीरीयस नहीं हो जाती.

पुन्याशिला ने बताया, "हमसे बात करने में भी औरतें संकोच करती हैं, पर जब शर्मिंदगी छोड़ वो खुलती हैं तो बताती हैं कि कैसे उनके पति उन्हें रात-रात भर बिना कपड़ों के रहने पर मजबूर करते हैं, ब्लू फिल्म दिखाकर वैसे कृत्य करने की डिमांड करते हैं, अमानवीय तरीके से शारीरिक संबंध बनाते हैं."

शादी के अंदर ऐसी हिंसा के बारे में नेपाल में खुलकर बात करना आज भी मुश्किल है. बीस साल पहले आए कोर्ट के फैसले के बाद भी पढ़े-लिखे लोगों में भी इसके प्रति संवेदना पैदा करना एक चुनौती था.

एलएसीसी के नेपाल में चार सेंटर हैं और यहां आनेवाले ज़्यादातर मामले घरेलू हिंसा के होते हैं.

पुन्याशिला ने बताया, "शुरू-शुरू में हमारे सहयोगी ऐडवोकेट बोलते थे कि अब घर जाकर बीवी को छूने से पहले पूछना पड़ेगा नहीं तो वो जेल भेज देंगी, पर अब जब उन्होंने औरतों के मैरिटल रेप के कई दर्दनाक मामले देखे तो मज़ाक करना बंद कर दिया और मानते हैं कि औरत को दबाकर रखना सही नहीं है."

मुद्दा गलत इस्तेमाल से ज़्यादा कानून तक औरतों की पहुंच का है.

उत्तर-पूर्वी ब्रिटेन में 'एवा वुमेन्स एड एंड रेप क्राइसिस सेंटर' चला रहीं रिचिंडा टेलर के मुताबिक सालाना उनके पास हिंसा की शिकार हुईं 1,000 औरतें आती हैं लेकिन उनमें से आधी से ज़्यादा पुलिस-अदालत का रास्ता नहीं अपनाना चाहतीं.

उन्हें रहने की जगह, बच्चों की देखभाल और अपने खर्च संभालने के लिए रोज़गार के रास्ते तलाशने में मदद चाहिए होती है.

रिचिंडा इसकी वजह समझाती हैं, "ब्रिटेन में पिछले दशकों में औरतों के खिलाफ हिंसा के मामलों में कनविक्शन रेट घटता गया है, और घरेलू हिंसा की पुलिस शिकायत तो अक्सर अदालत तक पहुंचती ही नहीं, ऐसे में औरत कोर्ट-कचहरी और सार्वजनिक तौर पर अपनी निजी ज़िंदगी की चर्चा होने जैसे रास्ते पर क्यों चलना चाहेगी?"

लीज़ा लॉन्गस्टाफ के मुताबिक बलात्कार और घरेलू हिंसा की गलत शिकायतें बहुत कम होती हैं, बल्कि ब्रिटेन में ज़्यादातर झूठे केस इन्श्योरेंस और मोबाइल फोन चोरी के मामलों में देखे गए हैं.

कौनसी औरतें मैरिटल रेप की शिकायत करती हैं?
नेपाल और ब्रिटेन, दोनों देशों में शादी में बलात्कार के मामले अलग से चिन्हित नहीं किए जाते. पुलिस और न्यायपालिका द्वारा बलात्कार के कुल मामलों के आंकड़े ही रखे जाते हैं.

ऐसे में ये पता लगाना मुश्किल है कि 'मैरिटल रेप' के कितने मामले पुलिस में दर्ज हो रहे हैं और इनमें सज़ा मिलने की दर कितनी है.

ब्रिटेन में घरेलू हिंसा और बलात्कार के मामले लड़नेवालीं बहुचर्चित वकील डॉ. ऐन ओलिवारस के मुताबिक विकसित देशों में महिला सशक्तिकरण की वजह से 'मैरिटल रेप' कानून का इस्तेमाल बहुत कम किया जा रहा है.

डॉ. ओलिवारस ने कहा, "यहां तलाक के मामले बढ़ रहे हैं, औरतें हिंसक शादियों में रहने को मजबूर नहीं हैं, वो समय रहते बाहर निकल जाती हैं, तलाक के बाद अकेले रहते हुए औरत के बच्चों को बड़ा करने पर उंगली नहीं उठाई जाती और वो नए रिश्ते बनाने के लिए आज़ाद हैं."

साथ ही ब्रिटेन में घरेलू हिंसा की पीड़ित औरतों के रहने के लिए जगह जगह 'सेफ हाउस' बनाए गए हैं. अगर वो अपने पति के घर से निकलना चाहें तो यहां पनाह ले सकती हैं.

जो औरतें अपराध की शिकायत कर रही हैं वो लीज़ा लॉन्गस्टाफ के मुताबिक ज़्यादातर समृद्ध वर्ग की होती हैं.

उन्होंने बताया, "ज़्यादा पैसा कमानेवालीं या समाज में ऊंचा ओहदा और रसूख रखनेवाली औरतें ही पुलिस में जाती हैं और उनके मामलों में ही बेहतर तहकीकात और सज़ा मिलने की उम्मीद रहती है."

नेपाल के एफडब्ल्यूएलडी में काम करनेवालीं लीगल ऑफिसर सुष्मा गौतम के मुताबिक उनके पास भी 'मैरिटल रेप' की शिकायत समृद्ध परिवारों की औरतें ही करती हैं. लेकिन अगर वो नौकरीपेशा ना हों तो पुलिस में जाने का कदम नहीं उठातीं.

ब्रिटेन के मुकाबले नेपाल में औरतों के लिए 'सेफ हाउस' और मुफ्त कानूनी मदद तो कम है ही, साथ ही परिवार की इज़्ज़त बनाए रखने का सामाजिक दबाव भी बहुत ज़्यादा है. सुष्मा ने बताया, "वो कानून के बारे में जागरूक होती हैं पर हमारे पास आने के बाद भी उनकी कोशिश यही होती है कि बिना पुलिस-कोर्ट कचहरी के कोई रास्ता निकल आए."

कई औरतें हिंसा की शिकायत करने से पहले बच्चों के बड़े होने का इंतज़ार करती हैं. सिर्फ बहुत जघन्य हिंसा वाली शिकायतें ही अदालत तक पहुंचती हैं.

कानून से क्या फायदा हुआ?
'मैरिटल रेप' कानून ना हो तो शादी में यौन हिंसा की पीड़ित महिला के पास केवल घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज करने का विकल्प रह जाता है.

घरेलू हिंसा के लिए सज़ा की मियाद कम होती है और हिंसा के बार-बार होने का डर बना रहता है.

वैवाहिक बलात्कार के लिए अलग कानून बन जाना भी पहली सीढ़ी भर ही है. ज़्यादातर बलात्कार के मामलों की ही तरह, चारदीवारी के अंदर होने वाले 'मैरिटल रेप' को अदालत में साबित करना मुश्किल है.

औरत का अपना बयान सबसे अहम् होता है क्योंकि मेडिकल एविडेंस अक्सर मिल नहीं पाती.

सुष्मा गौतम के मुताबिक, "अक्सर औरतों की सहमति नहीं होती पर वो पति को संबंध बनाने देती है क्योंकि वो उसे मारने की, जननांगों को चोट पहुंचाने की धमकी देता है. जब तक वो पुलिस में जाने की हिम्मत जुटाती है, तब तक कपड़े धुल जाते हैं, शरीर की चोटों के निशान हल्के पड़ जाते हैं."

ब्रिटेन में 'मैरिटल रेप' की शिकायत की तहकीकात में औरत का मोबाइल फोन ले लेना, मेडिकल और निजी रिकॉर्ड लेना शामिल है.

लीज़ा के मुताबिक औरतें इससे असहज हो जाती हैं और कहती हैं, "ये दूसरे बलात्कार जैसा है, जब हमारे निजी जीवन को उधेड़ कर रख दिया जाता है".

वहीं रिचिंडा बताती हैं कि सबूत जुटाने के कई तरीके भी मौजूद हैं. इनमें बार-बार होनेवाली हिंसा की तरीख और समय की डायरी रखना, किसी दोस्त को लगातार बताना, चोटों की तस्वीरें लेना, फोन में बातचीत रिकॉर्ड करना वगैरह शामिल है.

इन सबकी नज़र में कानून की सबसे बड़ी उप्लब्धि है ये संदेश कि ऐसी हिंसा गलत है.

डॉ. ऐन ओलिवारस कहती हैं, "ब्रिटेन के बच्चों को पता है, शादी में यौन हिंसा अपराध है."

भारत और नेपाल जैसे विकासशील देशों में ये अब भी बहस का मुद्दा है.

शादी में औरत की भूमिका पर बनी सामाजिक सोच औरत को भी रोकती है. पुन्याशिला बताती हैं कि उन्हें औरतों की काउंसलिंग कर समझाना पड़ता है कि उन्हें पति के ज़बरदस्ती करने पर 'ना' कहने का अधिकार है.

ये किसी एक अधिकार का संघर्ष है ही नहीं.

साल 2011 में एफडब्ल्यूएलडी ने संपत्ति में अधिकार के लिए कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. उनकी याचिका के बाद अब नेपाल में पैतृक संपत्ति में विवाहित बेटियों के बेटों समान अधिकार हैं.

ये याचिका दायर करनेवालीं मीरा ढूंगन कहती हैं, "यौन संबंध बनाने और ना बनाने की आज़ादी, आर्थिक आज़ादी, सामाजिक दबाव से आज़ादी, जब ये सब मिल जाएंगे, तभी औरत पुरुषों के बोलबाले वाले समाज में आज़ाद हो पाएगी." (bbc.com)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news