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राजद्रोह के मुक़दमे में बाइज़्ज़त बरी सोनी सोरी ने कहा- 'इसने मेरी ज़िंदगी के 11 साल निगल लिए'
18-May-2022 10:53 PM
राजद्रोह के मुक़दमे में बाइज़्ज़त बरी सोनी सोरी ने कहा- 'इसने मेरी ज़िंदगी के 11 साल निगल लिए'

आलोक प्रकाश पुतुल

रायपुर, 18 मई।छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित दंतेवाड़ा की सामाजिक कार्यकर्ता और आदिवासी नेता सोनी सोरी को राजद्रोह के बहुचर्चित मामले में 11 साल तक चले मुक़दमे के बाद इस साल 14 मार्च को बाइज़्ज़त बरी किया गया. उन्होंने बीबीसी के साथ अपनी आपबीती साझा की.

पुराने दिनों को याद करते हुए सोनी सोरी के शब्द जैसे दुख में भीगने लग जाते हैं. आवाज़ भर्राने लगती है. वे बात करते-करते चुप हो जाती हैं.

अपने पुराने दिनों के पन्ने पलटते हुए धीमे स्वर में कहती हैं, "प्रताड़ना और दुख की आग में जलते हुए मैंने जैसे 11 साल गुज़ारे, उसकी तपिश अब भी मेरे जीवन में बची हुई है. वह तो कभी जाएगी भी नहीं. मेरी ज़िंदगी में उन 11 सालों के जितने घाव हैं, वो अब भी ताज़ा हैं. वो रिसते रहते हैं, वो उसी तरह दर्द देते रहते हैं."

सोनी सोरी बताती हैं कि जब वे जेल में थीं, उसी दौरान उनकी मां नहीं रहीं. पुलिस प्रताड़ना से पति अनिल फुटाने की पहले घायल और फिर बीमार हो कर मौत हो गई. बच्चों की पढ़ाई छूट गई. पूरा परिवार बिखर गया.

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया, जिसके मुताबिक़ सर्वोच्च अदालत का फ़ैसला आने तक देश में किसी के ख़िलाफ़ राजद्रोह के नये मामले दर्ज़ नहीं किए जाएंगे और पुराने मामलों के अभियुक्त ज़मानत के लिए आवेदन दे सकते हैं.

हालांकि सोनी सोरी को अब भी इस आदेश पर यक़ीन नहीं होता. वे कहती हैं, "आप जैसा बता रहे हैं, अगर वैसा है तो इस देश में जाने कितने लोगों को इस राजद्रोह क़ानून के नर्क से मुक्ति मिलेगी."

छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित दंतेवाड़ा की सामाजिक कार्यकर्ता और आदिवासी नेता सोनी सोरी को ठीक दो महीने पहले ही राजद्रोह के बहुचर्चित मामले में 11 साल तक चले मुक़दमे के बाद इसी साल 14 मार्च को अदालत ने बाइज़्ज़त बरी किया था.

लेकिन सोनी सोरी को मलाल है कि उनके जीवन के 10-11 साल कोर्ट-कचहरी, थाना-जेल में गुजर गए और उसकी भरपाई किसी भी रूप में संभव नहीं है.

उन्होंने बताया, "मुझे लगभग साढ़े 10 साल तक इस कलंक के साथ जीना पड़ा कि मैं जिस भारत देश की आदिवासी बेटी हूं, उसने अपनी मां, भारत मां के साथ विद्रोह किया है. जेल के पिंजरे में मैंने भले सवा दो साल गुज़ारे हैं, लेकिन इन 10-11 सालों में भी राजद्रोह के आरोप के कारण अपने जीवन में कुछ नहीं कर पाई."

कितना कुछ भुगतना पड़ा
वो बताती हैं, "कहीं काम तलाशने की कोशिश की तो काम नहीं मिला. पिता की ज़मीन पर खेती भी करना चाहा तो सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिला. हर कहीं राजद्रोह का आरोप मेरे माथे पर जैसे चिपका हुआ था. जेल से आ जाना भर मेरे लिए आज़ादी नहीं थी. आप समझ लें कि ये 10-11 साल मैंने एक तरह से जेल में ही गुज़ारे."

अपने संघर्षों के बारे में सोनी सोरी कहती हैं, "मेरा परिवार मुझसे बिखर गया. मेरे बच्चों की पढ़ाई छूट गई. पति और बच्चों को जब मेरी ज़रूरत थी, तब मैं सलाखों के पीछे थी. जिन 50 बच्चों को मैं स्कूल में पढ़ाती थी, उनमें से 30 बच्चे माओवादी बन गये. दूसरे बच्चे पढ़ाई से वंचित हो गए. राजद्रोह में मुझे डाल देने से केवल मेरी निजी क्षति नहीं हुई, देश का भी नुक़सान हुआ. अगर सरकार ने जांच के बाद इस धारा का उपयोग किया होता तो शायद इन सबकी नौबत ही नहीं आती."

12-13 साल पहले तक सोनी सोरी अपने गांव में बच्चों को पढ़ाने वाली एक उत्साही शिक्षिका थीं. 2005 में जब पुलिस संरक्षण में माओवादियों के ख़िलाफ़ 'सलवा जुडूम' अभियान शुरू हुआ और सोनी सोरी इस मुहिम के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने लगीं और उसके बाद के सालों में उन पर कई मुक़दमे दर्ज़ हुए.

2011 में उन पर राजद्रोह का मामला दर्ज़ हुआ, जिसकी चर्चा छत्तीसगढ़ के बाहर तक पहुंची. सोनी सोरी पर यह मुक़दमा छत्तीसगढ़ सरकार ने किया था, तब प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और रमन सिंह मुख्यमंत्री थे.

10 सितंबर, 2011 को दंतेवाड़ा के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक अंकित गर्ग ने दावा किया कि एक मल्टीनेशनल कंपनी माओवादियों को सुरक्षा के लिए 15 लाख रुपए दे रही थी और माओवादियों की ओर से पैसा लेने समेली स्कूल की शिक्षिका सोनी सोरी अपने भतीजे के साथ पहुंची थीं.

पुलिस ने तब दावा किया था कि पुलिस की घेराबंदी के बाद भी सोनी सोरी फ़रार हो गई थीं, जबकि उनके भतीजे लिंगाराम कोडोपी को गिरफ़्तार कर लिया गया.
सोनी सोरी थीं स्कूली शिक्षिका

ये गिरफ़्तारियां जब हुई थीं, उससे पखवाड़े भर पहले ही विकीलीक्स की एक रिपोर्ट आई थी. उसमें मुंबई स्थित अमरीकी वाणिज्य दूतावास के उनके देश के साथ हुए कूटनीतिक पत्राचार के हवाले से एक जानकारी दी गई थी. वो ये कि छत्तीसगढ़ में ख़नन और इस्पात संबंधी अपने प्रोजेक्ट के लिए मल्टीनेशनल कंपनी "माओवादियों को अच्छी ख़ासी रक़म देते हैं ताकि माओवादी उनके काम में दख़ल न दें और उनका उत्पादन निर्बाध गति से चलता रहे."

हालांकि कथित रुप से फ़रार समेली स्कूल की शिक्षिका सोनी सोरी ने उसी समय अज्ञात स्थान से दावा किया था कि उनका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है और उनके भतीजे लिंगाराम कोडोपी को पुलिस ने उनके घर से गिरफ़्तार किया है. सोनी सोरी ने आशंका जताई थी कि वे और उनके भतीजे लिंगाराम कोडोपी, पुलिस के फ़र्ज़ी मुठभेड़ों को लेकर सवाल उठाते रहे हैं, इसलिए उन्हें फंसाया गया है.

इस गिरफ़्तारी से एक साल पहले सोनी सोरी के भतीजे लिंगाराम कोडोपी ने दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस कर 40 दिनों तक पुलिस द्वारा अवैध हिरासत में रखे जाने और माओवादी मामले में फंसाने का आरोप लगाया था. तब उन्हें उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद रिहा कर दिया गया था.

बाद में पुलिस ने 5 अक्तूबर,2011 को अपने वकील से मिलने जा रही सोनी सोरी को दिल्ली के साकेत कोर्ट परिसर से गिरफ़्तार करने का दावा किया था. पुलिस ने तब आरोप लगाया कि इन लोगों ने प्रतिबंधित माओवादी संगठन की न केवल मदद की है, बल्कि सरकार के ख़िलाफ़ उनकी लड़ाई में सहयोग भी किया और इन आरोपों के साथ उनपर राजद्रोह का मुक़दमा दर्ज किया गया.

गंभीर प्रताड़ना के आरोप

सोनी सोरी लगभग साढ़े 10 साल पहले की अपनी गिरफ़्तारी को याद करते हुए बताती हैं कि जिस दिन उनकी गिरफ़्तारी हुई, उसी दिन से प्रताड़ना का सिलसिला शुरू हो गया.

वे कहती हैं, "मुझ पर राजद्रोह के साथ कुल 6 मामले दर्ज किए गए. सभी एक से बढ़ कर एक. मुझे इन सभी मामलों में बाइज़्ज़त बरी कर दिया गया है. लेकिन राजद्रोह के मामले ने मेरे जीवन में खुशियों की कोई जगह ही नहीं रहने दी."

सोनी कहती हैं, "मुझे प्रताड़ित और अपमानित करने के लिए कपड़े उतार दिए जाते थे. मुझे पीटा जाता था. पुलिस वाले गंदी टिप्पणियां करते थे. पुलिस हिरासत में मुझे नंगा रखा जाता था. कई बंदी और क़ैदियों को लगता था कि मैं देशद्रोही हूं, इसलिए मैं स्वाभाविक रूप से उनके लिए घृणा की पात्र थी."

हालांकि छत्तीसगढ़ पुलिस हमेशा सोनी सोरी के साथ किसी भी तरह की प्रताड़ना के आरोप से इनकार करती आई है. लेकिन जेल में जब सोनी सोरी की हालत बिगड़ने लगी तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर उन्हें कोलकाता मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया.

अस्पताल के डॉक्टरों ने सोनी सोरी की जांच के बाद अपनी रिपोर्ट में बताया कि उनके शरीर से कुछ 'फॉरेन ऑब्जेक्ट्स' निकाले गए हैं. दंतेवाड़ा के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक अंकित गर्ग ने तब इस तरह की मेडिकल रिपोर्ट की विश्वसनीयता को ख़ारिज किया था.

सोनी कहती हैं, "इसके बाद भी मुझे ज़मानत नहीं मिली. स्थानीय अदालत से लेकर हाईकोर्ट तक में, केवल राजद्रोह की धारा देख कर ही मेरे मामले की सुनवाई टल जाती थी. मैं बार-बार कहती हूं कि इस देश में आदिवासी को न्याय मिलना मुश्किल है. मुझे भले ज़मानत नहीं मिली, लेकिन समान आरोप वाले दूसरे लोगों को ज़मानत देने में अदालतें उदार रहीं."

अदालती दस्तावेज़ बताते हैं कि सोनी सोरी को पुलिस और न्यायिक हिरासत में 770 दिन और उनके भतीजे लिंगाराम कोडोपी को 795 दिन जेल में रहना पड़ा. लेकिन इसी मामले में मल्टीनेशनल कंपनी के प्रबंधक बीव्हीसीएस वर्मा को 100 दिन और ठेकेदार बीके लाला को 147 दिन में ही ज़मानत मिल गई.

जांच के बाद दर्ज हो मामला

सोनी सोरी का कहना है कि इस तरह के गंभीर मामलों में पहले जांच होनी चाहिए. वे कहती हैं, "बिना किसी जांच के आप पर राजद्रोह की धारा लगा दी जाती है और आप रातों-रात ख़लनायक बन जाते हैं. राजद्रोह का आरोप अगर आप पर लगा तो ज़मानत तक नहीं मिल पाती."

सोनी सोरी का आरोप है कि आज भी बस्तर में आदिवासियों को राजद्रोह में, यूएपीए में, छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा क़ानून में अंदर डाल दिया जाता है और वे बरसों-बरस जेलों में सड़ते रहते हैं. हत्या के अभियुक्त को तो ज़मानत मिल जाती है, लेकिन इन मामलों में निचली अदालत ज़मानत के आवेदन को देखते ही ख़ारिज कर देती हैं.

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता रजनी सोरेन का कहना है कि न्याय के मामले में बस्तर से लेकर सरगुजा तक आदिवासी समाज हाशिये पर है.

वे कहती हैं, "सोनी सोरी और लिंगाराम कोडोपी इस मामले में सौभाग्यशाली हैं कि वे सुप्रीम कोर्ट तक जा सके और उन्हें भले 700 दिनों के बाद ही सही, ज़मानत मिल गई और वे बाइज़्ज़त बरी भी हुए. लेकिन बस्तर में तो ग़रीब आदिवासी ढंग का वकील तक नहीं रख पाता. ज़मानत के अधिकांश मामले कभी ज़िले के दायरे से बाहर ही नहीं निकल पाते और ऐसे लोग साल दर साल, बिना ज़मानत के जेलों में रिहाई की प्रतीक्षा करते रहते हैं."

बहरहाल सोनी सोरी आज भी अतीत की यादों में बार बार लौटती हैं. "इन 10 सालों में शायद मेरी ज़िंदगी कुछ और होती. मैं अपने समेली गांव को याद करती हूं. अपने स्कूल को याद करती हूं. पति को याद करती हूं. बच्चों को याद करती हूं. पता नहीं, मेरा जीवन कितना सुंदर होता."

"मैं क्या कुछ नहीं कर लेती. इस राजद्रोह ने मेरे 10-11 साल निगल लिए और उसे दुनिया की कोई ताक़त वापस नहीं ला सकती. दो महीने पहले जब मुझे बाइज़्ज़त बरी किया गया, तब भी मेरे भीतर ख़ुशी की कोई जगह नहीं थी. अब तो मेरी आधी से अधिक उम्र अंधेरे में निकल गई. यह अंधेरा और उसकी परछाई शायद जीवन भर मेरे साथ रहेगी." (bbc.com/hindi)

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