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यूक्रेन में बच्चों का वो समर कैंप, जिसे रूसी सैनिकों ने क़त्लगाह बना दिया
19-May-2022 8:51 AM
यूक्रेन में बच्चों का वो समर कैंप, जिसे रूसी सैनिकों ने क़त्लगाह बना दिया

-सारा रेन्सफोर्ड

मार्च में कीएव से रूसी फौजों के वापस लौटने के बाद से बूचा में 1000 नागरिकों के शव बरामद हो चुके हैं. इनमें से ज्यादातर को कम गहराइयों वाली कब्रों में दफना दिया गया था. लेकिन बच्चों के एक समर कैंप में जो कुछ हुआ वह दिल दहलाने वाला था. बीबीसी की सराह रेन्सफोर्ड समर कैंप में की गई कार्रवाई की पड़ताल कर रही हैं. इस कैंप को अब अपराध स्थल माना जा रहा है.

*इस रिपोर्ट की कुछ सामग्रियाँ कुछ पाठकों को विचलित करती हैं*

एक झटके में ये क़त्लगाह आपकी निगाहों में नहीं भी आ सकता है. लेकिन जंग से पहले लोगों के सैर-सपाटे के लिए मशहूर बूचा की जंगलों के किनारे पर बने इस बेसमेंट में घुटनों के बल बिठा कर पांच यूक्रेनियों को गोली मार दी गई थी. उन्हें सिर में गोली मारी गई थी.

इस बेसमेंट में घुसने की जगह से दाईं ओर खून से सने पत्थर दिखते हैं, जो सूख कर काले पड़ चुके हैं. वहीं पर एक ऊनी टोपी पड़ी है और इसमें एक तरफ सूराख है. इसके किनारे खून में सने हुए हैं. दरवाजों पर मैंने गिना, गोलियों के कम से कम एक दर्जन निशान थे.

कुछ सीढ़ियों से दूर रूसी सेना के राशन का पैक पड़ा था. एक जगह चावल से बनी खीर, बीफ और क्रैकर का एक खाली पैकेट दिखा. दीवार पर किसी का नाम पोता गया था. ऐसा लगता है कि यह जगह बच्चों का एक कैंप हुआ करती थी. लेकिन मार्च की शुरुआत में बूचा में रूसी सैनिकों के घुसते ही कैंप रेडिएंट नाम से जानी जाने वाली ये जगह कत्लगाह में तब्दील हो गई थी.

इस समर कैंप में जो हत्याएं हुई हैं वो जघन्य हैं. लेकिन इसका ब्यौरा भी सिहरा देनेवाला है. रूसी कब्ज़े के दौरान मार्च में एक महीने के भीतर ही बूचा में 1000 नागरिक मारे गए थे. लेकिन ज्यादातर लोग बम और गोलों से नहीं मरे. रूसी सैनिकों ने 650 से अधिक नागरिकों को गोलियों से मार डाला.

अब यूक्रेन इन हत्यारों की तलाश कर रहा है.

व्लोदोमीर बोइचेनको होस्तोमेल में रहते थे. बूचा से ठीक ऊपर जाने वाली सड़कों की ओर. उनका घर उस एयरफील्ड के नज़दीक था जहां रूसी सैनिक पहली बार यूक्रेन की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए उतरे थे.

लड़ाई के नजदीक आने से पहले जब उनकी बहन एलियोना मिकितियुक वहां से भाग रही थीं तो उन्होंने व्लोदोमीर को भी साथ चलने को कहा. वो सिविलियन थे सैनिक नहीं. लेकिन लोगों की मदद के लिए वहीं रहना चाहते थे. वह कई दिनों तक होस्तोमेल में घूम-घूम कर खाना और पानी इकट्ठा करते रहे ताकि पड़ोसियों और बच्चों की मदद की जा सके.

रूसी बमबारी और हवाई हमलों से बचने के लिए ये तहखाने में छिपे हुए थे.

मर्चेंट नेवी में काम करने की वजह से दुनिया घूम चुके 34 साल के बातूनी व्लोदोमीर ने उस दौरान अपने परिवार वालों को फोन कर कहा कि वह सुरक्षित हैं. लेकिन उनकी बहन एलियोना थोड़े-थोड़े समय के अंतराल पर उनके फोन का इंतजार करती रहती थीं.

उन्हें मालूम था कि फोन कनेक्ट करने के लिए उन्हें ऊंची जगह पर जाना होगा. लेकिन बमबारी हुई तो उनके लिए छिपने की जगह को छोड़ कर ऊंची जगह पर जाना मुश्किल होगा. जब खाने-पीने की चीजें खत्म हो रही थीं तो उन्होंने अपने भाई को किसी सुरक्षित जगह पर जाने को कहा. लेकिन तब तक रास्ते बंद हो चुके थे.

8 मार्च को एलियोना की अपने भाई से आखिरी बार बातचीत हुई. उस दिन भी व्लोदोमीर ने कहा कि चिंता ना करो. उन्होंने बहन से कहा, '' मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं.'' लेकिन एलियोना ने रोते हुए बताया कि यह सुनना बेहद दर्दनाक था.

उन्होंने कहा, '' भाई की आवाज़ में डर था. पड़ोसियों ने चार दिन बाद व्लोदोमीर को पोरोमेनेस्ती के पास देखा. इसे कैंप रेडिएंट भी कहा जाता है. लेकिन इसके बाद व्लोदोमीर गायब हो गए.''

मार्च में कीएव में भीषण लड़ाई चल रही थी और बूचा शहर इसके केंद्र में था. लेकिन जब अप्रैल में रूसी सेना लौटी तो भयावह मंजर सामने आए. दुनिया सन्न रह गई. बड़ी तादाद में नागरिकों के शव सड़कों पर बिखरे पड़े थे. उन्हें गोलियों से भून दिया गया था.

रूस ने इस कत्लेआम से इनकार किया है. लेकिन अब बूचा एक बार फिर यूक्रेनी सेना के नियंत्रण में है और उसने कत्लेआम के सुबूत जुटाने शुरू कर दिए हैं.

कीएव रीजनल पुलिस के चीफ आंद्रेई नेवितोव ने कहा, '' हमें पता नहीं पुतिन क्या योजना बना रहे हैं. वो यहां बम गिरा कर रूसी सैनिकों की ओर से की गई इन हत्याओं के सुबूत मिटा भी सकते हैं. इसलिए हम जल्द से जल्द सुबूत जुटाने को अंजाम देने में लगे हैं. ''

इन सुबूतों में नागरिकों की ऐसी कारें भी शामिल हैं, जिन्हें अंधाधुंध चलाई गई गोलियों से कई छेद हो गए हैं. बूचा में ऐसी कारों के ढेर लगे हैं. उन कारों को उस वक्त निशाना बनाया गया, जो यूक्रेनी परिवार उनमें बैठ कर भाग रहे थे.

इनमें से एक कार पर तो सफेद कपड़ा अभी भी लगा है. ये सफेद कपड़ा रूसी सैनिकों को ये बताने के लिए लगाया गया था कि वे उनके लिए खतरा नहीं हैं. लेकिन इस कार को भी नहीं छोड़ा गया. थोड़ा नजदीक जाते ही आपको यहां मौत की बदबू का अहसास होगा.

4 अप्रैल को जब कैंप रेडिएंट में जो लाशें बरामद हुईं उनमें एक व्लोदोमीर बोइचेनको की भी थी. एलियोना ने हफ्तों तक अपने भाई को अस्पतालों और मुर्दाघरों में तलाशने की कोशिश की थी. उस दिन उनके पास एक फोटो भेजी गई ताकि वह इसे पहचान सकें. लेकिन फोटो के डाउनलोड होने से पहले ही वो जान गई थीं कि ये उनके भाई की ही है.

व्लोदोमीर के हत्यारों को लानते भेजते हुई एलियोना कहती हैं, '' मेरा रोम-रोम उनसे नफरत करता है. रोते हुए वो कहती हैं, '' हालांकि ऐसा बोलना ठीक नहीं है लेकिन वे इंसान नहीं हैं. जिन लोगों की लाशें मिली हैं उनके शरीर में एक इंच भी नहीं बची है, जहां पिटाई के निशान न हों. ''

कीएव रीजनल पुलिस के चीफ आंद्रेई नेवितोव कहते हैं, पांच लोगों की लाशें घुटने के बल गिरी हुई मिली थीं. उनके सिर नीचे थे और हाथ पीठ से बंधे. हमें मालूम है कि उन्हें काफी प्रताड़ित किया गया था.

उन्होंने बीबीसी से कहा, '' रूसी सैनिकों को ये मालूम नहीं कि युद्ध कैसे लड़ा जाता है. उन्होंने हर सीमा लांघ दी. ये यूक्रेन की सेना से नहीं लड़ रहे थे. वे नागरिकों का अपहरण कर उन्हें यंत्रणा देने में लगे थे. ''

न तो अभियोजक का दफ्तर और न ही एसबीयू सिक्योरिटी सर्विस रूसी सैनिकों की करतूतों की जांच का ब्योरा दे रहा है. लेकिन कुछ रूसी सैनिक इतने लापरवाह थे कि वे जिन रास्तों से गुजरे थे वहां के सुबूत भी उन्होंने नहीं मिटाए थे. यहां से काफी अहम सुबूत मिल सकते हैं.

यूक्रेनियन टेरिटोरियल डिफेंस यूनिटों ने उन सैनिकों की सूची तलाशी है जो इन ठिकानों पर तैनात थे. इनमें से एक ड्यूटी चार्ट जैसा लग रहा है, जिसमें वहां की गंदगी हटाने के लिए ड्यूटी पर लगाए जाने वाले सैनिकों के नाम थे. एक और कागज के टुकड़े पर पासपोर्ट के ब्योरे और फोन नंबर लिखे हैं.

सबूत जुटाने के क्रम में अब तक 11 हज़ार से ज्यादा संभावित युद्ध अपराध के मामले दर्ज किए जा चुके हैं.

हमें कैंप रेडिएंट में इस युद्ध अपराध का एक संभावित सुराग मिला. यहां एक पार्सल पड़ा दिखा, जो किसी किश्विका नाम की महिला ने एक रूसी सैनिक के नाम भेजा था. उस सैनिक का नाम और उसकी मिलिट्री यूनिट का नाम इस पर साफ लिखा था. इसमें यूनिट नंबर 6720 लिखा था जो रब्तोसोविस्क में स्थित थी. यह साइबेरिया के अलताई क्षेत्र में है. यह बूचा से जुड़ा मामला है, जो हमले के दौरान रूसी सैनिकों ने यूक्रेनी घरो से लूटे हुए सामानों को बड़े-बड़े पैकेट में बंद कर अपने रिश्तेदारों को भेजना शुरू किया था. सीसीटीवी कैमरे में वे ऐसा करते हुए देखे जा रहे हैं.

यह तो निश्चित तौर पर नहीं जा सकता कि रब्तोसोविस्क के सैनिक ही वहां बच्चों के कैंप पर तैनात थे. यह भी कहना मुश्किल है जिस समय वहां लोगों का कत्ल हुआ वे सैनिक वहां मौजूद थे. पुलिस को पहले यह पक्का करना होगा कि उन मौतों का समय क्या रहा होगा.

पुलिस चीफ नेबितोव ने कहा, '' हम इस पर काम कर रहे हैं. लेकिन ये जल्दी होने वाली चीज नहीं है. लेकिन वह कैंप हेडक्वार्टर था इसलिए वहां कोई कमांडर रहा होगा. कमांडर की जानकारी के बगैर किसी की हत्या नहीं की जा सकती थी. इसलिए हमें पहले इन हत्याओं की योजना बनाने वालों और फिर इसे अंजाम देने वालों को बारे में पता करना होगा. ''

रेडिएंट कैंप की दूसरी ओर से एक चर्च है जिस पर गोलीबारी से हुए नुकसान के निशान हैं. यहां ऐसा लगता है कि बूचा में एक बार फिर जिंदगी शुरू करने की जद्दोजहद हो रही है. छोटे बच्चे इधर-इधर यार्ड में दौड़ते हुए दिखते हैं. जबकि एक शख्स बमबारी से टूट चुकी खिड़कियों में लकड़ी के फट्टे लगाने की कोशिश कर रहा है. एक छोटी दुकान खुली हुई दिखी है. इसमें रिपेयरिंग का काम चल रहा है.

यूक्रेन
बूचा में अब लोग एक खुले में घूमते दिख रहे हैं. एक दूसरे से मिलते वक्त पड़ोसी इस बात की चर्चा करते हैं कि वे उन दिनों को याद करते हैं जब रूसी टैंक सड़कों पर घूम रहे थे. रूसी सैनिक अंधाधुंध गोलियां चला रहे थे और शराब पीकर सड़कों पर घूम रहे थे. ये सैनिक घरों के दरवाजे तोड़ कर सामान लूटने में लगे थे.

वो उस स्थानीय शख्स को भी याद करते हैं जो दूसरी ओर बने समर कैंप से भाग कर उनके फ्लैट ब्लॉक में घुस आया था. उन लोगों ने जोखिम के बावजूद उसे जगह दी थी.

विक्टर स्तिनित्सकी कैंप रेडिएंट के बारे में पहले नहीं जानते थे. लेकिन उन्होंने जो ब्यौरा दिया, वह उससे काफी मिलता-जुलता है. वो फिलहाल पश्चिमी यूक्रेन में हैं. उन्होंने फोन पर मुझे इस कहानी के बारे में बताया. वो अपनी कार से मुझे फोन कर रहे थे ताकि उनकी मां परेशान न हों.

मार्च की शुरुआत में जब विक्टर को सड़कों पर रूसी सैनिकों ने पकड़ लिया था तो उन्होंने उनके हाथ बांध दिए थे. रूसी सैनिकों ने सिर की टोपी को खींच कर उनकी आंखें बंद कर दी थी. उसके बाद सैनिक उन्हें तहखाने में खींच कर ले गए थे. विक्टर को यह पक्का पता था कि वह एक चिल्ड्रेन कैंप की जमीन पर हैं.

रूसी सैनिकों ने पहले उसके पैरों पर पानी उड़ेला ताकि वे जम जाएं. वो कहीं भाग नहीं पाए. इसके बाद उन सैनिकों ने उनके सिर पर बंदूक टिका दी थी.

'रूसी सैनिक उनसे पूछते जा रहे थे.- कहां हैं फासिस्ट? यूक्रेनी सैनिक कहां हैं? जेलेंस्की कहां हैं. वह कहते हैं, '' एक ने पुतिन का नाम लिया तो मैंने उसके खिलाफ कड़ा बोला. रूसी सैनिक नाराज़ होकर मुझे मारने लगे.''

विक्टर कहते हैं, '' मुझे रूसी सैनिकों पर गुस्सा आ रहा था लेकिन मैं डरा हुआ भी था. '' विक्टर पहले रूस में साइबेरिया के लोगों के साथ काम कर चुके थे. वे इस बात को लेकर बेहद डरे हुए थे कि रूसी उसके साथ बेहद बेरहमी से पेश आ सकते थे. इनमें से एक सैनिक ने बताया भी कि वह साइबेरिया से है.

विक्टर इस बात को लेकर दुखी थे के हालात कहां तक आ पहुंचे हैं. उनमें से एक रूसी सैनिक कहा था, '' दुख की बात ये है कि हमारे दादाओं ने नाज़ियों के खिलाफ युद्ध लड़ा और अब तुम फासिस्ट बन गए हो. ''

रूसी सैनिक ने कहा, '' तुमने जो देखा उसे याद करने के लिए तुम्हारे पास सुबह तक का वक्त है. अगर तुम याद करके उन चीजों बारे में नहीं बता पाए तो मार दिए जाओगे. ''

लेकिन उस रात विक्टर भाग्यशाली साबित हुए. भारी बमबारी हो रही थी और यह देखते हुए रूसी सैनिक उनकी निगरानी नहीं कर रहे हैं वे भाग निकले. ''

विक्टर कहते हैं, '' बमबारी के बीच मेरे जिंदा रहने की संभावना ज्यादा थी. अगर मैं उस तहखाने में रूसी कैद में रहता तो मारा जाता. उन्होंने बंदूक मेरे माथे पर सटा ही थी. ट्रिगर दबाने में कितना वक्त लगता''

उन्हें दफनाने के बाद उनकी बहन एलियोना ने कहा कि उन्होंने अपने सपने में भाई का चेहरा ठीक से देखा है.ऐसा लग रहा है जैसे वह मुझे दिलासा दे रहा हो.

लेकिन अब भी कई सवाल बरकरार हैं. व्लोदोमीर की कब्र पर क्रॉस के निशान पर सिर्फ उनका जन्म की तारीख लिखी है. मरने की तारीख नहीं है. क्योंकि उनके परिवार को पता नहीं है कि उन्हें कब गोली मारी गई.

इसका पता तब तक नहीं चल सकता जब तक कैंप रेडिएंट को कब्जे में लेने वाले कमांडर के बारे में पता नहीं चल जाता है.

बूचा में हर कोई जानता है स्थानीय नागरिक इस युद्ध में न सिर्फ फंस गए हैं बल्कि उन्हें निशाना बनाया जा रहा है. उन्हें रूसी सैनिक मार रहे हैं. जो युद्ध के नियम जानते हैं और न इसकी परवाह करते हैं.

(तस्वीरेंः सारा रेन्सफ़ोर्ड)

इस रिपोर्ट के लिए डारिया सिपिगिना, मारियाना मातवेइचुक और टोनी ब्राउन ने भी योगदान दिया है (bbc.com)

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