विचार / लेख
-ध्रुव गुप्त
इन दिनों औरंगज़ेब जबरदस्त चर्चा में है। नफऱतों की आग को भडक़ाने में माचिस की तरह अभी उसका इस्तेमाल हो रहा है। औरंगजेब ने क्या किया, यह तो औरंगजेब जाने या उसका इतिहास लिखने-पढऩे वाले। हम मुहब्बत वाले लोग हैं। सो हम चर्चा करेंगे औरंगजेब की एक बेटी और मुहब्बत की अप्रतिम शायरा जेबुन्निसा उर्फ मख्फी की जिसे मुहब्बत के इल्जाम में औरंगजेब ने बीस साल कैद की सजा दी थी। कैद के कठिन दिनों में जेबुन्निसा ने पांच हजार से ज्यादा गजलें और रुबाइयां लिखी और कैद में ही मुहब्बत के संदेश देते-देते मर गई। मैंने ‘दीवान-ए-मख्फी’ की उसकी कुछ कविताओं का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया है। उनमें से एक कविता आप भी पढि़ए और नफरतों के इस दौर में मुहब्बत की कोमल संवेदनाओं में डूब जाईए !
अरे ओ मख्फी, लंबे हैं अभी
तेरे निर्वासन के दिन
और शायद उतनी ही लंबी है
तेरी अधूरी ख्वाहिशों की फेहरिस्त
अभी कुछ और लंबा होने वाला है
तुम्हारा इंतजार
शायद तुम राह देख रही हो
कि उम्र के किसी मोड़ पर
किसी दिन लौट सकोगी अपने घर
लेकिन, बदनसीब
घर कहां बचा है तुम्हारे पास
बीते हुए इतने सालों में
ढह चुकी होगी उसकी दीवारें
धूल उड़ रही होगी
उसके दरवाजों, खिड़कियों पर
अगर इंसाफ के दिन खुदा कहे
कि मैं तुम्हें हर्जाना दूंगा
उन तमाम व्यथाओं का
जो जीवन भर तुमने सहे
तो क्या हर्जाना दे सकेगा वह मुझे ?
जन्नत ?
लेकिन जन्नत के तमाम सुखों
और नेमतों के बावजूद
वह एक तो उधार ही रह जाएगा न
खुदा पर मेरा !