विचार / लेख

यह विशुद्ध गुंडई नहीं तो और क्या है?
23-May-2022 1:39 PM
यह विशुद्ध गुंडई नहीं तो और क्या है?

-कृष्ण कांत

भारत के 83 फीसदी पुरुष मांसाहारी हैं। इस देश में 47 फीसदी हिंदू ऐसे हैं जो मांसाहार का सेवन करते हैं। देश की 55 फीसदी शहरी आबादी और 49 फीसदी प्रतिशत ग्रामीण आबादी मांसाहारी है। जैन और हिंदू धर्म के लोगों के बीच पिछले 6 साल में मांस खाने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है। यहां तक कि देश में हर आयु वर्ग के लोगों में मांसाहार करने वालों की संख्या बढ़ रही है।

नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट कह रही है कि देश में 15 से 49 साल के 84.4 फीसदी पुरुष और 70.6 फीसदी महिलाएं नॉन-वेज खाती हैं। 2015-16 से तुलना की जाए तो नॉन-वेज खाने वाले पुरुषों की संख्या में 5 फीसदी और महिलाओं की संख्या में 0.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
बंगाल, गोवा और केरल ये तीन राज्य ऐसे हैं जहां मांसाहार करने वालों की संख्या 90 फीसदी या उससे ज्यादा है। पूर्वोत्तर राज्यों में ये आंकड़ा 60 से लेकर 80 के बीच है।

यह कोई नई बात नहीं है। पहले से पता है कि जो राज्य समुद्र के किनारे हैं, जहां हर साल बाढ़ आती है, जहां अनाज की तुलना में मांसाहार आसानी से और सस्ते में उपलब्ध है, वहां के 80 से 90 फीसदी लोग मांसाहारी हैं। जैसे इस वक्त पूर्वोत्तर में बाढ़ के चलते सात से आठ लाख लोग प्रभावित हुए हैं। सब बह गया तो वे मांसाहार के लिए गदर काटने वाले किसी सियासी गधे का मांस तो खाएंगे नहीं। उनके पास अनाज नहीं है तो बाढ़ के पानी से मछली और केकड़ा पकड़ेंगे और खा लेंगे।

अब ऐसे देश में कोई पार्टी, कोई व्यक्ति, कोई नेता अगर शाकाहार और मांसाहार को मुद्दा बनाता हो, खानपान के आधार पर भीड़तंत्र को उकसाता हो, भीड़ को ‘न्याय करने’ की छूट देता हो, मांसाहार का बहाना लेकर उन्माद फैलाता हो तो सोचिए कि वह कितना बड़ा बलंडर आदमी है। या तो वह धूर्त है या फिर ऐसा महाशातिर है जिसके शातिरपन की कोई सीमा नहीं है। सोचिए ये कितने खतरनाक लोग हैं जो लोगों को उनके खानपान की परंपराओं के लिए उन्हें आपस में लड़ाते हैं!

भारत जैसे देश में मध्य मार्ग ही सर्वोत्तम है। जिसको जो खाना हो खाए, जिसको जो पूजना हो पूजे। हम अपना देखें, आप अपना देंखें। जहां आस्था का मसला फंसे वहां सरकार हस्तक्षेप करे और बीच का रास्ता निकाले। लेकिन इस समय भारत में एक चौपट राजाओं ने अंधेर नगरी बसा रखी है। 84 फीसदी मांसाहारियों के देश में 13 फीसदी लोग खाने पीने की आदतों को लेकर उपद्रव करें, यह विशुद्ध गुंडई नहीं तो और क्या है?

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