विचार / लेख

मंदिर-मस्जिद साथ-साथ क्यों न रहें?
24-May-2022 11:57 AM
मंदिर-मस्जिद साथ-साथ क्यों न रहें?

बेबाक विचार : डॉ. वेदप्रताप वैदिक

मंदिर-मस्जिद विवाद पर छपे मेरे लेखों पर बहुत-सी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। लोग तरह-तरह के सुझाव दे रहे हैं ताकि ईश्वर-अल्लाह के घरों को लेकर भक्तों का खून न बहे। पहला सुझाव तो यही है कि 1991 में संसद में जो कानून पारित किया था, उस पर पूरी निष्ठा से अमल किया जाए याने 15 अगस्त 1947 को जो धर्म-स्थान जिस रूप में था, उसे उसी रूप में रहने दिया जाए। उसके साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जाए।

जिस कांग्रेस पार्टी की सरकार ने यह कानून संसद में बनवाया था, वह भी इस बात को जोरदार ढंग से नहीं दोहरा रही है। उसे डर लग रहा है कि यदि वह ऐसा करेगी तो उसका हिंदू वोट बैंक, जितना भी बचा है, वह भी लुट जाएगा। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कांग्रेस की कब्रगाह बन सकता है। तो अब क्या करें? इस समस्या के हल का दूसरा विकल्प यह है कि 1991 के इस कानून को भाजपा सरकार रद्द करवा दे।

यह मुश्किल नहीं है। भाजपा का स्पष्ट बहुमत तो है ही, वोटों के लालच में छोटी-मोटी पार्टियां भी हां में हां मिला देंगी। तो क्या होगा? तब भाजपा सरकार के पास अगले दो-तीन साल तक एक ही प्रमुख काम रह जाएगा कि वह ऐसी हजारों मस्जिदों को तलाशे, जो मंदिरों को तोडक़र बनवाई गई हैं। यह काम ज्यादा कठिन नहीं है। अरबी और फारसी के कई ग्रंथ और दस्तावेज पहले से उपलब्ध हैं, जो तुर्क, मुगल और पठान बादशाहों के उक्त ‘‘पवित्र कर्म’ का बखान करते हैं।

वे धर्मस्थल स्वयं इसके साक्षात प्रमाण हैं। तो क्या इन मस्जिदों को तोडऩे का जिम्मा यह सरकार लेगी? ऐसे अभियान की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं क्या सरकार बर्दाश्त कर सकेगी? इस समस्या का तीसरा विकल्प यह हो सकता है, जैसा कि कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने बयान दिया है कि भारत के सारे मुसलमान उन सभी मस्जिदों का बहिष्कार कर दें और हिंदुओं को सौंप दें ताकि वे उन्हें फिर से मंदिर का रूप दे दें। यह सुझाव तो बहुत अच्छा है।

भारत के मुसलमान ऐसा कर सकें तो वे दुनिया के बेहतरीन मुसलमान मान जाएंगे और वे इस्लाम की इज्जत में चार चांद लगा देंगे लेकिन क्या यह संभव है? शायद नहीं। तो फिर क्या किया जाए? एक विकल्प जो मुझे सबसे व्यावहारिक और सर्वसंतोषजनक लगता है, वह यह है कि यदि मुसलमान मस्जिद को अल्लाह का घर मानते हैं और हिंदू लोग मंदिर को ईश्वर का घर मानते हैं तो अब दोनों घर एक-दूसरे के पास-पास क्यों नहीं हो सकते? क्या ईश्वर और अल्लाह अलग-अलग हैं? दोनों एक ही हैं।

1992 में अयोध्या में बाबरी ढांचे के ढह जाने के बाद जो 63 एकड़ जमीन उसके आस-पास नरसिंहराव सरकार ने अधिग्रहीत की थी, वह मेरा ही सुझाव था। उस स्थान पर अपूर्व एवं भव्य राम मंदिर तो बनना ही था, उसके साथ-साथ वहां पर दुनिया के सभी प्रमुख धर्मों का संयुक्त धर्म-स्थल भी बनना था। इसी काम को अब देश के कई स्थानों पर बड़े पैमाने पर जन-सहयोग से प्रेमपूर्वक संपन्न किया जा सकता है। (नया इंडिया की अनुमति से)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news