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अनीता कुमारी: मिट्टी के घर से अंडर-17 वर्ल्ड कप फुटबॉल टीम के कैंप तक का सफ़र
24-May-2022 6:43 PM
अनीता कुमारी: मिट्टी के घर से अंडर-17 वर्ल्ड कप फुटबॉल टीम के कैंप तक का सफ़र

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-सरताज आलम

झारखंड में इन दिनों भारत की महिला अंडर-17 फुटबॉल टीम का प्रशिक्षण शिविर चल रहा है. झारखंड की सात लड़कियों ने विपरीत परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करते हुए अंतिम 33 खिलाड़ियों में जगह बनाई है.

गोलकीपर अंजलि मुंडा, डिफेंडर सेलिना कुमारी, सुधा अनीता तिर्की, अष्टम उरांव, पूर्णिमा कुमारी, मिड फील्डर नीतू लिंडा और विंगर अनीता कुमारी भारतीय टीम का हिस्सा हैं.

ये सारे नाम झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों से हैं, जिनमें अधिकांश आदिवासी हैं. लेकिन अनीता कुमारी के संघर्ष की कहानी कुछ ख़ास है.

ग़रीब परिवार की पांच बेटियों में से एक
पांच बहनों में से एक अनीता कुमारी के पिता पूरन महतो के पास न तो खेत हैं और ना ही उनके पास कोई रोज़गार है.

अनीता की माता आशा देवी के अनुसार, एक के बाद एक पांच बेटियों को जन्म देने के कारण उनके 50 वर्षीय पति पहली बेटी के जन्म के साथ ही नाराज़ रहने लगे. इस नाराज़गी के कारण उन्हें शराब और हड़िया जैसे नशे की लत लग गई.

आशा देवी कहती हैं, "बेटियों के जन्म के बाद नाराज़गी में मेरे पति अपनी मां के साथ रहने लगे. नशे की लत पहले से थी, जो वक़्त के साथ बढ़ती चली गई. ने उनको बहुत समझाया कि बेटा-बेटी सब बराबर हैं, ये भगवान की मर्ज़ी है, लेकिन वे परिवार से दूर होते चले गए."

लिहाज़ा परिवार की ज़िम्मेदारी आशा देवी के कंधों पर आ गई. उन्होंने आरंभ में ईंट-भट्ठे पर काम किया. लेकिन कम आय होने के कारण वह मज़दूर बन गईं. इस काम के लिए उनको प्रतिदिन 40 से 50 किलोमीटर का सफ़र तय करना पड़ता है.

बतौर मेहनताना अब उन्हें 250 रुपए की रक़म दिहाड़ी के तौर पर मिलती है. इस रक़म में से 50 रुपए प्रतिदिन काम पर जाने और वापस आने के दौरान ऑटो या ट्रैकर के किराए के तौर पर ख़र्च हो जाते हैं. लेकिन उनको हर दिन काम भी नहीं मिलता.

रांची के कांके प्रखंड के 'चारी हुजीर' गांव की रहने वाली आशा देवी के घर की दीवारें मिट्टी की हैं. उनके घर की आधी छत खपरैल तो आधी एस्बेस्टस से बनी है. उनके घर में नाम मात्र के बर्तन मौजूद हैं.

इसी घर में रहते हुए अपने दम पर पांच बेटियों को लायक बनाने वाली आशा देवी ने बताया, "एक हफ़्ते पहले अनीता की बड़ी बहन जो बीए पास हैं, उसकी शादी की ज़िम्मेदारी पूरी की. तीन बेटियों की शादी की ज़िम्मेदारी निभाने के बाद 4 लाख रुपए का कर्ज़ हो गया. वहीं चौथी बेटी अनीता रांची वीमेंस कॉलेज से शिक्षा हासिल करने के साथ भारतीय महिला फुटबॉल टीम का हिस्सा हैं. पांचवी बेटी सुनीता भी फुटबॉल खेलने के साथ शिक्षा हासिल कर रही हैं.''

बीबीसी से बातचीत के दौरान, आशा देवी ने बताया कि आज भी उनके पास राशन कार्ड नहीं है. उनकी सास के राशन कार्ड पर जो अनाज मिलता है, उसका एक छोटा हिस्सा उन्हें मिलता है.

आशा देवी कहती हैं, "सास के दिए पांच किलो चावल से घर कैसे चलेगा. मैंने मुखिया से कई बार अनुरोध किया कि राशन कार्ड बनवा दें, लेकिन सिर्फ़ आश्वासन ही मिला है."

मां को पांच बेटियां होने का ताना
पांच बेटी होने का ताना सुन-सुनकर आशा देवी की ज़िंदगी कष्टों के साथ कट रही थी, लेकिन अनीता की कामयाबी ने उनके हृदय पर मौजूद घावों पर मरहम का काम किया है.

वे कहती हैं, "मेरी बेटी अनीता, बेटी नहीं बेटा है. अनीता ने हमारा, हमारे गांव के साथ झारखंड का नाम रोशन किया है."

आशा देवी कहती हैं बेटी ने फ़ुटबॉल मजबूरी में खेलना शुरू किया.

वे बताती हैं, "हमारे पास खेत होते तो मेरी बेटियां खेत पर काम करतीं, जब उनके पास कोई काम नहीं था, तो वह फुटबॉल खेलने लगीं."

"आरंभ में अनीता को खेलते हुए देख कर गांव के लोगों ने कहा कि आपकी बेटी मर्द की तरह हाफ पैंट पहन कर फुटबॉल खेलती है. उसको पढ़ाओ-लिखाओ, बदमाशी मत सिखाओ. लेकिन अब उसकी सफलता देख आलोचना करने वालों ने कहना शुरू किया कि ग़रीब की बेटी आगे बढ़ गई."

झारखंड टीम में चयन
गांव में अनीता के कोच रहे आनंद प्रसाद गोप का कहना है कि क़रीब 400 घरों वाले इस चेरी-हुजीर गांव में बाल विवाह आम बात थी, लड़कियां अपने क़दम गांव के बाहर नहीं रख सकती थीं.

वे कहते हैं, ''वर्ष 2013 की बात है, जब मैंने अनीता सहित 15 लड़कियों को फुटबॉल खेलने के लिए प्रेरित किया. लेकिन गांव के लोग शुरू में विरोध करते थे. उनके विरोध का हाल ये था कि वे लोग फुटबॉल के मैदान में शीशे के टुकड़े फेंक दिया करते थे, ताकि लड़कियां फुटबॉल न खेल सकें. लेकिन अनीता ने खेलना जारी रखा.''

कोच बताते हैं कि अनीता ने 2018 में झारखंड टीम में चयन के लिए ट्रायल में भाग लिया जहाँ से उसकी कामयाबी का सिलसिला शुरू हुआ.

वो कहते हैं,"उसने झारखंड की टीम में जगह पाई. उसके बाद पुणे में अंडर-14 स्कूल नेशनल चैंपियनशिप से अनीता ने जो कामयाबी हासिल की, वो वर्ल्डकप टीम में चयन के साथ जारी है."

आलोचना करने वालों को हो रहा गर्व
फीफा अंडर-17 वर्ल्डकप के लिए जमशेदपुर में चल रहे भारतीय टीम के शिविर का हिस्सा बनीं अनीता कुमारी ने झारखंड की ओर से खेलते हुए अब तक 15 गोल किए हैं.

आशा देवी कहती हैं 'गांव में हमारी आलोचना करने वाले लोग आज अनीता की उपलब्धियों पर गर्व महसूस कर रहे हैं'.

अनीता बताती हैं कि उनके घर में टेलीविज़न नहीं है, लेकिन जब वह खेलने जाती हैं तो उनके रिश्तेदार के घर जा कर उनकी मां टेलीविज़न पर मैच देखती हैं.

अंडर-17 फीफा कप खेलने के बाद आपका अगला कदम क्या होगा? इस सवाल के जवाब में अनीता ने कहा कि मैं अंडर-17 में अच्छा प्रदर्शन करते हुए भारत की सीनियर टीम का हिस्सा बनना चाहती हूं. आगे चलकर मैं वंचित परिवार के बच्चों को फुटबॉल की ट्रेनिंग देना चाहती हूं. (bbc.com)

 

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