संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कुत्ते के लिए स्टेडियम खाली करवाना घटना नहीं, नौकरशाही की सोच है
27-May-2022 6:16 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कुत्ते के लिए स्टेडियम खाली करवाना घटना नहीं, नौकरशाही की सोच है

दिल्ली के एक बड़े अखबार, इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के बाद दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ आईएएस जोड़े का तबादला दिल्ली से दूर लद्दाख और अरूणाचल कर दिया गया है। अखबार की खबर थी कि एक बड़े सरकारी स्टेडियम, त्यागराज स्टेडियम में ये अफसर शाम को अपना कुत्ता घुमाने ले जाते थे, और इस वजह से वहां खेल की प्रैक्टिस कर रहे सभी सैकड़ों खिलाडिय़ों को सात बजे के पहले स्टेडियम से बाहर निकाल दिया जाता था। नौकरशाही की बददिमागी की यह एक आम मिसाल है, और देश भर में जगह-जगह आईएएस और आईपीएस अफसरों की ऐसी तरह-तरह की मनमानी चलती रहती है, जिस पर बड़े वजनदार सत्तारूढ़ राजनेताओं का भी कोई बस नहीं चलता। अखिल भारतीय सेवाओं के अफसर सत्ता की तमाम ताकत का बुरी तरह इस्तेमाल करने के लिए बदनाम रहते हैं, और जाहिर तौर पर सरकारी नियमों के खिलाफ होने पर भी वे तकरीबन हर मामले में बचे ही रहते हैं।

एक वक्त इन नौकरियों को देश की सेवा करने का एक मौका माना जाता था, लेकिन वक्त ने यह साबित किया कि यही स्थाई शासक हैं, और निर्वाचित नेता तो पांच-पांच बरस में आते-जाते रहते हैं। दूसरी बात देश-प्रदेश में यह भी देखने मिलती है कि सरकार चला रहे मंत्रियों में खुद में समझ की इतनी कमी रहती है कि वे अपने मातहत आने वाले बड़े अफसरों के राय-मशविरे के मोहताज रहते हैं, नीतियां बनाने में भी नेताओं को अफसरों की मदद लगती है। इसके अलावा एक बड़ी बात जिसने हिन्दुस्तान में सरकारी कामकाज को तबाह किया है, वह नेताओं की भ्रष्टाचार की चाहत है, जिसके चलते हुए वे अपने अफसरों के साथ गिरोहबंदी में लग जाते हैं, और पार्टनरशिप फर्म की तरह साझा कमाई में हिस्सा बांटा होने लगता है। जब ऐसी नौबत आ जाती है तो अफसरशाही और बेलगाम हो जाती है क्योंकि रिश्वत और कमीशन खाने-कमाने के तरीके उन्हें नेताओं से ज्यादा आते हैं।

हिन्दुस्तान में सत्ता के बेजा इस्तेमाल का हाल इतना खराब है कि देश की राजधानी में बड़े से सरकारी स्टेडियम में अपने-अपने खेल की प्रैक्टिस कर रहे सैकड़ों खिलाडिय़ों को सात बजे के पहले हर हाल में बाहर करके अफसर परिवार अपना कुत्ता घुमाता है, और आधी-अधूरी प्रैक्टिस छोडक़र खिलाडिय़ों को चले जाना पड़ता है। ऐसा राज्यों में भी अधिकतर जगहों पर होता है जहां अफसर पूरी तरह बेलगाम रहते हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर में जहां गरीब आदिवासी बसते हैं, वहां पर एक आईएफएस ने अपने सरकारी बंगले में सरकारी पैसे से स्वीमिंग पूल बनवा लिया था, जिसका खूब हंगामा हुआ, जांच का भी नाटक किया गया, लेकिन अफसर का कुछ भी नहीं बिगड़ा। प्रदेश के अधिकतर बड़े अफसर एक की जगह आधा-आधा दर्जन तक गाडिय़ां रखते हैं, बड़े बंगलों में दर्जनों सिपाही-कर्मचारी बेगारी करते हैं, और ऐसे हर छोटे कर्मचारी का सरकार पर बहुत बड़ा बोझ रहता है। अधिकतर बड़े अफसर अपनी तनख्वाह से कई गुना अधिक का बोझ सरकार पर डालते हैं, और बंगलों के रख-रखाव के अलावा कहीं सिपाही और कर्मचारी सब्जियां उगाने का काम करते हैं, कहीं कुत्ता घुमाते हैं, और कहीं बच्चों को खिलाते हैं।

केन्द्र सरकार ने दो आईएएस अफसरों की इस तरह सजा वाली पोस्टिंग करके एक अच्छी मिसाल कायम की है, और राज्यों को भी इससे सीखना चाहिए। अखिल भारतीय सेवाओं का पूरा ढांचा पूरे देश में एक जैसी कार्य संस्कृति के लिए भी बना है, और वह बीते दशकों में धीरे-धीरे धराशाही होते रहा। बहुत से जानकार लोगों का यह भी मानना है कि यह प्रशासनिक ढांचा अंग्रेजों के वक्त काले हिन्दुस्तानियों पर राज करने के लिए तो ठीक था, लेकिन अब यह काउंटर प्रोडक्टिव हो गया है। हमारे नियमित पाठकों को याद होगा कि हम नौकरशाही की सबसे ताकतवर कुर्सी, जिला कलेक्टरी का नाम बदलने की वकालत करते आए हैं। अब कलेक्टर कुछ कलेक्ट नहीं करते हैं, बल्कि राज्य की और केन्द्र की कमाई को जिलों में खर्च करने का काम करते हैं। इसलिए कलेक्टर या जिलाधीश पदनाम को बदलकर जिला जनसेवक नाम रखना चाहिए ताकि नाम की तख्ती से उनकी सोच पर भी फर्क पड़ सके। आज उनका रूतबा इस नाम और उसके साथ जुड़ी हुई ताकत की वजह से बने रहता है, और इस सामंती ढांचे को तोडऩे की जरूरत है। जब कलेक्टरों का नाम जिला जनसेवक रहेगा, तो वे अस्पताल में बीमारों को देखते हुए उनके पलंग पर अपने जूते वाले पैर रखना भूल जाएंगे। लोगों को यह अहसास लगातार कराने की जरूरत रहती है कि उनका काम क्या है और उनकी जिम्मेदारी क्या है। राज्य सरकारें अपने स्तर पर भी अफसरों के पदनाम बदल सकती हैं, और इसमें देर नहीं करनी चाहिए। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल लगातार गांव-गांव का दौरा कर रहे हैं, और उनके भी देखने में आया होगा कि कई जगहों पर कलेक्टर बहुत बददिमागी से काम करते हैं। इसलिए इस एक कुर्सी के नाम और काम में इतनी सारी ताकत बनाए रखना सही नहीं है। दिल्ली में एक अखबार की रिपोर्टिंग से इस आईएएस जोड़े की बददिमागी सामने आई है, लेकिन देश भर में इस बददिमागी को खत्म करने की जरूरत है।
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