संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बंदूकों पर रोक से क्या सामूहिक हत्याओं को रोक पाएगा अमरीका?
28-May-2022 4:39 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बंदूकों पर रोक से क्या सामूहिक हत्याओं को रोक पाएगा अमरीका?

अमरीका में नागरिकों के निजी हथियार सदियों से बहस का सामान रहे हैं। अठारहवीं सदी में अंग्रेजों की गुलामी से आजादी पाने के लिए नागरिकों ने भी अपने हथियारों सहित लड़ाई में हिस्सा लिया था, और बाद में जब अमरीका का संविधान बना तो नागरिकों के बुनियादी अधिकारों की फेहरिस्त में निजी हथियार रखना दूसरे ही नंबर पर था। तब से बहस भी चल रही है कि क्या नागरिकों को इतनी आसानी से हथियार खरीदने की छूट रहनी चाहिए, लेकिन हथियार निर्माताओं की तगड़ी लॉबी कभी इस छूट के खिलाफ कोई कानून बनने नहीं देती। अभी एक पखवाड़े के भीतर अमरीका में दो बड़ी शूटिंग हुईं, एक में दस काले लोगों को मार डाला गया, और दूसरी में बीस स्कूली बच्चों की हत्या कर दी गई। इसके बाद एक बार फिर यह बहस चल रही है कि अमरीका में हथियारों को लेकर कुछ नए प्रतिबंध लगाए जाएं, और जैसा कि हमेशा से होते आया है, वहां की रिपब्लिकन पार्टी किसी भी नियंत्रण का विरोध कर रही है क्योंकि इस पार्टी का हाल यह है कि कोई इसके सांसद बनने के लिए पार्टी का उम्मीदवार बनना चाहे, तो उस उम्मीदवारी के लिए भी उसे गन लॉबी से अनापत्ति प्रमाणपत्र लेना पड़ता है। इसलिए देश की एक सबसे बड़ी पार्टी खुलकर हथियारों की आजादी की हिमायती है, और ऐसे में वहां की संसद से नागरिकों के बुनियादी अधिकार पर किसी किस्म के संशोधन की कोई गुंजाइश किसी को दिखती नहीं है।

लेकिन अमरीका के इस घरेलू खतरे की बारीकियों से परे इस मुद्दे पर एक व्यापक नजर डालें तो यह दिखता है कि अमरीका में अभी चालीस करोड़ या उससे अधिक बंदूकें हैं, और इनमें से अधिकतर नागरिकों के पास हैं जिन्हें अठारह बरस का होने पर एक से अधिक हमलावर हथियार खरीदने की आजादी है। 2018 के आंकड़े बताते हैं कि वहां सौ नागरिकों के बीच 120 हथियार हैं, मतलब यह कि बहुत से लोगों के पास एक से अधिक हथियार भी हैं। अभी स्कूल में बच्चों को मार डालने वाले नौजवान ने कुछ समय पहले ही अपने अठारहवें जन्मदिन पर अपने को दो बंदूकें तोहफे में दी थीं, जो कि अमरीका में हमलावरों की सबसे पसंदीदा बंदूक है। अब जब वहां के फिक्रमंद मां-बाप में से कुछ लोग हथियारों पर कुछ रोक की बात कर रहे हैं, तो एक बार फिर हथियार उद्योग लोगों को सुझा रहा है कि वह तो स्कूल के शिक्षकों को हथियार बंद करने की बात बहुत समय से करते आया है। लेकिन कुछ समझदार लोगों का यह मानना है कि ऐसी कोई वजहें नहीं हैं जिनसे यह मान लिया जाए कि शिक्षकों के हथियार बंद होने से स्कूलों में हिंसा घट जाएगी।  दूसरी तरफ हथियारों पर किसी भी रोक के खिलाफ जो लोग हैं उनका तर्क यह है कि हत्याएं हथियार नहीं करते हैं, उनके पीछे के दिमाग करते हैं, और सरकार को मानसिक रूप से बीमार या हिंसक ऐसे लोगों को इलाज की जरूरत है, और जब कभी वे कोई धमकी या चेतावनी पोस्ट करते हैं तो उस पर नजर रखने की जरूरत भी है ताकि उन्हें कोई सामूहिक हिंसा करने से रोका जा सके।

आज यहां इस मुद्दे पर लिखने का एक मकसद यह भी है कि क्या अमरीका को सचमुच ही कम हथियारों से अधिक सुरक्षित बनाया जा सकता है? क्या यह तर्क जायज है कि चालीस करोड़ हथियारों वाले देश में पिछले बीस बरस में कुल सौ सामूहिक हत्याएं हुई हैं। इसका एक मतलब यह भी है कि हथियार रखने वाले अधिकतर लोगों ने कोई सामूहिक हत्याएं नहीं की हैं, बल्कि कोई भी हत्याएं नहीं की हैं। लेकिन एक दूसरा आंकड़ा बताता है कि 2020 में ही 45 हजार अमरीकियों की मौत पिस्तौल-बंदूक की गोलियों से हुई हैं, चाहे वे आत्महत्या हुई हों, या हत्याएं। मतलब यह है कि सामूहिक हत्या की घटनाओं को देखें तो ऐसा लगता है कि हथियार के मुकाबले उसके पीछे के दिल-दिमाग की अधिक बड़ी भूमिका हिंसक फैसलों में रही हैं। अगर हथियार रखने से ही लोग हिंसा पर उतारू हो जाते तो चालीस करोड़ हथियारों वाले, या सौ की आबादी पर 120 हथियारों वाले देश में कोई जिंदा ही नहीं बचते। अब अमरीकी बुनियादी अधिकार की बात को अगर अलग रखें, तो हिन्दुस्तान जैसे देश की मिसाल सामने है जहां गिने-चुने नागरिकों के पास ही हथियार रहते हैं क्योंकि एक-एक लायसेंस के लिए लोगों को बरसों तक सरकार में संघर्ष करना पड़ता है। और हिन्दुस्तान में हथियारों की हिंसा में ऐसी कोई कमी भी नहीं है, रोजाना दर्जनों लोग हथियारों की गोलियों से मारे जाते हैं। यह एक अलग बात है कि अमरीका की तरह की सामूहिक हत्याएं यहां पर नहीं होती हैं, और दिलचस्प बात तो यह है कि अमरीका की तरह के जो दूसरे पश्चिमी देश हैं उनमें भी कहीं पर भी ऐसी हत्याएं नहीं होती हैं, सिर्फ अमरीका में ही होती हैं।

ऐसे हत्यारे आमतौर पर किसी नस्ल या धर्म के लोगों के खिलाफ रहते हैं, और उनमें से कुछ लोग ऐसे भी रहे हैं जिनकी कुछ बुरी यादें अपने स्कूल को लेकर रही हैं, और वे उसका हिसाब चुकता करने के लिए वहां जाकर सामूहिक हत्या कर आए हैं। लोगों के पास बड़ी संख्या में हथियार रहना अच्छी बात नहीं है क्योंकि उससे दूसरे लोग भी मारे जाते हैं, खुद भी मरते हैं, और लंबी-चौड़ी सजा भी होती है। लेकिन सामूहिक हत्या को लेकर अगर हथियारों की कमी की बात की जाए, तो अमरीका में कभी भी ऐसा तो हो नहीं सकता कि निजी हथियारों पर पूरी रोक लग जाए। उनमें अगर कमी या कटौती होगी, हथियार लेने के पहले लोगों का मानसिक परीक्षण होगा, तो चालीस करोड़ लोगों का मानसिक परीक्षण, या उनके सामाजिक बर्ताव पर निगरानी किसी भी सरकार की क्षमता के बाहर का काम होगा। हम निजी हथियारों के खिलाफ हैं, क्योंकि उनका इस्तेमाल आत्मरक्षा के लिए तो बहुत ही कम होता है, अपने आपको या किसी दूसरे बेकसूर को मारने के लिए अधिक होता है। लेकिन अमरीका में आज जिस तर्क के साथ, सामूहिक हत्याओं को रोकने के लिए निजी हथियारों पर किसी किस्म की रोक की बात की जा रही है, वह ऐसी सामूहिक हत्याओं का इलाज नहीं दिख रही है। सामूहिक हत्याओं के पीछे की वजहों को तलाशना भी जरूरी होगा। और इस मुद्दे पर चर्चा का एक मकसद यह भी है कि दुनिया में जहां कहीं जटिल समस्याएं रहती हैं, वहां पर जाहिर तौर पर समस्या की जड़ जो दिखती है, उसकी असली जड़ शायद उससे अलग भी हो सकती है। यह ध्यान हमेशा रखना चाहिए।
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