संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सात जिंदगियों की सामूहिक आत्महत्या से तो आंखें खुलें!
29-May-2022 4:24 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  सात जिंदगियों की सामूहिक आत्महत्या से तो आंखें खुलें!

राजस्थान से दिल दहलाने वाली खबर आई है कि एक ही परिवार की तीन बहनों की शादी एक ही घर में हुई थी, और अब उन्होंने एक साथ अपने दो बच्चों को लेकर आत्महत्या कर ली है। ये सब बहनें 20-25 बरस के आसपास की थीं, और दोनों बच्चे बहुत छोटे थे, दो बहनें गर्भवती भी थीं। लड़कियों के मायके का कहना है कि तीनों को ससुराल में दहेज के लिए बार-बार पीटा जाता था, और तंग आकर उन्होंने सामूहिक आत्महत्या कर ली। मायके के पास अपनी जुबानी शिकायत के अलावा एक बहन का वॉट्सऐप स्टेटस है जिसमें उसने लिखा है- हम अभी जा रहे हैं, खुश रहें, हमारी मौत का कारण हमारे ससुराल वाले हैं, हर दिन मरने से बेहतर है कि एक बार में ही मर जाएं। तमाम लाशें मिल जाने के बाद इन तीनों बहनों के पतियों और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज प्रताडऩा और आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का मामला दर्ज किया गया है, और गिरफ्तार किया गया है।

आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि आत्महत्या की कगार पर पहुंचे हुए लोगों को अगर मन हल्का करने के लिए कोई भरोसेमंद मिल जाए, तो उनकी आत्महत्या की सोच टल भी सकती है, खत्म भी हो सकती है। लेकिन यहां तो एक साथ रहती तीनों बहनें इस तरह प्रताडि़त थीं कि आत्महत्या का फैसला शायद एक-दूसरे से बात करके और पुख्ता ही हो गया। आत्महत्या के विश्लेषकों का यह मानना रहता है कि महिलाएं आत्महत्या करते हुए बच्चों को पहले इसलिए मार देती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके बाद बच्चों की जिंदगी और खराब रहेगी, और उससे अच्छा उनका मर जाना रहेगा। भारत में महिलाओं की आत्महत्या में से बहुत की वजह दहेज प्रताडऩा रहती है जिसके चलते उसके दिमाग में ससुराल के लोग बार-बार यह बात बिठाते हैं कि वह मर जाए तो ससुराल सुखी रहेगा। बहुत सी लड़कियों की जिंदगी में शादी के बाद मायके लौटने का विकल्प नहीं रहता क्योंकि हिन्दुस्तानी समाज में उसके दिमाग में यह बात बार-बार कूट-कूटकर भरी जाती है कि उसकी डोली मायके से उठी है, और उसकी अर्थी उसके ससुराल से उठनी चाहिए। भारत का कानून शादीशुदा लडक़ी को भी अपने माता-पिता की संपत्ति में हक दिलाने की बात करता है, लेकिन असल जिंदगी में यह माहौल बना दिया जाता है कि लडक़ी का हक उसके दहेज की शक्ल में दिया जा चुका है, और बची हुई दौलत भाईयों की होती है। यह सब चलते हुए बहुत सी लड़कियां ससुराल में घुट-घुटकर मर जाती हैं, आत्महत्या कर लेती हैं, या उनकी दहेज-हत्या हो जाती है, लेकिन मां-बाप के घर लौटने की नहीं सोच पातीं।

एक दूसरी बड़ी वजह शादीशुदा लड़कियों की आत्महत्या की यह भी है कि वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं रहती हैं, उनकी नौकरी या कामकाज ससुराल ही छुड़वा देता है, या मां-बाप लगने ही नहीं देते हैं, और ससुराली प्रताडऩा के बीच भी उसके पास वहां से बाहर निकलकर अपने पैरों पर खड़े होने और जिंदगी गुजारने का विकल्प नहीं रहता है। जो लड़कियां शादी के बाद भी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर रहती हैं, शायद उनकी आत्महत्या की नौबत कम आती होगी। इसलिए ऐसी हत्या या आत्महत्या की खबरें पढ़ते हुए भारतीय समाज में लडक़ी और उसके मां-बाप को चाहिए कि वे उसे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाकर ही उसकी शादी करें। जिस राजस्थान से ऐसी सामूहिक आत्महत्या की खबर आई है, वहां पर अभी भी बाल विवाह का चलन है, और एक समाचार बताता है कि इस आत्महत्या में शामिल तीनों बहनों की शादी बचपन में ही तीनों भाईयों से हो गई थी, और कुछ बड़ी होने के बाद वे अपने पतियों के पास रहने आई थीं। बाल विवाह हिन्दुस्तान में एक बड़ी वजह है कि लडक़ी न शादी के पहले आत्मनिर्भर हो पाती, और न शादी के बाद। बाल विवाह के खिलाफ कानून कड़ा है, लेकिन इसका प्रचलन खत्म ही नहीं हो रहा है, और ऐसे बाल विवाह लडक़ी के व्यक्तित्व का कोई विकास नहीं होने देते, उसकी पूरी जिंदगी ससुराल में गुलाम कैदी की तरह बना देते हैं।

यह मामला इतना बड़ा है जिसमें तीन सगी बहनें दो बच्चों के साथ आत्महत्या कर रही हैं, और दो की कोख में अजन्मे बच्चे पल भी रहे थे। इस तरह सात जिंदगियां एक साथ खत्म हुई हैं। इस मामले से भारतीय समाज की आंखें खुलनी चाहिए, और अलग-अलग जात-बिरादरी के भीतर इस मिसाल को लेकर चर्चा होनी चाहिए कि लड़कियों की बदहाली कैसे घटाई जा सकती है, और कैसे उसे आत्मनिर्भर और सुरक्षित बनाया जा सकता है। एक अकेली आत्महत्या शायद लोगों को जगाने के लिए काफी न होती, लेकिन अभी यह मामला जितना भयानक है उससे समाज की व्यापक सोच में बदलाव आना चाहिए।

ऐसा भी नहीं हो सकता कि इस परिवार के और लोगों को, या पड़ोस के लोगों को इतनी पारिवारिक हिंसा की जानकारी न हुई हो। अब या तो वे सीधी दखल देना नहीं चाहते होंगे, या फिर पुलिस पर उनका भरोसा नहीं होगा कि उससे शिकायत करके उनका नाम गोपनीय रह सकेगा। एक पूरे परिवार की ऐसी नौबत आने के बाद भी उसे बचाने के लिए कुछ न करना, आसपास के लोगों की बेरूखी भी बताता है, और बाकी समाज में इस पर भी चर्चा होनी चाहिए कि समाज की सामूहिक जिम्मेदारी ऐसे में क्या बनती है। आखिर में हम इसी बात को दुहराना चाहेंगे कि देश के कानून के मुताबिक मां-बाप को लडक़ी को उसका हक देना चाहिए, और अगर ऐसा हक मिलने का भरोसा रहेगा, तो बहुत सी लड़कियां आत्महत्या करने के बजाय मायके लौटने की सोच सकेंगी।
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