संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कांग्रेस का यह कैसा फैसला? राज्यसभा में छत्तीसगढ़ी नहीं!
30-May-2022 2:33 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कांग्रेस का यह कैसा फैसला? राज्यसभा में छत्तीसगढ़ी नहीं!

कांग्रेस पार्टी के लिए राज्यसभा के नाम तय करना इस बार आसान भी नहीं था क्योंकि कुल दो राज्यों में उसकी सरकार है, और उसके अनगिनत नेता अपने-अपने राज्यों में हारे बैठे हैं जो कि कांगे्रस विधायकों वाले राज्यों से राज्यसभा पहुंचना चाहते थे। ऐसे में पार्टी ने थोड़े बहुत नेताओं को खुश करने की जो कोशिश की है उससे छत्तीसगढ़ जैसे राज्य को बड़ा सदमा पहुंचा है और उसे एक किस्म से बड़ी बेइज्जती झेलनी पड़ी है। इसके पहले छत्तीसगढ़ के बीस बरस के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ था कि किसी पार्टी की दोनों सीटों को प्रदेश के बाहर के लोगों को दे दिया जाए। इस बार छत्तीसगढ़ पर कांग्रेस पार्टी के एक पुराने नेता राजीव शुक्ला को थोपा गया है जो कि कांग्रेस से अधिक क्रिकेट संगठन की राजनीति में लगे रहते हैं, और जिन पर पहले कई तरह के गंदे आरोप लग चुके हैं। अरबपतियों के कारोबारी खेल आईपीएल के विवाद उनके नाम चढ़े हुए हैं, वे अपनी पारिवारिक हैसियत में अरबपति मीडिया कारोबारी भी माने जाते हैं, और कई बार राज्यसभा में रह चुके हैं, और अब छत्तीसगढ़ पर उन्हें लादा गया है। दूसरी तरफ बिहार के एक बाहुबली नेता पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन को भी कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ से उम्मीदवार बनाना तय किया है जो कि बिहार में कई चुनाव जीत और हार चुकी हैं, और अभी पिछली लोकसभा में वो कांग्रेस की सांसद थीं। अब कांग्रेस पप्पू यादव के नाम से जानी जाने वाली उनकी पत्नी को छत्तीसगढ़ पर लादकर क्या साबित करना चाहती है? यह राज्य जिस ओबीसी तबके के मुख्यमंत्री का है, जहां पर मुख्यमंत्री पद के चार में से तीन दावेदार ओबीसी तबके के थे, जहां पर पिछले विधानसभा चुनाव में ओबीसी तबके के साहू समाज ने कांग्रेस को थोक में विधायक दिए थे, वहां पर आज प्रदेश में कई अच्छे ओबीसी नाम खबरों में तैरते रहे, और पार्टी ने बाहर के दो लोगों को यहां भेज दिया। अभी दो दिन पहले तक कांग्रेस छत्तीसगढ़ से किसी दलित महिला का नाम तलाश रही थी, अब एकाएक दो बाहरी लोगों को यहां डाल दिया गया। राजीव शुक्ला की मानो पूरी जिंदगी ही राज्यसभा में गुजरने के लिए बनी है, और पप्पू यादव का बाहुबल उन्हें छत्तीसगढ़ तक में ताकतवर बना रहा है। कांग्रेस की ऐसी पसंद से छत्तीसगढ़ के लोगों में भारी निराशा है, और यहां की कांग्रेस पार्टी में निराशा होना तो जायज है ही। भारत की राजनीति में बड़ी या छोटी पार्टियां जिन लोगों को राज्यसभा के लिए मनोनीत करती हैं उनके पीछे देश के किस उद्योगपति का हाथ रहता है, इसे साबित करना तो नामुमकिन रहता है, लेकिन उसकी चर्चा होते रहती है, और इस बार भी वह चर्चा हो रही है।

लेकिन इस पार्टी की समझ हैरान करती है कि दो विधायकों वाले यूपी से वह राज्यसभा के तीन उम्मीदवार दूसरे राज्यों पर थोप रही है। और जो छत्तीसगढ़ और राजस्थान डेढ़ बरस बाद एक साथ चुनाव में जाएंगे, जहां पर आज कांग्रेस की सरकारें हैं, वहां पर एक भी स्थानीय नाम राज्यसभा के लिए सही नहीं समझा गया, और इन दोनों राज्यों पर दूसरे राज्यों के नेताओं को थोपा गया है। राजस्थान से तीन सदस्य राज्यसभा में जाएंगे, जिनमें पंजाब के रणदीप सिंह सुरजेवाला, महाराष्ट्र के मुकुल वासनिक, और राजस्थान के प्रमोद तिवारी के नाम हैं। यह बात भी हैरान करती है कि जिन मुकुल वासनिक की दस्तक से कांग्रेस उम्मीदवारों की लिस्ट जारी हुई उन्हें अपने गृहप्रदेश महाराष्ट्र से जगह नहीं मिली, उन्हें राजस्थान भेजा गया, और उत्तरप्रदेश से इमरान प्रतापगढ़ी को महाराष्ट्र भेजा गया। ऐसा शायद इसलिए किया गया है कि राजस्थान कांग्रेस के कुछ विधायकों ने गुलाम नबी आजाद की नाम की चर्चा होने पर उनका विरोध किया था, और शायद उसे देखते हुए ही इमरान प्रतापगढ़ी को महाराष्ट्र के रास्ते राज्यसभा लाया जा रहा है।

छत्तीसगढ़ ने पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को छप्पर फाडक़र सीटें दी थीं, और उसी का नतीजा है कि आज राज्यसभा की दोनों सीटों के लिए कांग्रेस के उम्मीदवारों का जीतना तय है, और भाजपा ने यहां उम्मीदवार खड़े न करना तय किया है। लेकिन अपार जनसमर्थन को अगर कांग्रेस पार्टी अपना हक मानकर इस तरह की मनमानी करती है, तो राज्य के ऐसे अपमान को वोटर अगले चुनाव में अच्छी नजर से नहीं देखेंगे। कल ये नाम आने के बाद से अभी तक सोशल मीडिया पर भी छत्तीसगढ़ कांग्रेस के छत्तीसगढ़ीवाद का मजाक उड़ रहा है कि क्या यही सबसे बढिय़ा छत्तीसगढिय़ा हैं?

हमने इसके पहले भी छत्तीसगढ़ के बाहर के थोपे गए लोगों को देखा है जिनसे इस राज्य को एक धेले का भी कोई फायदा नहीं हुआ था। कांग्रेस पार्टी ने यहां से 2004 और 2010 में मोहसिना किदवई को राज्यसभा भेजा था, जिनका एक भी काम कांग्रेस पार्टी को भी याद नहीं होगा। अभी दो बरस पहले ही दिल्ली के एक बड़े वकील केटीएस तुलसी को कांग्रेस ने राज्यसभा में भेजा था, और दो बरस पूरे होने पर भी उनका कोई अस्तित्व छत्तीसगढ़ को नहीं मालूम है। यह नौबत इस प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के लिए बहुत खराब है जिसने कि एक बहुत ही अभूतपूर्व ताकत हासिल की हुई है। यह मौका छत्तीसगढ़ के ऐसे लोगों को राज्यसभा में भेजने का था जो कि देश की संसद में इस प्रदेश के मुद्दों को बेहतर तरीके से उठा सकते थे। आज लोकसभा में छत्तीसगढ़ के कुल दो सांसद हैं, और पिछले लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़, राजस्थान, और मध्यप्रदेश में कुल मिलाकर 65 लोकसभा सीटों पर तीन कांग्रेस सांसद चुने गए थे, जिनमें से दो छत्तीसगढ़ से थे। ऐसे छत्तीसगढ़ को कांग्रेस ने ऐसी हिकारत से देखा है कि यहां की दोनों राज्यसभा सीटें बाहर के निहायत गैरजरूरी लोगों को दे दीं। इस बार राज्य में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के आसपास ही राज्यसभा के लायक कई अच्छे नाम थे, जिनमें उनके सलाहकारों के नाम भी थे, लेकिन इनमें से किसी को मौका नहीं मिला, और विवादों से जुड़े हुए दो नाम इस राज्य पर डाल दिए गए। छत्तीसगढ़ी वोटर यह भी सोच रहे होंगे कि क्या किसी पार्टी को इतना बहुमत देने का मतलब राष्ट्रीय स्तर पर इतनी उपेक्षा झेलना भी हो सकता है? अब राज्यसभा में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस से जो चार लोग रहेंगे उनमें से सिर्फ फूलोदेवी नेताम ही छत्तीसगढ़ी रहेंगी। यह राज्य ऐसे राजनीतिक फैसले का दाम चुकाएगा जब इसके हक की बात करने वाले राज्यसभा में नहीं रहेंगे।
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