संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : स्कूल-कॉलेज के अंगने में धर्म का क्या काम है?
03-Jun-2022 4:14 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : स्कूल-कॉलेज के अंगने में धर्म का क्या काम है?

हिन्दुस्तान अब धर्म की अफीम के नशे में डूब गया दिखता है। और लोग महज अपने धर्म की अफीम के नशे में डूबते तो भी ठीक होता, लोग अब अपने से अधिक दूसरे धर्म की अफीम के नशे में डूब रहे हैं। अभी उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ के एक निजी कॉलेज के कैम्पस में वहां के एक प्रोफेसर ने बगीचे में एक खुली जगह पर नमाज पढ़ी, और इसका वीडियो फैला, तो भाजपा और कुछ दूसरे दक्षिणपंथी संगठनों ने इसका विरोध किया। कॉलेज प्रशासन ने प्रोफेसर को एक महीने की छुट्टी पर भेज दिया। अब कुछ लोग इस प्रोफेसर पर और कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, दूसरी तरफ बहुत से लोग इसे देश में बनाए जा रहे मुस्लिम विरोधी माहौल की एक कड़ी बता रहे हैं। इस मुस्लिम प्रोफेसर ने प्रिंसिपल को बताया कि वे जल्दी में थे, और नमाज का वक्त हो गया था तो बगीचे के एक कोने में उन्होंने नमाज पढ़ी थीं। इसका विरोध कर रहे लोगों का तर्क है कि कॉलेज परिसर का इस्तेमाल धार्मिक आस्थाओं के लिए नहीं किया जाना चाहिए। भाजपा के एक नेता ने थाने में इसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है कि आज अगर इसे नहीं रोका तो कल बच्चे क्लास में भी नमाज पढ़ेंगे।

इस ताजा विवाद में बस घटना नई है, बाकी तो सब कुछ देश में इन दिनों चले ही आ रहा है, और उसी फैलाए जा रहे तनाव की यह अगली कड़ी है। हिन्दुस्तान के अधिकतर राज्यों में स्कूलों में सरस्वती पूजा एक आम बात है, और उसे लेकर कभी कोई धार्मिक या साम्प्रदायिक विवाद नहीं हुआ। उत्तर भारत और हिन्दीभाषी प्रदेशों में थानों में बजरंग बली का मंदिर, या दीवारों पर उनकी तस्वीरें आम बात हैं, और इस पर भी कभी कोई विवाद नहीं हुआ। सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र के जितने दफ्तरों में नगदी रखने के लिए तिजोरी या कैशबॉक्स होते हैं, वहां पर लक्ष्मी पूजा होती ही है, और इसे कभी एक धर्म का काम मानकर दूसरे धर्मों के लोगों ने विवाद नहीं किया। दशहरे पर देश भर में पुलिस और दूसरे सशस्त्र बल हथियारों की पूजा करते हैं, और इनमें गैरहिन्दू मंत्री और अफसर भी शामिल होते हैं। देश के बहुत बड़े हिस्से में सरकारी कारखानों में भी दशहरे पर मशीनों की पूजा होती है, और विश्वकर्मा पूजा के दिन समारोह होता है, जिनमें सभी धर्मों के कामगार शामिल होते हैं। यह सिलसिला अंतहीन है, और इसे इस देश में धर्म नहीं माना गया, संस्कृति मान लिया गया, और इसका कभी कोई विरोध नहीं हुआ। लेकिन अब हाल के बरसों में बदले हुए माहौल में एक कॉलेज के बगीचे के एक कोने में एक प्रोफेसर के एक दिन नमाज पढ़ लेने का वीडियो फैलाया जा रहा है, और उसे लेकर बवाल खड़ा किया जा रहा है।

जिन संगठनों के लोग यह बखेड़ा खड़ा कर रहे हैं, वे लोग शैक्षणिक संस्थाओं में धार्मिक आयोजन करने के आदी रहे हैं। जब कर्नाटक में स्कूल-कॉलेज में लड़कियों के हिजाब पहनने को लेकर साम्प्रदायिक दंगा चल रहा था, छत्तीसगढ़ में कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय में प्राध्यापक धोती-कुर्ता पहनकर पूजा में बैठे थे, और पंडित के मार्गदर्शन में सरस्वती पूजा कर रहे थे। अभी इस विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह हुआ तो उसमें मंच पर हिन्दू धर्म से जुड़े हुए एक संगठन के मुखिया, रावतपुरा सरकार कहे जाने वाले व्यक्ति को अतिथि बनाकर रखा गया। देश भर में अनगिनत सरकारी स्कूलें ऐसी हैं जहां कक्षाओं में सरस्वती की तस्वीरें लगी रहती हैं, या क्लास खत्म होने पर अलग-अलग शिक्षक अपनी मर्जी से बच्चों से सरस्वती वंदना या पूजा करवा लेते हैं, और क्लास में मौजूद दूसरे धर्मों के बच्चे भी बिना किसी विवाद के, बिना किसी झिझक के उसमें शामिल हो जाते हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या हिन्दुस्तान एक लोकतंत्र न होकर एक धर्मराज है जिसमें बहुसंख्यक धर्म के त्यौहारों, रीति-रिवाजों, और प्रतीकों का राज रहेगा, और दूसरे धर्म के लोगों को कोई आजादी नहीं रहेगी?

हम किसी भी स्कूल-कॉलेज, सरकारी या सार्वजनिक दफ्तर, या सार्वजनिक जगह के धार्मिक इस्तेमाल के खिलाफ हैं। जो स्कूल-कॉलेज किसी धर्म के लोग चलाते हैं, उन्हें सरकारी नियमों में अलग दर्जा मिला हुआ है, और वहां भी अगर धर्म का दखल न हो, तो भी हम उससे सहमत रहेंगे। हम तो सार्वजनिक रूप से धर्म के किसी भी तरह के प्रदर्शन के भी खिलाफ हैं क्योंकि वह आस्था का प्रदर्शन नहीं रहता, वह दूसरे धर्मों के लोगों को दिखाने के लिए बाहुबल का प्रदर्शन अधिक रहता है। लेकिन फिर भी जब तक इस देश में तमाम किस्म के धार्मिक काम प्रचलन में हैं, हमारे सरीखे गिनती के लोग उन पर कोई रोक तो लगवा नहीं सकते। लेकिन जब बिना आवाज किए घास पर बैठकर किसी के एक दिन नमाज पढ़ लेने पर इतना बवाल खड़ा किया जा रहा है, तो सवाल यह उठता है कि क्या देश में बहुसंख्यक धर्म का दर्जा अलग है, और इस राष्ट्रवादी व्यवस्था में क्या अल्पसंख्यक धर्मों की जगह वैसी ही है जैसी मनुवादी व्यवस्था में दलितों की रखी गई है? देश का संविधान तो धार्मिक बराबरी देता है, लेकिन देश का माहौल इस बराबरी को कुचल-कुचलकर उसका चूरा बना चुका है, और सद्भाव को और बारीक पीस देने पर आमादा है।

स्कूल-कॉलेज से धर्म को पूरी तरह से निकाला दे देना अच्छी बात है। इस प्रोफेसर को भी कॉलेज के बगीचे में एक दिन भी नमाज नहीं पढऩे देनी चाहिए। लेकिन साथ-साथ देश भर के स्कूल-कॉलेजों में बाकी भी किसी धर्म के कोई आयोजन नहीं होने चाहिए, और वह देश के लिए एक बेहतर माहौल होगा।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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