विचार / लेख

खुदा जाने कि मैं फिदा हूं...
03-Jun-2022 5:50 PM
खुदा जाने कि मैं फिदा हूं...

-सिन्धूवासिनी त्रिपाठी
क्या आपको उस शख्स की याद आ सकती है जिससे आप कभी मिले ही नहीं? किसी से प्रेम करने और उसके जीवित रहने तक उस प्रेम को जाहिर न कर पाने की पीड़ा कैसी होती है? क्या कुछ वैसी ही जैसे केके के चले जाने के बाद मुझे महसूस हो रही है? खुदा जानता था कि मैं उस पर फिदा थी और बहुत कुछ कहने को था और अब ये लिखने से पहले केके की गाई वही लाइनें याद आती हैं-‘कितना कुछ कहना है फिर भी है दिल में सवाल वही, सपनों में जो रोज कहा है वो फिर से कहूं या नहीं?’ मैं प्रेम और नापसंदगी दोनों बराबर रूप से व्यक्त करने वालों में से हूं लेकिन कृष्णकुमार कुम्मत की तारीफ में एक मर्तबा भी कुछ नहीं लिखा। खुदा जानता है कि पिछले दो दिनों से उसके गाए गानों के सिवा कोई और गाना एक पल के लिए भी नहीं सुना है।

उसके जाने का खालीपन और ज्यादा महसूस करने के लिए शोकगीत पढ़े और सुने। निदा फाजली की ‘मैं तुम्हारी कब्र पर फातिहा पढऩे नहीं आया’ से लेकर उसके गाए ‘फिरता हूं मैं दरबदर, मिलता नहीं तेरा निशां’ तक। मगर उसके जाने के बाद का खालीपन ये शोकगीत भी नहीं भर पा रहे हैं। केके के चाहने वालों की कतार बहुत लंबी है और मुझ जैसी लडक़ी उस कतार में शायद बहुत पीछे खड़ी होगी। मैंने तो उसके जाने से पहले उसका पूरा नाम जानने की जहमत तक नहीं उठाई थी।

वो मुझे इस कदर पसंद था और उसका जाना मुझे इस कदर खलेगा, इसका अंदाजा भी मुझे नहीं था। उसकी मखमली आवाज जिंदा रहने तक सुनी जाएगी लेकिन इसका मलाल हमेशा रहेगा कि उस आवाज में अब कुछ नया सुनने को नहीं मिलेगा। केके के गुजरने ने एक नए अहसास से वाकिफ कराया- उस शख्स को याद करने का अहसास जिससे आप कभी मिले नहीं और किसी के जीवित रहने तक उसके प्रति अपना प्रेम जाहिर न करने का अहसास।

अब जब भी अलेक्जेंडर 23 का गाया ‘How can you miss someone you have never met’ और ‘you cry over boys you haven’t even met in real life’ सुनूंगी, केके की याद आती रहेगी और फिर मैं खुद को समझाने के लिए कहूंगी- खुदा जाने कि मैं फिदा हूं।

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