संपादकीय
भारतीय जनता पार्टी की एक चर्चित नेता नुपूर शर्मा के एक टीवी चैनल पर मोहम्मद पैगंबर के बारे में दिए गए बहुत ही ओछे और हमलावर बयान को लेकर हिंदुस्तान के गैरसाम्प्रदायिक लोगों में भारी नाराजगी है और उस नाराजगी के चलते दूसरे कुछ मुस्लिम देशों में भारतीय सामानों के खिलाफ एक फतवा जारी हुआ है कि उनका बहिष्कार किया जाए। अब इन मुस्लिम देशों के साथ भारत के जो कारोबारी संबंध हैं उनको देखते हुए, या कि बाजार में ग्राहकों से बहिष्कार की अपील को देखते हुए, भारत सरकार ने इनके कूटनीतिक विरोध को लेकर एक बयान जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि भारत सांस्कृतिक विरासत और अनेकता में एकता की मजबूत परंपराओं के अनुरूप सभी धर्मों को सर्वोच्च सम्मान देता है, और अपमानजनक टिप्पणी करने वालों के खिलाफ पहले ही कड़ी कार्रवाई की जा चुकी है। सरकार ने यह भी कहा कि इस संबंध में बयान भी जारी किया गया जिसमें किसी भी धार्मिक शख्सियत के अपमान की निंदा करते हुए सभी धर्मों की समानता पर जोर दिया गया है। सरकार ने यह भी कहा कि यह बयान देने वाले लोग शरारती तत्व हैं, या फ्रिंज एलिमेंट है, जो कि हाशिए पर बैठे हुए लोगों के बारे में कहा जाता है। दूसरी तरफ हकीकत यह है कि भाजपा की तरफ से अधिकृत रूप से उसकी नेता नुपूर शर्मा टीवी की बहसों में आते रहती हैं और अगर कुछ बरस पहले कि उनकी एक ट्वीट के स्क्रीन शॉट पर भरोसा किया जाए तो नुपूर शर्मा ने बड़े शान के साथ ही यह बखान किया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके ट्विटर पेज को फॉलो करते हैं। अब ऐसे में भाजपा अपने प्रवक्ता से एकाएक हाथ धो ले उसे शरारती तत्व या फ्रिंज एलिमेंट बतलाए यह आसानी से गले उतरने वाली बात नहीं लगती है। जब अपने लोगों के कुकर्मों और जुर्म से बदनामी और नुकसान सर से ऊपर निकल जाये तो उसे फ्रिंज एलिमेंट कह देना क्या दुनिया को समझ नहीं आता है?
फिर इस सिलसिले में एक बात समझने की जरूरत है कि जिस दिन टीवी चैनल पर अपमानजनक, भडक़ाऊ, और सांप्रदायिकता को बढ़ाने वाला बयान दिया गया उसके बाद से खाड़ी के देशों के विरोध आने तक शायद 2 दिनों से अधिक का वक्त भाजपा के पास था कि वह इस बयान से अपना पीछा छुड़ाती, अपने नेताओं को निष्कासन की चेतावनी देती, अपने नेताओं का निलंबन करती उन्हें पार्टी से निकालती, लेकिन भाजपा की यह प्रतिक्रिया तब जाकर दो-तीन दिन बाद आई, जब खाड़ी के देशों में भारतीय सामानों के बहिष्कार का सिलसिला शुरू हो गया और जब वहां पर भारत के राजदूतों को बुलाकर औपचारिक विरोध दर्ज किया गया कि वे देश मोहम्मद पैगंबर का ऐसा अपमान बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेंगे। भाजपा के पास नफरत की आग उगलते अपने ऐसे नेताओं पर कार्रवाई का जो मौका था, वह मौका तो उसके हाथ से तभी निकल गया जब ऐसे बयान के बाद सोशल मीडिया और मीडिया में लगातार इस बयान के बारे में लिखा गया, पार्टी की जानकारी में यह बयान था लेकिन उसने इसके ऊपर कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की, इसे खारिज नहीं किया, इन लोगों को तुरंत पार्टी से नहीं निकाला तो सवाल है कि आज भारत सरकार किस तरह से, सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं के दिए गए ऐसे बयान को लेकर एक देश की हैसियत से दूसरे देशों से माफी मांग रही है? ऐसा शायद इस हड़बड़ी में किया गया कि खाड़ी के देशों में मोदी के अपमान वाले पोस्टर सार्वजनिक जगहों पर छा गए थे। वरना इन बयानों के बाद कानपुर में दंगा भडक़ गया, तब भी पार्टी ने इन पर कोई कार्रवाई नहीं की थी।
यह सत्ता और सत्तारूढ़ पार्टी इन दोनों के बीच ऐसे मेल-मिलाप का मुद्दा है जो कि लोकतंत्र में हो नहीं सकता। अगर भारत सरकार को दूसरे देशों को यह कहना है कि जिन लोगों ने ऐसे बयान दिए थे उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की गई है, तो यह कड़ी कार्रवाई पार्टी से निलंबन नहीं हो सकती, वह तो राजनीतिक दल के भीतर का मामला है। पार्टी के भीतर से निलंबन का मौका भी पार्टी ने खो दिया 2 दिन 3 दिन के बाद जाकर इनको पार्टी से निलंबित किया या निकाला। अब सवाल यह उठता है कि भारत सरकार को जो संवैधानिक, कानूनी, या सरकारी कार्रवाई इस मामले में करनी थी उनमें से कोई भी कार्रवाई नहीं हुई है तो भारत सरकार का दूसरे देशों को यह कहना कि इनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की गई है, यह बात तथ्यात्मक रूप से गलत है। सरकार कह रही है कि अपमानजनक टिप्पणी करने वालों के खिलाफ पहले ही कड़ी कार्रवाई की जा चुकी है। इनके खिलाफ कोई सरकारी या कानूनी कार्रवाई नहीं हुई है, लोगों ने इनके खिलाफ जाकर पुलिस में रिपोर्ट लिखाई है, और अंतरराष्ट्रीय बवाल खड़ा होने के बाद भाजपा ने इन लोगों को, ऐसे 2 नेताओं या प्रवक्ताओं को पार्टी से निलंबित किया है, या निष्कासित किया है। यह पूरा का पूरा सिलसिला एक बहुत ही साफ बात दिखाता है वह यह कि अंतरराष्ट्रीय दबाव के बिना भाजपा अपने देश के भीतर भी अपने ऐसे बवाली लोगों के खिलाफ भी कोई कार्रवाई करने के बारे में सोच भी नहीं रही थी। आज तो वह किसी चुनाव में नहीं लगी हुई थी, आज पार्टी के पास इन बयानों के ऊपर विचार करने का पर्याप्त समय था, इन लोगों के ये विचार वीडियो की शक्ल में, और खबरों की शक्ल में चारों तरफ फैले हुए थे, लेकिन पार्टी ने कुछ भी नहीं किया था। यह एक बवाल खड़ा होने के बाद एक अंतरराष्ट्रीय दबाव आने के बाद अंतरराष्ट्रीय बहिष्कार होने के बाद लिया गया फैसला है, जो कि पार्टी का फैसला है। भारत सरकार को यह साफ करना चाहिए कि ऐसे बयान के खिलाफ जो कानूनी कार्रवाई अनिवार्य रूप से होनी चाहिए थी उसका क्या हुआ? इसके साथ साथ ऐसे नेताओं की पार्टी भाजपा को भी यह साफ करना चाहिए कि आज उसने, सरकार ने जिन शब्दों में देश की सांप्रदायिक एकता, सद्भाव, सभी धर्मों के प्रति सम्मान की जो बात कही है, क्या देश में सचमुच ही भाजपा उनको बढ़ावा दे रही है ? इन बातों की रक्षा कर रही है, क्या आज देश में सचमुच ही अल्पसंख्यक लोगों और दूसरे लोगों को संरक्षण मिल रहा है? क्या वे बिना खतरे के जी रहे हैं? यह बात भी समझ लेने की जरूरत है कि आज दुनिया एक बड़े गांव की तरह हो गई है और हिंदुस्तान में जो कुछ होता है उसकी प्रतिक्रिया दुनिया भर में देखने मिल सकती है। भारत में अगर हिंदूवादी ताकतें, हिंदुत्ववादी सरकारें अगर अल्पसंख्यकों को इस तरह से घेर-घेरकर मार रही हैं, अगर उनके रीति-रिवाज पर हमला कर रही हैं, उनके खानपान पर हमला कर रही हैं, उनके आराध्य पर हमला कर रही हैं, तो उन्हें यह बात जान लेना चाहिए कि जिन देशों का शासन इस्लाम के आधार पर चलता है उन देशों में काम कर रहे दसियों लाख हिंदुस्तानियों की नौकरी, उनका भविष्य, उनके परिवार सब कुछ खतरे में पड़ रहे हैं। भारत में हिंसक बकवास करने वाले लोगों को इस बात का अंदाज नहीं है कि वे पूरी दुनिया में किस तरह के खतरे हिंदुस्तान के लोगों के लिए खड़े कर रहे हैं। एक बार अगर कोई खाड़ी के देशों में जाकर वहां से कमाई करके, वहां काम करके, वहां अपने परिवार को रखकर हिंदुस्तान लौटेंगे, तो वह इस तरह की बकवास नहीं कर सकेंगे। इन तथाकथित राष्ट्रवादियों को यह भी अहसास नहीं है कि हिंदुस्तान में मुस्लिमों का जीना मुश्किल करके ये मुस्लिम दुनिया में पाकिस्तान के हाथ कितने मजबूत कर रहे हैं।
सरकार को अपनी राजनीतिक पार्टी, सत्तारूढ़ पार्टी को समझ देने की जरूरत है कि देश के भीतर नफरत को इस हद तक बढ़ावा देने से तमाम देशों में हिंदुस्तानियों के लिए मुसीबत आने जा रही है। अभी अमेरिका ने धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर हिंदुस्तान के खिलाफ एक कड़ी टिप्पणी की है, दुनिया भर की कई संसदों में भारत में अल्पसंख्यकों पर किए जा रहे हैं हमलों को लेकर फिक्र जाहिर की जा चुकी है। पूरी दुनिया में हिंदुस्तान की छवि एक ऐसे देश की बन रही है जहां पर एक धर्म की गुंडागर्दी चल रही है, और दूसरे धर्म को कुचला जा रहा है। तो यह बात तय है कि यहां आने वाला पूंजी निवेश भी घटेगा और हिंदुस्तान की इज्जत तो मटियामेट हो ही रही है। यह मौका भारत सरकार के लिए, और भारत पर सत्तारूढ़ पार्टी के लिए, इन दोनों के लिए गंभीर आत्ममंथन का मुद्दा है। इस देश की, इसके लोगों की और कितनी बेइज्जती दुनिया भर में करवाई जाएगी, या लोगों की संभावनाओं को बाकी दुनिया में किस हद तक खत्म किया जाएगा इन बातों को सोचे बिना महज इन 2 नेताओं-प्रवक्ताओं पर कार्रवाई से बात सुलझने वाली नहीं है, मुद्दा खत्म होने वाला नहीं है। इस मुद्दे की तरफ लोगों का ध्यान गया है, लोगों ने इस पर तंज कैसा है कि क्या सचमुच ही भारत सरकार आज देश में ऐसे माहौल को बढ़ावा दे रही है जैसा कि उसने एक बयान में बखान किया है? क्या सचमुच ही भारतीय जनता पार्टी ऐसे सांप्रदायिक सद्भाव के लिए काम कर रही है जैसा कि उसने एक बयान में अभी लिखकर जारी किया है? यह तो ऐसा लगता है कि कई देशों के विरोध और भारत के बहिष्कार के खतरे को देखते हुए, नुकसान को कम करने की एक कोशिश के तहत जारी किया गया बयान है जिसका हकीकत और असलियत से कुछ भी लेना देना नहीं है। यह साफ दिखाई देता है कि ये दोनों बयान जमीन से जुड़े हुए नहीं हैं, यह दोनों बयान महज कागज के दो पन्ने हैं, जिनको आज बड़े अन्तरराष्ट्रीय नुकसान को रोकने के लिए जारी किया गया है। सोशल मीडिया पर लोगों ने तुरंत भारत सरकार और भाजपा इन दोनों से यह सवाल किए हैं कि क्या वे सचमुच इन बातों पर भरोसा कर रहे हैं, और अमल कर रहे हैं, जो कि उन्होंने इन बयानों में लिखा है, और अगर नहीं कर रहे हैं तो उनसे लगातार यह सवाल किए जाएंगे। कहा जाता है कि कोई घड़ा जब पूरा भर जाता है, तब फूटता है, तो भारत में आज सांप्रदायिक तनाव सोच-समझकर साजिश के तहत इस हद तक बढ़ाया जा चुका था कि अब वह घड़ा किसी न किसी एक वजह से फूटना था। अभी फूटा है, इसका मवाद चारों तरफ फैला है, इसे समेटना इतना आसान नहीं है, लेकिन इससे एक मौका मिल रहा है भारत सरकार और भाजपा दोनों को कि अपने तौर-तरीके सुधारें और अपनी पार्टी और अपनी सत्ता को और अधिक बदनामी से बचाएं। देश को तो बचाने की जरूरत आज सबसे अधिक आ खड़ी हुई है, क्योंकि आज देश इन्हीं हरकतों की वजह से खतरे में पड़ा हुआ है। आज देशद्रोह का मुकदमा ऐसे लोगों पर अगर दर्ज नहीं होगा, तो फिर सरकार कुछ भी नहीं करती दर्ज होगी।
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