संपादकीय
गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई
पंजाब में अभी आम आदमी पार्टी की सरकार ने बहुत से तथाकथित वीआईपी लोगों की हिफाजत में कटौती की तो अगले ही दिन उस सुरक्षा घेरे के बिना बाहर निकले वहां के एक कांग्रेस नेता और बड़े मशहूर पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला को गोलियों से भून दिया गया। और कुछ घंटों के भीतर ही पंजाब के एक बड़े गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई ने सोशल मीडिया के मार्फत इस कत्ल की जिम्मेदारी ली, और कहा कि उसके गिरोह के एक आदमी के कत्ल में इस गायक का मैनेजर शामिल था जिसे इस गायक ने बचाया था, और उसे इसकी सजा दी जा रही है। इसी वक्त अलग-अलग बहुत सी खबरों यह बात आई कि लॉरेंस बिश्नोई के गिरोह में सात सौ लोग शामिल हैं जो कि हिन्दुस्तान से लेकर कनाडा और ऑस्ट्रेलिया तक बिखरे हुए हैं, और वह जेल के भीतर से जुर्म का अपना साम्राज्य चलाता है।
अगर पंजाब का यह ताजा कत्ल इतना चर्चित नहीं होता, वहां आम आदमी पार्टी की नई-नई बनी सरकार न होती, चर्चित लोगों का सुरक्षा घेरा खत्म न किया गया होता, तो शायद देश के लोगों को यह पता नहीं लगा होता कि पंजाब में इतने बड़े-बड़े गिरोह काम कर रहे हैं। कम से कम खबरों में तो इसके पहले कभी ऐसे गैंगवॉर की चर्चा याद नहीं पड़ती। अब तक पंजाब को लेकर सबसे अधिक चर्चा वहां पर सरहद पार से आने वाले नशे की रहती थी, जिसकी गिरफ्त में पंजाब की नौजवान पीढ़ी बर्बाद बताई जाती है। यह भी शक लोगों को रहता था कि सरहद पार कर कई तरह के हथियार भी पंजाब में घुसते हैं, और इन्हीं तर्कों को लेकर केन्द्र सरकार ने अभी सरहद के किनारे की बहुत चौड़ी पट्टी सीमा सुरक्षा बल के हवाले की है, और राज्य का एक बड़ा हिस्सा राज्य पुलिस के बाहर हो गया है। ऐसा पंजाब अगर अपने पड़ोसी कुछ राज्यों से लेकर दिल्ली तक इतने बड़े मुजरिम गिरोह का भी शिकार है कि जिसके बंदूकबाज कनाडा और ऑस्ट्रेलिया तक फैले हुए हैं, तो फिर सवाल यह उठता है कि ऐसे बड़े गिरोह-सरगना जेल के भीतर से अपना राज कैसे चलाते हैं? जेल के भीतर इन्हें मोबाइल फोन या दूसरी सहूलियतें किस तरह हासिल होती हैं? जब तक जेल का अमला भ्रष्ट नहीं होगा, तब तक कोई मुजरिम वहां से किस तरह सैकड़ों लोगों के अपने गिरोह को चला सकता है? अब यह मामला पंजाब से लेकर दिल्ली तक फैला हुआ है, और इन तीन राज्यों की अलग-अलग पुलिस का चौकन्नापन दिल्ली के एक भाजपा प्रवक्ता की गिरफ्तारी और उसकी बलपूर्वक रिहाई में तो सामने आया है, लेकिन जुर्म की ऐसी दुनिया इन्हीं पुलिसवालों की आंखोंतले, और शायद इनकी मेहरबानी से खड़ी हुई है।
लोगों को याद होगा कि पंजाब में धार्मिक और अलगाववादी आतंक का लंबा इतिहास रहा है, और वह बड़ी मुश्किल से खत्म हुआ था। अब अगर वहां पर इतने बड़े गिरोह काम कर रहे हैं, जो कि इस तरह बेधडक़ ऐसे जुर्म कर रहे हैं, तो यह सरकारों की नालायकी का भी एक सुबूत है, और इतने बड़े गिरोह रातों-रात तो खड़े हुए नहीं हैं। आज हालत यह है कि ये मुजरिम सोशल मीडिया पर अपना पेज चलाते हैं, और उनके लाखों फॉलोअर भी हैं। फिर ऐसे में देश का आईटी कानून क्या हुआ, जो कि एक कार्टून बनाने वाले को तो तुरंत जेल भेज देता है, एक ट्वीट पर राजद्रोह लगा देता है, लेकिन जो ऐसे बड़े गैंगस्टरों को हीरो बनने का मौका देता है। यह एक मामला पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार, और केन्द्र की भाजपा अगुवाई वाली सरकार के लिए एक टेस्ट केस सरीखा है कि हत्या का ऐसा जुर्म सामने आने के बाद, और उसकी जिम्मेदारी लेने के बाद ये सरकारें ऐसे मुजरिमों के गिरोह खत्म करने के लिए क्या करती हैं। हैरानी की बात यह है कि पंजाब की जेलों से लेकर दिल्ली की तिहाड़ जेल तक, हर कहीं ताकतवर मुजरिमों, पैसे वालों, और नेताओं को मोबाइल फोन की सहूलियत हासिल रहती है, और वहां से फोन करके वे बाहर लोगों को धमकाते हैं, उनसे फिरौती और उगाही लेते हैं। आम लोगों को भी यह लगता है कि जिनकी ताकत जेल के भीतर से जुर्म का कारोबार चलाने की है, उनसे कितना उलझा जाए? इसलिए जेल के भीतर मुजरिमों की ताकत उन्हें जेल के बाहर की दुनिया से अधिक ताकतवर बना देती है, और सरकारों को इसका ध्यान रखना चाहिए। पंजाब जैसे नाजुक राज्य को यह भी सोचना चाहिए कि मुजरिमों की कोई राष्ट्रीयता नहीं होती है, वे किसी के भी हाथ बिक सकते हैं, वे सरहद पार के विदेशी आतंकियों, या वहां की सरकारों के हाथ भी बिक सकते हैं, और बड़े-बड़े गिरोह कब इस देश में साम्प्रदायिक दंगों से लेकर सार्वजनिक हमलों तक के लिए भाड़े पर काम करने लगें, इसका कोई भरोसा तो है नहीं। इसलिए देश-प्रदेश की सरकारों को बड़े अपराधियों के गिरोह खत्म करने के लिए अधिक मेहनत करनी चाहिए, क्योंकि ये आज तो एक गायक को मार रहे हैं, कल वे भाड़े पर किसी सार्वजनिक-जानलेवा हमले को तैयार हो जाएं तो उसमें हैरानी क्या रहेगी?
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)