संपादकीय
पिछले महीने स्लोवेनिया में चल रहे साइकिलिंग के एक प्रशिक्षण कैम्प से भारत की एक प्रमुख महिला खिलाड़ी ने वापिस आना तय किया क्योंकि टीम के मुख्य राष्ट्रीय कोच आर.के. शर्मा पर उसका यह आरोप था कि वे उसे अपने साथ सोने के लिए कह रहे थे, बलपूर्वक अपने करीब खींच रहे थे, उसने शर्मा के बारे में यह भी कहा कि वे उसे अपनी बीवी की तरह रहने के लिए दबाव डाल रहे थे, वरना वे उसका कॅरियर तबाह करने की धमकी दे रहे थे, और कह रहे थे कि उसे सडक़ों पर सब्जियां बेचनी पड़ेगी। इस पर भारत के खेल संगठन ने इस खिलाड़ी को जांच का भरोसा दिया है, और कमेटी बना दी है। साइकिलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया ने कहा है कि वे पूरी तरह अपनी खिलाड़ी के साथ हैं। उल्लेखनीय है कि यह कोच 2014 से ही राष्ट्रीय साइकिलिंग टीम के साथ है।
यह पहला मौका नहीं है जब खेलों में प्रशिक्षक या टीम मैनेजर द्वारा यौन शोषण की बात सामने आई हो। अब तक का ऐसा सबसे बड़ा मामला अमरीका में जिमनास्ट कोच का सामने आया है जिसकी वजह से पिछले ओलंपिक के बीच से अमरीका की सबसे होनहार जिमनास्ट ने मुकाबला छोड़ दिया था क्योंकि वह मानसिक रूप से टूट गई थी। बाद में अमरीका में जब इस मामले की जांच हुई तो पता लगा कि बीस बरसों तक प्रशिक्षक रहे हुए इस आदमी ने इस दौरान 368 जिमनास्ट लड़कियों का देह शोषण किया था। जिस अमरीका में कानून और उस पर अमल दोनों ही कड़े हैं, वहां पर भी देश के सबसे बड़े, ओलंपिक खिलाड़ी, देह शोषण का शिकार होते रहे, और वहां के खेल संगठन कुछ नहीं कर पाए। अब अगर एक कोच 368 जिमनास्ट को ऐसी यातना दे सकता है, तो इस भांडाफोड़ होने के पहले कितनी प्रतिभाशाली खिलाड़ी यह खेल छोडक़र जा नहीं चुकी होंगी?
अब हिन्दुस्तान में अधिकतर खिलाड़ी लड़कियां गरीब या मध्यम वर्ग से निकलकर आती हैं, बहुत से खिलाड़ी आदिवासी इलाकों से आने वाले होते हैं, जिनकी न पारिवारिक आवाज होती है, न जिनमें कानूनी हकों को लेकर बहुत जागरूकता ही होती है। ऐसे में उनका शोषण करना अधिक आसान रहता है क्योंकि खेल संगठनों पर वही गिने-चुने पेशेवर हो चुके सत्तारूढ़ नेता काबिज रहते हैं, और बड़े ताकतवर अफसर भी हर प्रदेश में खेल संघों को हांकते हैं। ऐसे में सत्ता के इस मिलेजुले कारोबार के एकाधिकार के सामने खड़ा होना किसी खिलाड़ी के बस का नहीं रहता। फिर बचपन से लेकर बड़े होने तक दस-दस बरस जो लडक़े-लड़कियां पढ़ाई को भी छोडक़र रात-दिन मेहनत करके, परिवार और समाज से लडक़र खेल के मैदान पर मेहनत करते हैं, उन्हें ताकतवर प्रशिक्षकों या खेल संघ पदाधिकारियों के शोषण के सामने समर्पण करना कई बार अकेला जरिया दिखता है। ऐसे में अपने पूरे खेल-कॅरियर को देखते हुए बहुत से खिलाड़ी देह शोषण को बर्दाश्त करते होंगे, क्योंकि हिन्दुस्तानी समाज में कोई लडक़ी किसी के भी खिलाफ शोषण की शिकायत करे, सबसे पहले तो उस लडक़ी को ही अछूत और सरदर्द मान लिया जाता है, और सब लोग उससे परहेज करने लगते हैं कि कब यह कोई बवाल न खड़ा कर दे। नतीजा यह होता है कि खेल का मैदान हो, या पढ़ाई-लिखाई में रिसर्च हो, या किसी दफ्तर में प्रमोशन का मौका हो, मर्दों का यह समाज उससे चुप्पी के साथ सब बर्दाश्त करने की उम्मीद ही करता है। जो लडक़ी या महिला यौन शोषण झेलते हुए चुपचाप काम में लगी रहे, उसे अधिक व्यवहारिक मान लिया जाता है, और उसकी राह में अड़ंगे घट जाते हैं। हिन्दुस्तान में अगर किसी लडक़ी या महिला को अपनी प्रतिभा और काबिलीयत के दम पर प्रमोशन मिलता है तो भी लोग आंखें बना-बनाकर आपस में बात करते हैं कि उसने बॉस को खुश कर दिया होगा।
हिन्दुस्तान में महिला के कानूनी हक कागजों पर तो बहुत लिखे हैं, लेकिन जमीन पर देखें तो सारी की सारी न्याय प्रक्रिया उसके इन हकों को कुचलने के हिसाब से बनी हुई है। यह तो हिन्दुस्तान का हाल है, जहां पर हालत दुनिया के विकसित देशों के मुकाबले अधिक खराब है, लेकिन विकसित देशों में भी खेलों के भीतर सेक्सटॉर्शन कहे जाने वाले इस यौन शोषण को एक बड़ी समस्या बताया गया है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की एक ताजा रिपोर्ट में कई देशों में खिलाडिय़ों के खिलाफ ऐसी यौन हिंसा की मौजूदगी को पाया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जर्मन एथलीटों के बीच सर्वे में तीन में से एक ने यौन हिंसा के कम से कम एक हादसे का जिक्र किया है। आम जानकार लोगों का यह मानना है कि खेल के क्षेत्र से यौन शोषण के बहुत सारे मामलों की रिपोर्ट ही नहीं की जाती है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने अपनी रिपोर्ट में यह कहा है कि खेलों में अलग-अलग लोगों के बीच ताकत में बहुत अधिक फासला है। बच्चे बहुत कमजोर हालत में हैं, और वे खेलों के मिजाज के मुताबिक प्रशिक्षक पर भावनात्मक और शारीरिक रूप से आश्रित भी रहते हैं। यह रिपोर्ट कहती है कि ये रिश्ते कुछ मामलों में खिलाडिय़ों के कॅरियर को बनाने या बर्बाद करने की ताकत रखते हैं।
भारत में साइकिलिंग की एक दिग्गज महिला खिलाड़ी की शिकायत का यह मौका देश भर के तमाम खेल संगठनों, और सरकारी विभागों को आत्मविश्लेषण और आत्ममंथन का मौका भी देते हैं। यह भी समझने की जरूरत है कि शोषण कई बरस तक जारी रहे, और वह अनदेखा रहे, या उसे अनसुना किया जाता रहे, तो फिर ऐसे खेल संगठनों को भी भंग करना चाहिए, और उनके पदाधिकारियों पर जिंदगी भर के लिए प्रतिबंध भी लगाना चाहिए। अगर खिलाडिय़ों का यौन शोषण बरस-दर-बरस जारी है, और खेल संघ उसकी तरफ से अनजान है, तो वह अनजान नहीं होते, वे लापरवाह होते हैं, और ऐसे लोगों पर आजीवन प्रतिबंध भी लगना चाहिए। राष्ट्रीय स्तर का एक सेक्स स्कैंडल देश भर में लोगों को जुबान भी दे सकता है, और खेल संगठनों या प्रशिक्षण कैम्पों को अधिक पारदर्शी भी बनाना चाहिए जहां पर खिलाडिय़ों के लिए परामर्शदाता आएं-जाएं, और उनकी कोई शिकायत है तो वह जल्द सामने आ सके, बजाय इसके कि शोषण करने वाले लोग बरसों तक इस सिलसिले को जारी रखें।
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