संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बंदरों को गांवों की फसल तबाह करने से रोकना है तो..
10-Jun-2022 6:09 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बंदरों को गांवों की फसल तबाह करने से रोकना है तो..

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल महीने भर से गांव-गांव घूम रहे हैं। मकसद है लोगों से उनकी दिक्कतों को जानना, और सरकारी योजनाओं की कामयाबी को तौलना। इसी दौरान उन्हें कई जगह यह भी सुनने मिला कि जंगल से बंदर आकर गांवों की फसल खत्म या खराब करके चले जाते हैं। जब कई जगह उन्हें यह बात सुनाई दी तो उन्होंने वन विभाग से कहा कि जंगलों मेंं सागौन जैसे पेड़ लगाने के बजाय फलों के पेड़ लगाए जाएं, जो कि जानवरों के भी काम आएं, और आसपास बसे हुए लोगों के भी।

दरअसल जंगल तो ऐसे ही हुआ करते थे। मिलेजुले पेड़ रहते थे, कुछ लकड़ी के इस्तेमाल आते थे, कुछ बांस होता था, और कुछ आदिवासियों और जानवरों के खाने लायक फल होते थे। लेकिन चूंकि फलों से वन विभाग को कोई कमाई नहीं होती, इसलिए वह यूक्लिपटस से लेकर सागौन तक का वृक्षारोपण करते आया है जिससे कमाई की गारंटी रहती है। लेकिन इससे जानवरों और इंसानों के जिंदा रहने की कोई गारंटी नहीं रहती, क्योंकि जंगल के सागौन जैसे पेड़ सिर्फ वन विभाग ही काट सकता है, और वहां बसे हुए लोगों को भी उसे काटने की इजाजत नहीं रहती। सरकारी योजनाओं के फायदे को अगर रूपयों की ठोस शक्ल में नहीं गिना जा सकता, तो उन्हें फिजूल का मान लिया जाता है। इसलिए सागौन जैसे वृक्षारोपण विभाग के पसंद के होते हैं, और आम स्थानीय जंगली फलों के पेड़ कभी भी उसकी प्राथमिकता नहीं रहते।

एक वक्त तो ऐसा था जब सडक़ों के किनारे लगे पेड़ों पर भी कई किस्म के फल लगते थे, लेकिन धीरे-धीरे ऐसी सार्वजनिक जगहों पर ऐसे पेड़ लगाए जाते हैं जिनका असल जिंदगी में इस्तेमाल सीधे-सीधे नहीं होता, और जो कम रखरखाव में पल जाते हैं, बड़े हो जाते हैं। शहरों के इर्द-गिर्द भी अभी कुछ दशक पहले तक देसी फलों के कई किस्म के जंगल होते थे, और शहरों से बच्चे भी फल तोडऩे यहां चले जाते थे, जानवरों को तो पेड़ पर लगे हुए या जमीन पर गिरे हुए फल नसीब होते ही थे। जंगल विभाग ने सभी जगह विविधता को खत्म करने का काम किया है, और किसी एक किस्म के पेड़ के जंगल लगा दिए जिससे कि जैवविविधता खत्म हुई, और स्थानीय जानवरों और इंसानों दोनों से जंगल के फायदे छिन गए। शहरों के भीतर तो बसाहटों में फलों के पेड़ को अगल-बगल के लोगों के लिए खतरा भी मान लिया जाता है क्योंकि उन्हें तोडऩे के लिए लोग पत्थर चलाएंगे। लेकिन जंगलों में अगर फलदार पेड़ लगाए जाते हैं, तो उससे जंगली जानवरों का शहरों में उत्पात भी कम होगा, जंगल में बसे लोगों को खाने और बेचने के लिए ऐसे फल मिलेंगे।

छत्तीसगढ़ की एक और खूबी है कि यहां के जंगलों की वनोपज देश के किसी भी राज्य के मुकाबले अधिक है। और तेन्दूपत्ता, महुआ, इमली, चिरौंजी जैसे पेड़ सरकार के लगाए हुए नहीं हैं, वे कुदरती पेड़ हैं, जिनकी उपज सरकार खरीद लेती है, और इस तरह वनवासियों को एक मामूली सालाना कमाई होती है। जंगलों से भरे-पूरे इस राज्य में कोई न कोई रास्ता निकालकर इमारती लकड़ी का दो नंबर का कारोबार चलते रहता है, लेकिन अगर फलदार पेड़ लगाए जाएंगे, तो उनसे कोई कारोबार नहीं चलेगा, बल्कि लोगों का रोजगार चलेगा। छत्तीसगढ़ के जंगलों में फलदार पेड़ों को बढ़ावा देने की जरूरत और संभावना तो है ही, लेकिन इसके अलावा भी प्राकृतिक जंगलों में रेशम पालन, लाख के कीड़ों को पालना जैसे बहुत से और रोजगार की गुंजाइश भी है जो कि मामूली सी सरकारी मदद से आगे बढ़ सकती है। देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में अर्थव्यवस्था कुछ हद तक बांस पर भी टिकी हुई है, और छत्तीसगढ़ में बांस अच्छी तरह बढ़ता है, और यहां बांस से सामान बनाने का काम भी काफी बढ़ा हुआ है। राज्य के पहले वित्तमंत्री रामचन्द्र सिंहदेव अपने जीवनकाल में बस्तर में केन की खेती के लिए कोशिश करते रहे, और छत्तीसगढ़ में ऐसी बेंत के फर्नीचर भी बनाए जाते हैं।

मुख्यमंत्री की इस बात से आज हमने यहां लिखना शुरू किया है, वह बात जानवर और इंसानों के बीच के टकराव को भी घटा सकती है। वैसे तो छत्तीसगढ़ में जंगली जानवरों के साथ इंसानों का मुख्य टकराव हाथियों तक सीमित है, और जंगलों को बचाना ही उसका अकेला तरीका हो सकता है। हाथियों के खाने के लिए अलग से कोई फसल तो नहीं लगती, लेकिन जंगल और तालाब-नदी जरूर लगते हैं, और छत्तीसगढ़ में कोयला निकालने के लिए बड़े पैमाने पर ऐसे जंगल खत्म करने की पूरी तैयारी हो चुकी है। यह याद रखने की जरूरत है कि कोयले के लिए जब जंगल हटेंगे, जंगली जानवर बेदखल होंगे, तो उनका इंसानों के साथ टकराव भी बढ़ेगा, और गांव-कस्बों में उनका दाखिला भी। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य को जंगलों की अपनी पहचान बचाकर रखनी चाहिए, क्योंकि इसी से यह राज्य भी बचेगा, और इसके जानवर और इंसान भी। फलों के पेड़ लगाना इस सिलसिले में एक शुरूआत हो सकती है, जिसका असर आगे चलकर देखने मिलेगा।
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