विचार / लेख
-टेसा वोंग
ताइवान से जुड़ी खास बातें
चीन मानता है कि ताइवान उसका एक प्रांत है, जो अंतत: एक दिन फिर से चीन का हिस्सा बन जाएगा
ताइवान खुद को एक आजाद मुल्क मानता है। उसका अपना संविधान है और वहां लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार का शासन है
ताइवान दक्षिण पूर्वी चीन के तट से करीब 100 मील दूर स्थित एक द्वीप है
चीन और ताइवान के बीच अलगाव करीब दूसरे विश्वयुद्ध के बाद हुआ
उस समय चीन की मुख्य भूमि में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का वहाँ की सत्ताधारी नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमिंतांग) के साथ लड़ाई चल रही थी।
1949 में माओत्से तुंग के नेतृत्व में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी जीत गई और राजधानी बीजिंग पर कब्जा कर लिया।
उसके बाद, कुओमिंतांग के लोग मुख्य भूमि से भागकर दक्षिणी-पश्चिमी द्वीप ताइवान चले गए।
फिलहाल दुनिया के केवल 13 देश ताइवान को एक अलग और संप्रभु देश मानते हैं।
——————
ताइवान के सवाल पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की चेतावनी का चीन ने कड़ा जवाब दिया है। चीन ने कहा है कि वह ताइवान की आजादी की किसी भी कोशिश को पूरी ताकत से कुचल देगा।
रविवार को चीन के रक्षा मंत्री जनरल वी फेंग ने अमेरिका पर आरोप लगाया कि वह ताइवान की आजादी का समर्थन कर रहा है।
उन्होंने कहा कि अमेरिका ताइवान पर किए गए अपने वादे को तोड़ रहा है और चीन के मामलों में दखल दे रहा है।
एशियाई सुरक्षा से जुड़े सांगरी-ला डायलॉग में चीनी रक्षा मंत्री ने कहा, ‘एक बात साफ कर दूं। किसी ने भी ताइवान को चीन से अलग करने की कोशिश की तो हम उससे जंग लडऩे से हिचकेंगे नहीं। हम किसी भी क़ीमत पर लड़ेंगे और आखऱि तक लड़ेंगे। चीन के मामले में यह हमारा एक मात्र विकल्प है।’
चीनी रक्षा मंत्री ने ये टिप्पणी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की ओर से चीन को दिए उस संदेश के बाद आई है, जिसमें उन्होंने कहा था वह ताइवान के नजदीक लड़ाकू जहाजों को उड़ाकर ‘खतरों से खेल रहा है’। अमेरिका ने कहा है कि अगर ताइवान पर हमला हुआ तो वह उसकी रक्षा के लिए अपनी सेना भेजेगा।
ताइवान खुद को संप्रभु देश मानता है जबकि चीन इसे अपना हिस्सा मानता है। लेकिन ताइवान अमेरिका को अपना सबसे बड़ा सहयोगी मानता है। अमेरिका में ये कानून है कि अगर ताइवान आत्मरक्षा के लिए खड़ा हुआ तो उसे उसकी मदद करनी होगी।
ताइवान के सवाल पर चीन और अमेरिका के बीच तनातनी लगातार बढ़ रही है। चीन ताइवान के डिफेंस जोन में लगातार लड़ाकू विमान भेजता रहा है। पिछले महीने इसने वहाँ अपना सबसे बड़ा हेलिकॉप्टर उड़ाया था, जबकि अमेरिका ने ताइवान के समुद्री इलाकों से होकर अपने कई जलपोत भेजे हैं।
क्या अमेरिका और चीन सैन्य संघर्ष की ओर बढ़ रहे हैं?
एक बड़ा डर इस बात का है कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो युद्ध छिड़ सकता है। चीन पहले ही कह चुका है जरूरत पड़ी तो वह अपने द्वीप पर दोबारा दावा कायम करेगा। चाहे इसके लिए ताकत का ही इस्तेमाल क्यों न करना पड़े।
लेकिन ज़्यादातर विश्लेषकों का मानना है कि फिलहाल युद्ध की आशंका नहीं दिखती।
इस बात पर बहस गर्म है कि क्या चीन के पास इतनी सैन्य ताकत है कि वह सफलतापूर्वक हमला कर सके। उधर, ताइवान लगातार अपनी वायु और नौसेना की ताकत बढ़ा रहा है। लेकिन कई विश्लेषक मानते हैं कि टकराव अगर जंग की ओर से बढ़ता है तो ये न सिर्फ चीन बल्कि पूरी दुनिया के लिए घातक और महंगा साबित होगा।
इंस्टिट्यूट ऑफ साउथ ईस्ट एशियन स्टडीज के सीनियर फेलो विलियम चुंग कहते हैं हैं, ‘चीन की ओर से काफी बयान आ रहे हैं। लेकिन ताइवान पर हमले के बारे में सोचते हुए चीन को खतरों का ध्यान रखना होगा। ख़ास कर ऐसे वक्त में जब यूक्रेन संकट जारी है। रूस की तुलना में चीन की अर्थव्यवस्था के ग्लोबल लिंकेज कहीं ज़्यादा हैं।’
चीन ये लगातार कहता रहा है कि वह शांतिपूर्ण तरीके से ताइवान के साथ एकीकरण करना चाहता है। पिछले रविवार को चीन के रक्षा मंत्री ने यही बात दोहराई। चीन शांति चाहता है लेकिन उसे भडक़ाया गया तो वो कार्रवाई करेगा।
चीन को एक चीज़ भडक़ा सकती है और वो ये ताइवान औपचारिक तौर पर खुद को आजाद घोषित कर दे। लेकिन ताइवान की राष्ट्रपति बड़ी कड़ाई से इससे बचती रही हैं। हालांकि वह इस बात पर जोर देती हैं कि ताइवान पहले से ही एक संप्रभु राष्ट्र है।
ज़्यादातर ताइवानी इस रुख का समर्थन करते हैं, जिसे ‘यथास्थिति बरकरार’ रखना कहा जा रहा है। हालांकि उन लोगों की भी थोड़ी तादाद है कहते हैं के अब आजादी की ओर बढ़ा जाए।
जंग के सवाल पर अमेरिका का रुख
अमेरिका एशिया में महंगा सैन्य संघर्ष छेडऩे से हिचकेगा। उसने बार-बार ये संकेत दिया है कि वह युद्ध नहीं चाहता है।
अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन भी सांगरी-ला डायलॉग में मौजूद थे। उन्होंने अपनी स्पीच में कहा कि अमेरिका ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन नहीं करता और न ही वो कोई ‘नया शीत युद्ध’ चाहता है।
एस राजारत्नम स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में रिसर्च फेलो कोलिन को का कहना है, ‘ताइवान के सवाल पर दोनों अपने रुख़ पर कायम हैं। दोनों को सख़्त दिखना है। वे अपने रुख़ से पीछे हटते हुए नहीं दिखना चाहते।’
‘लेकिन इसके साथ ही वो इस मामले में सीधे संघर्ष में उतरने के प्रति भी काफी सतर्क हैं। हालांकि अमेरिका और चीन दोनों एक दूसरे को आंखें दिख रहे हैं और जोखिम बढ़ा रहे हैं।’
‘हकीकत ये है कि चीनी रक्षा मंत्री और अमेरिका के रक्षा मंत्री सांगरी-ला डायलॉग से अलग अपनी मुलाक़ातों में काफी सकारात्मक थे। इसका मतलब ये कि दोनों पक्ष ये दिखाना चाहते थे कि वे अभी भी बैठकर बात कर सकते हैं। सहमति-असहमति दूसरी बात है।’
कोलिन ने कहा कि दोनों सेनाओं की ओर से और भी ऑपरेशनल बातचीत हो सकती है। इससे जमीन पर होने वाली किसी ऐसी ग़लती से बचने की बात होगी जिससे युद्ध की स्थिति पैदा हो सकती है। कहने का मतलब ये है कि बातचीत होती रहेगी। डोनाल्ड ट्रंप के जमाने में ये बात नदारद थी।
आगे क्या होगा?
बहरहाल, चीन और अमेरिका के बीच आगे भी जुबानी जंग जारी रहने के आसार हैं।
सिंगापुर नेशनल यूनिवर्सिटी के चीन मामलों के विशेषज्ञ डॉ इयान चोंग का कहना है, ‘चीन अपने च्ग्रे जोन वॉरफेयरज् को आगे बढ़ा सकता है। इस रणनीति के तहत ताइवानी सेना के धैर्य की परीक्षा ली जाएगी और उसे थकाने की कोशिश होगी। बार-बार लड़ाकू जहाज भेज कर और दुष्प्रचार अभियान को बढ़ावा देकर वो इस काम को अंजाम दे सकता है।’
ताइवान के चुनाव में चीन पर दुष्प्रचार अभियान चलाने के आरोप लगते रहे हैं। ताइवान में इस साल के अंत में अहम स्थानीय चुनाव होने हैं।
डॉ. चोंग ने कहा, ‘फिलहाल अमेरिका और चीन में अपने रुख़ पर तब्दीली की राजनीतिक इच्छा नहीं दिखती। ख़ास कर ऐसे वक्त में जब अमेरिका में नवंबर में मध्यावधि चुनाव होने हैं। वहीं दूसरी छमाही में चीन में कम्युनिस्ट पार्टी का 20वां सम्मेलन होने जा रहा है। इसमें चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपनी पकड़ और मजबूत करेंगे।
डॉ. चोंग कहते हैं, ‘अच्छी बात ये है कि कोई भी पक्ष तनाव बढ़ाना नहीं चाहता। हालांकि इसका मतलब ये नहीं है कि आगे कोई अच्छी तस्वीर सामने आएगी। फिलहाल मौजूदा स्थिति तो तनातनी की ही है।’ (bbc.com/hindi)