विचार / लेख
- आर.के.विज
हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ‘बुद्धदेव कर्मस्कार बनाम् पश्चिम बंगाल राज्य’ में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कुछ अंतरिम निर्देश जारी करते हुए कहा कि यौनकर्मियों और उनके बच्चों को गरिमा और मानवीय शालीनता के साथ जीने के लिए उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि पेशे के बावजूद इस देश में हर व्यक्ति को सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है। न्यायालय द्वारा जारी निर्देश और कुछ नहीं बल्कि पैनल द्वारा की गई सिफारिशें हैं, जो जुलाई 2011 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक वरिष्ठ अधिवक्ता प्रदीप घोष की अध्यक्षता में गठित किया गया था। ये सिफारिशें सेक्स वर्कर्स के लिए अनुकूल परिस्थितियों के संबंध में है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के प्रावधानों के अनुसार सेक्स वर्कर्स गरिमा के साथ सेक्स वर्कर्स के रूप में रहना चाहती हैं।
मान्य निर्देशों को लागू करना
चूंकि भारत सरकार को (कुल दस में से) चार सिफारिशों पर कुछ आपत्तियां थीं, अदालत ने बाकी छह सिफारिशों को लागू करने और अनैतिक तस्करी (रोकथाम) अधिनियम (आईटीपीए) 1956 के प्रावधानों को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिये हैं। इन निर्देशों में यौन उत्पीडऩ की शिकार यौनकर्मियों को तत्काल चिकित्सा सहायता प्रदान करना, आईटीपीए सुरक्षात्मक घरों में हिरासत में लिए गए वयस्क यौनकर्मियों को उनकी इच्छा के विरुद्ध रिहा करना, यौनकर्मियों के सम्मान के साथ जीने के अधिकारों के बारे में पुलिस और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों को संवेदनशील बनाना, गिरफ्तारी, छापे और बचाव कार्यों के दौरान यौनकर्मियों की पहचान का खुलासा न करने मीडिया को दिशा-निर्देश जारी करना (भारतीय प्रेस परिषद द्वारा) और स्वास्थ्य उपायों (जैसे कंडोम) को सबूत के रूप में नहीं मानने और केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा अपने कानूनी सेवा प्राधिकरणों के माध्यम से यौनकर्मियों को उनके अधिकारों एवं यौन कार्य आदि की वैधता के बारे में शिक्षित करना सम्मिलित है।
यौनकर्मियों (यौन उत्पीडऩ की शिकार) को चिकित्सा सहायता प्रदान करने पर सीआरपीसी में पहले से ही एक प्रावधान उपलब्ध है। परंतु, कानून वेश्याओं की पहचान का खुलासा नहीं करने के बारे में मौन है। इसी तरह, हालांकि एक मजिस्ट्रेट द्वारा यौनकर्मी को उसकी देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता के बारे में उचित जांच के बाद उसे एक सुरक्षात्मक घर में भेजने का आदेश पारित किया जाता है, सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को सही ढंग से लागू करने के लिए आईटीपीए और सीआरपीसी में वांछनीय संशोधन किया जा सकता है। अन्य निर्देश सरकारों द्वारा कार्यकारी आदेशों के माध्यम से लागू किए जा सकते हैं।
व्यापक प्रभाव वाली सिफारिशें
उन सिफारिशों में से एक जिस पर केंद्र सरकार ने अपने मत के लिये आरक्षित किया है, पुलिस को एक यौनकर्मी के खिलाफ कोई आपराधिक कार्रवाई करने से रोकने के बारे में है जो एक वयस्क है और ‘उम्र’ और ‘सहमति’ के आधार पर यौन कार्य में भाग ले रही है। यद्यपि ‘सेक्स वर्कर’ आईटीपीए या किसी अन्य कानून में परिभाषित नहीं है, आईटीपीए (जनवरी 1987 में संशोधित) के अनुसार, ‘वेश्यावृत्ति’ का अर्थ व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए व्यक्तियों का यौन शोषण या दुव्र्यवहार है। इसलिए, अभिव्यक्ति ‘वेश्यावृत्ति’ केवल भाड़े पर यौन संभोग के लिए एक व्यक्ति को शरीर की पेशकश करने तक ही सीमित नहीं है (पूर्व-1987 परिभाषा के अनुसार)। अपने फायदे या संभोग के लिए फंसी महिलाओं का अन्यायपूर्ण और गैरकानूनी फायदा उठाना इसके दायरे में लाया गया है। ‘दुव्र्यवहार’ शब्द का भी बहुत व्यापक अर्थ है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि स्वेच्छा से देह व्यापार करने वाली एक वयस्क यौनकर्मी अपराधी नहीं है जब तक कि उसके द्वारा शोषण या दुव्र्यवहार की सूचना नहीं दी जाती है या जांच के दौरान खुलासा नहीं होता। इसलिए अब यह उपयुक्त होगा कि ‘यौन शोषण’ और ‘व्यक्तियों के दुरुपयोग’ को परिभाषित करने के साथ-साथ एक संशोधन किया जाये, ताकि प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा कई व्याख्याओं और संभावित दुरुपयोग को समाप्त किया जा सके, खासकर अगर सहमति के साथ शरीर की पेषकष को आपराधिक ढांचे से बाहर रखा जाता है।
एक अन्य (आरक्षित) सिफारिश कहती है कि चूंकि स्वैच्छिक यौन कार्य अवैध नहीं है और केवल वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है, इसलिए वेश्यालय पर किसी भी छापे के दौरान यौनकर्मियों को गिरफ्तार या पीडि़त नहीं किया जाना चाहिए। आईटीपीए के अनुसार, ‘वेश्यालय’ ऐसा स्थान है, जिसका उपयोग यौन शोषण या किसी अन्य व्यक्ति के लाभ के लिए या दो या दो से अधिक वेश्याओं के पारस्परिक लाभ के लिए किया जाता है। क्या होगा यदि इच्छुक यौनकर्मियों को वेश्यालय के मालिक या प्रबंधक के खिलाफ कोई शिकायत नहीं है? इसलिए, सरकार को एक नीति के रूप में यह तय करने की आवश्यकता होगी कि क्या दो या दो से अधिक यौनकर्मियों के पारस्परिक लाभ के लिए एक साथ रहने और स्वयं या किसी और के द्वारा प्रबंधित किए जाने के कार्य को अपराधिक बनाया जाना है या नहीं। इसके लिए व्यापक विचार-विमर्श की आवश्यकता हो सकती है।
तीसरी सिफारिश में कहा गया है कि सेक्स वर्कर के किसी भी बच्चे को केवल इस आधार पर मां से अलग नहीं किया जाना चाहिए कि वह देह व्यापार में है। अगर कोई नाबालिग वेश्यालय में या सेक्स वर्कर के साथ रह रही है, तो यह नहीं माना जाना चाहिए कि उसकी तस्करी की गई है। हालांकि कानून बच्चे को मां (सेक्स वर्कर) से अलग करने का आदेश नहीं देता है, लेकिन यह माना जाता है कि अगर कोई बच्चा वेश्यालय में किसी व्यक्ति के साथ पाया जाता है तो तस्करी की गई है। इसके अलावा, अगर किसी बच्चे या नाबालिग को वेश्यालय से छुड़ाया जाता है, तो मजिस्ट्रेट उसे किशोर न्याय अधिनियम के तहत मान्यता प्राप्त किसी भी बाल देखभाल संस्थान में रखने का आदेश दे सकता है। इससे पहले, ‘गौरव जैन बनाम भारत संघ’ (1997) में, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया गया कि वेश्याओं के बच्चों को वेश्यालय के अवांछनीय परिवेश में रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और सुधार गृहों को उनके लिए सुलभ बनाया जाना चाहिए। इसलिए, बच्चे के कल्याण को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय के निर्देश को समायोजित करने के लिए एक उपयुक्त संशोधन किया जा सकता है।
चौथी सिफारिश में सरकार को सेक्स वर्क से संबंधित कानूनों में सुधारों या निर्णय लेने की प्रक्रिया में सेक्स वर्कर्स या उनके प्रतिनिधियों को शामिल करने के लिये निर्देष दिये हैं। चूंकि इस पूरे अभ्यास का उद्देश्य यौनकर्मियों का पुनर्वास करना और उनके रहने की स्थिति में सुधार करना है, निर्णय लेने में उनकी भागीदारी निश्चित रूप से उन्हें बेहतर तालमेल के साथ लागू करने योग्य बनाएगी।
कहीं भी यौन शोषण या दुव्र्यवहार की अनुमति क्यों दें?
उल्लेखनीय है कि अधिसूचित क्षेत्रों के बाहर या सार्वजनिक धार्मिक पूजा, शैक्षणिक संस्थान, अस्पताल आदि के किसी भी स्थान से दो सौ मीटर की दूरी के बाहर वेश्यावृत्ति करना आईटीपीए के तहत दंडनीय नहीं है। विडंबना यह है कि जब वेश्यावृत्ति का आवश्यक घटक व्यावसायिक उद्देश्य के लिए ‘यौन शोषण’ या ‘व्यक्तियों का शोषण’ है, इसे कहीं भी कैसे अनुमति दी जा सकती है? इसलिए, अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के साथ, सरकार के लिए जनहित को ध्यान में रखते हुए वेश्यावृत्ति और यौनकर्मियों के काम के बीच अंतर करना और वेश्यावृत्ति पर प्रतिबंध लगाने और कुछ शर्तों के साथ स्वैच्छिक यौन कार्य की अनुमति देना उचित होगा।
यह विवादित नहीं है कि देह व्यापार में पाई जाने वाली महिलाओं को अपराधियों के बजाय प्रतिकूल सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों की शिकार के रूप में अधिक देखा जाना चाहिए। हालाँकि, सभी कानूनों और नीतियों के साथ, हम एक समाज के रूप में वेश्यावृत्ति को रोकने में भी विफल रहे हैं। इसलिए, सरकार अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उपयोग यौनकर्मियों और आसपास के वातावरण की स्थिति में सुधार, पुनर्वास की सुविधा और लागू कानूनों के साथ विभिन्न अस्पष्टताओं और विसंगतियों को दूर करने और स्पष्टता लाने के लिये अवसर के रूप में कर सकती है।
(नोट- लेखक छत्तीसगढ़ के पूर्व विषेष पुलिस महानिदेशक हैं और व्यक्त विचार उनके निजी हैं)