संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सेना भर्ती में बुनियादी फेरबदल किस रफ्तार से, किस कीमत पर?
18-Jun-2022 1:29 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सेना भर्ती में बुनियादी फेरबदल किस रफ्तार से, किस कीमत पर?

cartoonist mika aaziz

एक बार फिर देश की मोदी सरकार की एक बड़ी महत्वाकांक्षी योजना से बड़ा बवाल उठ खड़ा हुआ है। अग्निपथ योजना के तहत देश के नौजवान फौज में भर्ती होकर अग्निवीर बनने के पहले ही देश के आधा दर्जन राज्यों में प्रदर्शन करते हुए ट्रेन और बस में आग लगाने की वीरता दिखा रहे हैं। यह मामला बड़ा जटिल है, और हम देश की सुरक्षा से जुड़ी हुई इस फौजी नीति में आमूलचूल बदलाव का अतिसरलीकरण करना भी नहीं चाहते। लेकिन अलग-अलग जानकार लोगों की कही हुई, और लिखी हुई जो बातें अब तक सामने आई हैं, वे हैरान करती हैं कि क्या मोदी सरकार सचमुच ही बिना काफी सोच-विचार के ऐसा फैसला ले सकती है? आज देश में दस करोड़ से अधिक बेरोजगार हैं, इनमें फौज में जाने की हसरत रखने वाले करोड़ों नौजवान हैं, इनमें से लाखों ऐसे हैं जो पिछले पांच-दस बरस से इसकी तैयारी कर रहे हैं, और आज उन्हें पता लग रहा है कि उनके लिए खुल रही नौकरी कुल चार बरस की है, और इन चार बरसों के बाद न उन्हें पेंशन रहेगी, न उनको भूतपूर्व सैनिकों को मिलने वाली किसी भी तरह की सहूलियत रहेगी, तो ऐसे बेरोजगार नौजवान आपा खोकर आग लगाते सडक़ों और पटरियों पर हैं।

केन्द्र सरकार की अग्निपथ योजना को लेकर सरकार से बाहर के लोगों के मन में अनगिनत आशंकाएं हैं। इनमें से एक आशंका कांग्रेस पार्टी ने खुलकर सामने रखी हैं कि चार बरस हथियारबंद ट्रेनिंग और काम के बाद जब ये नौजवान एकदम से बेरोजगार होकर पच्चीस बरस की उम्र में फिर काम तलाशेंगे, तो हथियारों की उनकी ट्रेनिंग उन्हें गलत रास्ते पर भी ले जा सकती है। यह आशंका कांग्रेस से परे भी बहुत से लोगों ने जाहिर की है, और दुनिया के कई दूसरे देशों का ऐसा तजुर्बा भी है कि सेना से निकले हुए ऐसे ठेके के सैनिक बिना किसी सरकारी सहूलियत और बंदिश के निजी कारोबारी सैनिक बन जाते हैं, और कहीं वे बड़ी कंपनियों के लिए दूसरे देशों में हथियारबंद काम करते हैं, तो कहीं किसी देश में जंग में भाड़े पर काम करते हैं। रूस की ऐसी ही एक निजी सेना के लोग इन दिनों यूक्रेन में काम कर रहे हैं, और भाड़े पर कत्ल कर रहे हैं, और वागनर ग्रुप नाम की यह प्राइवेट मिलिट्री पहले सीरिया में भी काम कर चुकी है।
 
कुछ लोगों की यह खुली आशंका है कि आज हिन्दुस्तान में निजी कंपनियां जितनी विकराल होती जा रही हैं, उन्हें अगले बरसों में अपने होने वाले और अधिक विस्तार की हिफाजत के लिए निजी सेना की जरूरत पड़ेगी, और प्राइवेट सिक्यूरिटी के नाम पर उन्हें ऐसे हथियार-प्रशिक्षित लोग लगेंगे, और चार बरस में हिन्दुस्तानी फौज से रिटायर होने वाले ऐसे लोग ऐसी निजी सुरक्षा वर्दियों के लिए तैयार रहेंगे। लोगों ने इस सिलसिले में देश की एक सबसे बड़ी कंपनी की निजी सिक्यूरिटी एजेंसी का नाम भी गिना दिया है कि शायद उसी की भर्ती के लिए हिन्दुस्तानी फौज के रास्ते यह रास्ता निकाला जा रहा है।

एक दूसरी आशंका जो बहुत बड़ी है वह देश के एक रिटायर फौजी जनरल ने गिनाई है, और कुछ गैरफौजी जानकार लोगों ने भी। उनका कहना है कि अग्निपथ के रास्ते अग्निवीरों की नियुक्ति में देश के किसी इलाके के लिए कोई कोटा नहीं रहेगा, किसी तबके का कोई आरक्षण नहीं रहेगा, और भारतीय सेना में हमेशा से चली आ रही लड़ाकू और योद्धा जातियों के आधार पर बनी हुई रेजिमेंट नहीं रहेंगी। पूरे देश से जब एक साथ सेलेक्शन की जब एक लिस्ट बनेगी, तो यह भी मुमकिन है कि उसके अधिकतर लोग दो-चार राज्यों के ही हों। और फौज की इस तरह बदलती हुई शक्ल से राष्ट्रीय एकता पर किस तरह का असर पड़ेगा, इसका अंदाज लगाना अभी नामुमकिन है। लेकिन देश के अलग-अलग हिस्सों से फौज में भर्ती के लिए जो कोटा रखा जाता था, वह इस अग्निपथ-अग्निवीर में खत्म कर दिया गया है, और फौज के बड़े जानकार लोग इसे एक बड़ा खतरा मान रहे हैं। इस देश की राष्ट्रीय एकता की इस तरह की अनदेखी बहुत लंबे समय में जाकर भारी पड़ सकती हैं क्योंकि हिन्दुस्तानी फौज आज धर्म और साम्प्रदायिकता से परे, जाति और क्षेत्रीयता से परे, राष्ट्रीय एकता की एक बड़ी मिसाल है, जिसका कि बिगडऩा शुरू होगा, तो एक-दो पीढ़ी बाद उसका नुकसान और खतरा पता चलेगा।

आज हिन्दुस्तानी फौज में जाकर देश के लिए जान कुर्बान करने का जज्बा सस्ते में नहीं आता है। सैनिकों को यह मालूम रहता है कि उनकी नौकरी के बाद इस देश की सरकार उनके परिवार को पेंशन, इलाज, रियायती सामान जैसी अनगिनत सहूलियतें देगी, उनके रिटायरमेंट के बाद उनके पुनर्वास के लिए तरह-तरह की योजनाएं रहेंगी, और उनके परिवार का भविष्य बुनियादी जरूरतों के लिए हिफाजत से रहेगा। आज चार बरस के अग्निवीर पांचवें बरस में किसी कंपनी के सिक्यूरिटी गार्ड बन जाएं तो बहुत रहेगा, न उनके हाथ पेंशन रहेगी, न इलाज, न बच्चों की पढ़ाई, न और कुछ। और इन्हीं चार बरसों में देश के लिए कुर्बान होने का मौका आने पर उनसे कुर्बानी की उम्मीद भी की जाएगी। मतलब यह कि वे अपनी जवानी के बेहतरीन बरस देश पर कुर्बान होने को तैयार रहें, खतरा उठाएं, और चार बरस बाद रिटायर होकर किसी कारखाने के गार्ड बन जाएं, या एटीएम की चौकीदारी करें। इनमें से कोई रोजगार खराब नहीं है, लेकिन ऐसे रोजगार के लिए कोई देश पर कुर्बानी का जज्बा जुटा पाएंगे, यह उम्मीद करना कुछ ज्यादती होगी।

इस योजना की घोषणा के दो दिन के भीतर, और दो दर्जन आगजनी के बाद इसमें भर्ती की उम्र में दो बरस की ढील घोषित की गई है। हैरानी की बात यह है कि मोदी मंत्रिमंडल में आज मंत्री, और रिटायर्ड थलसेनाध्यक्ष जनरल वी.के. सिंह ने मीडिया के वीडियो कैमरे के सामने यह बात कही कि उन्हें इस योजना के बारे में कुछ नहीं पता है, वे इसे तैयार करने वाले लोगों में नहीं थे, उन्हें इसके बारे में मालूम नहीं है। अब अगर केन्द्रीय मंत्रिमंडल के इतने बड़े एक भूतपूर्व फौजी से ही इस बारे में कोई चर्चा नहीं हुई है, और जैसा कि सारे जानकार लोग बता रहे हैं कि फौजी भर्ती में आमूलचूल फेरबदल का कोई पायलट प्रोजेक्ट भी नहीं बना, तो ऐसा लगता है कि यह नोटबंदी, जीएसटी, कृषि कानून, नागरिकता कानून सरीखा ही एक और बिना तैयारी का फैसला है जिसमें मौजूदा विशेषज्ञों की राय भी नहीं ली गई है। यह सिलसिला इस देश की इतनी पुरानी फौज के लिए भी ठीक नहीं है, और उसी वजह से वह देश की हिफाजत के लिए भी ठीक नहीं है। संसद में बहुमत वाली सरकारें हर किस्म का फैसला लेने की ताकत रखती हैं, लेकिन जब सरकारें कई फैसले महज इसलिए लेने लगती हैं कि वे उन्हें लेने की ताकत रखती हैं, तो ये फैसले देश के खिलाफ भी हो सकते हैं, और सरकारों के खुद के खिलाफ भी।

आज करोड़ों बेरोजगारों के देश में दस लाख नई नौकरियों की उम्मीद से जश्न का माहौल रहना था, लेकिन आज केन्द्र सरकार के भागीदारों से परे कोई भी इसका हिमायती नहीं दिख रहा है। एक रिटायर्ड मेजर जनरल जी.डी. बक्शी जो कि आए दिन टीवी पर आग उगलते दिखते हैं, और मोदी सरकार के एक बड़े प्रवक्ता की तरह काम करते हैं, उन्होंने कहा है कि अग्निपथ स्कीम के बाद पीढिय़ों से फौज में जा रहे लोगों का सामाजिक ताना-बाना बिखर जाएगा। उन्होंने साफ कहा है कि चार साल में एक साल तो छुट्टी में मेडिकल में ही चला जाएगा, तीन साल में जवान मोर्चे पर क्या जंग लड़ेगा? चार साल के बाद जब सैनिक लौटेगा, और उसे काम नहीं मिलेगा तो वह मुजरिम ही बनेगा। उन्होंने कहा कि इससे भारतीय सेना का रेजिमेंटल सिस्टम ध्वस्त हो जाएगा।

हम अभी अग्निपथ योजना से फौज को होने वाले नफे और नुकसान पर अपनी तरफ से कोई नतीजा नहीं निकाल रहे हैं, लेकिन जानकार लोगों की कही बातों से जो नतीजे निकल रहे हैं, उनमें से कुछ बातों को सामने रख रहे हैं। देश को इस बारे में और सोचने की जरूरत है, और सरकार को इस फैसले को स्थगित रखना चाहिए, यह देश को एक अलग तरीके से धीरे-धीरे विभाजित करने वाला फैसला हो सकता है, और कई तरह से खतरे में डालने वाला फैसला भी। आज इसे लेकर देश भर में जो उपद्रव चल रहा है, उसमें बेरोजगार नौजवानों से शांत रहने की हमारी अपील का क्या कोई मतलब होगा, जब देश के प्रधानमंत्री ही किसी भी हिंसक उपद्रव पर शांत रहने की अपील नहीं कर पा रहे हैं?
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