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बांग्लादेश की पीएम शेख़ हसीना ने कहा- ड्रग्स और महिला तस्करी में शामिल हैं कई रोहिंग्या मुसलमान
20-Jun-2022 8:29 PM
बांग्लादेश की पीएम शेख़ हसीना ने कहा- ड्रग्स और महिला तस्करी में शामिल हैं कई रोहिंग्या मुसलमान

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने कहा है कि रोहिंग्या मुसलमान उनके देश में सामाजिक समस्याएं पैदा कर रहे हैं. उन्होंने ये भी कहा कि बांग्लादेश में शरणार्थी बनकर रह रहे अधिकांश रोहिंग्या मुसलमान ड्रग और महिला तस्करी जैसे अपराधों में शामिल हैं.

म्यांमार के रखाइन प्रांत में साल 2017 में रोहिंग्या मुस्लिमों पर हुई कार्रवाई के बाद इस समुदाय के लाख़ों लोगों ने सीमा पार कर के बांग्लादेश में शरण ले ली थी.

पीएम शेख़ हसीना ने हाल ही में बांग्लादेश के लिए नियुक्त हुईं कनाडाई उच्चायुक्त लिली निकोल्स से संसद भवन कार्यालय में मुलाक़ात के दौरान ये बयान दिया.

बांग्लादेशी अख़बार द डेली स्टार के अनुसार प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने कनाडाई अधिकारी से कहा कि बांग्लादेश में रह रहे करीब 11 लाख़ रोहिंग्या मुसलमान लंबे समय के लिए समस्याएं पैदा कर रहे हैं.

रोहिंग्याओं को बताया बोझ
द डेली स्टार की ख़बर के अनुसार पीएम शेख़ हसीना ने सवालिया अंदाज़ में कहा, "बांग्लादेश कितने समय तक इतना बड़ा बोझ सह पाएगा?"

उन्होंने ये भी कहा कि बांग्लादेश सरकार ने करीब एक लाख रोहिंग्याओं को भसानचर में अस्थायी शरण दी है, जहां बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हैं.

शेख़ हसीना की इस चिंता पर कनाडाई राजदूत ने उन्हें सहयोग का आश्वासन दिया. उन्होंने ये भी कहा कि कनाडा रोहिंग्याओं के लिए चैरिटी के ज़रिए अतिरिक्त फंड का इंतज़ाम कर रहा है.

दूसरी ओर रविवार को ही हज़ारों रोहिंग्याओं ने कॉक्स बाज़ार में ही शांतिपूर्ण रैली निकालकर अपने देश म्यांमार वापस जाने की मांग की.

रोहिंग्याओं ने रखी वतन वापसी की मांग
हाथों में पोस्टर और तख्तियां लिए खड़े इन रोहिंग्या प्रदर्शनकारियों की सबसे बड़ी मांग यही थी कि उन्हें वापस अपने घर जाना है.

इन प्रदर्शनकारियों का कहना था कि दशकों से ये लोग दूसरे देश में रहने को मजबूर हैं लेकिन अब कितना और?

कॉक्स बाज़ार के एक रिफ्यूजी कैंप में रहने वाले मोहम्मद फ़ारूक ने बीबीसी से कहा, "हमारी सबसे बड़ी मांग ये है कि हम अपने देश लौट जाएं. हम म्यांमार के नागरिक के तौर पर पहचान चाहते हैं. हम वहां नागरिकों की तरह रहना चाहते हैं. लेकिन बिना सुरक्षा के हम वहां जा नहीं सकते."

उन्होंने कहा, "हम अब भी वापस जाने से डरते हैं. इसलिए हमें अपने ही देश में गुज़ारा करने के लिए सुरक्षा व्यवस्था की ज़रूरत है. संयुक्त राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय समुदाय और म्यांमार को ये सब सुनिश्चित करने के लिए ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए."

पुलिस के अनुसार, इस प्रदर्शन में हज़ारों रोहिंग्या शरणार्थियों ने हिस्सा लिया.

मोहम्मद फ़ारूक ने कहा, "कोई भी अब इन कैंपों में नहीं रहना चाहता. हम में से बहुत से लोग अपने देश में संपन्न परिवार से थे. मैं यूनिवर्सिटी में पढ़ता था."

कॉक्स बाज़ार के शरणार्थी कैंप में रहने वाले मोहम्मद नूर ने कहा कि इस रैली का मुख्य मकसद रोहिंग्या शरणार्थियों के मसले पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचना था.

उन्होंने कहा, "साल 2017 से अब पाँच साल बीत चुके हैं और ऐसा लगता है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय, संयुक्त राष्ट्र ने हमें भुला दिया है. हमें वापस देश भेजने के लिए जो वादे उन्होंने किए थे, शायद भुला दिए गए हैं."

"हमें लगता है कि अगर हम ऐसे ही रहते रहे तो दुनिया हमारे लिए कुछ भी नहीं करेगी. हमारे बच्चों के लिए यहाँ पढ़ना मुश्किल है, यहाँ आज़ाद घूमना-फिरना मुश्किल है. कब तक हम ऐसे ही जीते रहेंगे?"

मोहम्मद नूर ने कहा, "बांग्लादेश ने बहुत लंबे समय तक मानवता दिखाई लेकिन अब वो और कितनी मानवता दिखाएगा."

ये प्रदर्शन अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी दिवस से एक दिन पहले आयोजित किया गया. इससे जुड़े सवाल पर मोहम्मद नूर ने कहा, "रोहिंग्या का रिफ्यूजी डे से कोई लेना-देना नहीं. हमें शरणार्थी के तौर पर भी पहचान नहीं मिली है."

रोहिंग्याओं की मौजूदा स्थिति
ऐसी खबरें आईं कि रोहिंग्या मुसलमानों की वतन वापसी को लेकर म्यांमार और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय वार्ता हो रही है लेकिन हकीकत में ये मुद्दा लंबित है.

साल 2017 में अत्याचार झेलने की वजह से म्यांमार से बांग्लादेश भागने वाले रोहिंग्याओं का मुद्दा शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने ज़ोर-शोर से उठाया लेकिन अब उनकी आवाज़ कोई नहीं सुन रहा.

अलग-अलग एजेंसियों से रोहिंग्याओं को मिलने वाली फंडिंग भी बंद हो गई है.

बांग्लादेश ही अकेला ऐसा देश है जिसने रोहिंग्याओं को शरण दी है और करीब 12 लाख रोहिंग्या अब उसके लिए बोझ बनते जा रहे हैं.

म्यांमार और बांग्लादेश के बीच रोहिंग्याओं की वतन वापसी को लेकर एक एमओयू पर भी हस्ताक्षर हुए लेकिन इसके बावजूद म्यांमार की सरकार ने इस समुदाय को सुरक्षा देने के लिए किए अपने कई वादों पर अब तक कोई एक्शन नहीं लिया है.

बल्कि इसके उलट म्यांमार में तख्तापलट के बाद सेना के शासन में रोहिंग्याओं को देश वापस लाने का मुद्दा गौण हो गया है.

सरकार के समर्थन से रैली?
ज़िला पुलिस का कहना है कि रोहिंग्याओं का विरोध प्रदर्शन अचानक आयोजित किया गया था.

लेकिन कैंप में रहने वाले एक व्यक्ति ने पहचान न बताने की शर्त पर बीबीसी से कहा कि उन्होंने ये रैली सरकार के समर्थन से आयोजित की थी.

उन्होंने बताया, "कैंप में किसी भी तरह की रैली करने पर रोक है. सरकार ने अब तक कभी भी इसकी इजाज़त नहीं दी थी लेकिन इस बार हमसे कहा गया कि हम प्रदर्शन के तौर पर नहीं बल्कि कैंपेन के तौर पर रैली करें. हम उस रैली के लिए इकट्ठा हो सकते थे. रैली के लिए हमारे बैनर और पोस्टर भी बनाए गए."

कैंप में कानून-व्यवस्था के कमांडर मोहम्मद नेमुल हक़ ने कहा, "ये कैंपेन नहीं था. ये एक रैली थी. वो अपने देश वापस लौटना चाहते हैं. अगर वो किसी मुद्दे पर प्रदर्शन करते हैं, तो उन्हें इसके लिए मंज़ूरी लेनी होगी." 

25 अगस्त, 2019 को रोहिंग्याओं के म्यांमार से बांग्लादेश आने की दो साल पूरे होने के बाद हुए प्रदर्शन में करीब 20 हज़ार रोहिंग्या मुस्लिमों ने प्रदर्शन किया था. उसके बाद से अब तक इतने बड़े स्तर पर कोई प्रदर्शन नहीं हुआ. (bbc.com)

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