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अच्छे-खासे योग को बाजारू बना डाला है
21-Jun-2022 6:22 PM
अच्छे-खासे योग को बाजारू बना डाला है

-चैतन्य नागर

करीब चालीस अरब डॉलर का है योग उद्योग। योग से मिली उर्जा का उपयोग पूंजीवादी अच्छी तरह करते हैं। योग से कर्मचारी ज्यादा उर्जावान महसूस करेंगे और ज्यादा काम करने में सक्षम होंगें। काम से होने वाले तनाव को भी योग कम करेगा। कम तनाव यानी ज्यादा लगन से काम करने की क्षमता। अमेरिका में ध्यान और योगाभ्यास कॉर्पोरेट संस्कृति का जरूरी हिस्सा बनते जा रहे हैं। यह संस्कृति कहती है कि बड़ी कंपनियों में काम करने वालों का ‘ख्याल’ रखना जरूरी है। उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करना बहुत ही जरूरी है। सतही तौर पर देखने पर यह बात ठीक लगती है, पर इसका वास्तविक उद्देश्य तो यही है कि कर्मचारी अच्छी मशीन में तब्दील हो सकें और बगैर किसी गिले-शिकवे के फिट रहकर काम कर सकें। मन शांत रहें उनके, तनाव से दूर रहें, और ‘मोह माया’ से दूर बस अपने काम पर एकाग्रचित्त रहें।

भोग के लिए भी योग का इस्तेमाल हो रहा है। योग के जरिये सेक्स का ज्यादा आनंद उठायें, अपने पार्टनर को ज्यादा खुश रखें, इस तरह के फायदे योग को ज्यादा लुभावना बनाते हैं। योग को सेक्स के साथ जोडक़र उसे एक बढिय़ा बिकाऊ बेस्टसेलर सामान में तब्दील कर दिया गया है और यह खास किस्म की दुकान खूब चल निकली है। ओशो इस कला में माहिर थे और ‘सम्भोग से समाधि तक’ नाम की पुस्तक लिख कर उन्होंने योग और भोग की मिली जुली रेसिपी पेश करके दुनिया में एक विस्फोट-सा किया था। 

योग को लेकर भारत की एक बड़ी ही गलत छवि फैलने का खतरा है। भारत तो एक आध्यात्मिक देश के रूप में लोग पहचानते हैं, जबकि सच्चाई यह है अक्सर जब एक आम विदेशी पर्यटक भारत आता है तो उसे कुछ और ही देखने को मिलता है। हर तीर्थ स्थान पर ‘योगा’ के नाम पर विदेशियों को मूडऩे वाले जोगी आपको दिखेंगे जो तथाकथित ध्यान के तरीके सिखा कर उन्हें बेवकूफ बनाते हैं। तीर्थ स्थानों पर ऐसे कई ठग और ठगे गए पर्यटक मिलेंगे। 

योग कोई सरकारी संस्कार नहीं। असंख्य साधकों-मनीषियों ने सदियों के शोध और अभ्यास से इसे स्थापित किया है। सबसे बड़ी बात यह कि योग का कोई अंतिम या रूढ़ रूप नहीं है। वह अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग रूपों में विकसित हुआ है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इसके प्रसारकों का आग्रह तत्व पर था, रूप पर नहीं। लेकिन अभी जो कुछ किया जा रहा है, उसके बाद योग की अविरल धारा अपने स्वाभाविक स्वरूप में बहती रहेगी, इसमें संदेह है। जिन्होंने वास्तव में इस क्षेत्र में गंभीर काम किया वे आम तौर पर गुमनामी में ही रहे। इनमे से एक थे दक्षिण भारत के योग गुरु आयंगर जिनको शायद ही किसी ने कभी टीवी पर देखा हो। अब वह नहीं रहे पर उनकी योग पर लिखी पुस्तकें ‘लाइट ऑन योग’ और ‘लाइट ऑन प्राणायम’ योग की दुनिया में बहुत ही ऊंचा स्थान रखती हैं। 

योग के बारे में यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि जब योगाभ्यास और मानव देह पर उसके अच्छे प्रभावों की बात शुरू हुई, उस समय वातावरण कुछ और ही था। प्रदूषण नहीं था, हवा-पानी स्वच्छ थे और देह इतनी असंवेदनशील नहीं हुई थी। अब तो हर सांस के साथ कितना ज़हर अन्दर जा रहा है, इसका कोई हिसाब ही नहीं। ख़ास कर शहरों में। इस जहरीली हवा में कोई योग-प्राणायाम करे तो फेफड़ों का क्या हाल होगा यह फेफड़े ही जानेंगे। योग पर इतनी तरह के लोग, इतने तरीकों से टूट पड़े हैं कि कुल मिलाकर जीवन की समग्र समझ को बचाने के लिए विकसित की गई एक कला धीरे-धीरे एक बेस्टसेलिंग आइटम में तब्दील होती जा रही है। एक अच्छी खासी विधि को हम लोगों ने बाजारू बना डाला है।

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