संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अग्निपथ पर सरकार अटल, अब जनता के बीच से ही आवाज उठे
23-Jun-2022 5:29 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अग्निपथ पर सरकार अटल, अब जनता के बीच से ही आवाज उठे

परमवीर चक्र विजेता और सियाचीन के हीरो, कैप्टन बानासिंह

हिन्दुस्तान में फौज एक बड़ा मुद्दा है। हर बरस 25-50 हजार लोगों को नौकरी देने की ताकत से परे भी बहुत सी बातें हैं जो हिन्दुस्तान में फौज की अहमियत बताती हैं। इनमें से एक तो यह है कि यह एक साथ दो ऐसे देशों से घिरा हुआ है जिनसे हिन्दुस्तान के रिश्ते दुश्मनी के माने जाते हैं। दूसरी बात यह कि इन दोनों के आपसी रिश्ते दुनिया में सबसे अधिक मीठे रिश्तों वाले देशों सरीखे हैं। और जब इन दोनों से एक साथ हिन्दुस्तान की तनातनी चल रही है, तो इस मुल्क की फौज को इन दोनों से एक साथ जूझने के लिए तैयार रहना चाहिए। आज इस फौज को लेकर जितने तरह के सवाल उठ रहे हैं, वे ऐसी किसी तैयारी से बिल्कुल परे के हैं, और फौज पर आज की तारीख में लदे हुए पेंशन के बोझ को आगे चलकर घटाने की नीयत के हैं। ऐसा माना जा रहा है कि अग्निपथ नाम की नई योजना सरकार की फौजी योजना नहीं है, वह एक वित्तीय योजना है कि सस्ते में सैनिक कैसे जुटाए जा सकते हैं, और उनका बोझ फौज पर डालने से कैसे बचा जा सकता है। किफायत बुरी बात नहीं है, लेकिन जिस अंदाज में यह किफायत की जा रही है, वह अंदाज बड़ा अटपटा है, और लोगों के मन में ऐसे शक खड़े कर रहा है जिनके बारे में बहुत पहले किसी ने कहा था कि शक का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं है। आज की मौजूदा सरकार के पास तो जनता के बीच खड़े हो गए शक का इलाज बिल्कुल भी नहीं है।

देश के फौजी और प्रतिरक्षा के दूसरे मामलों के जानकार लोगों का कहना है कि अग्निपथ नाम की यह योजना इस रहस्यमय तरीके से रातों-रात सामने रख दी गई कि इस पर देश में कोई लोकतांत्रिक बहस भी नहीं हो पाई, लोगों से राय भी नहीं ली जा सकी। और इसमें ऐसी किसी फौजी गोपनीयता की बात भी नहीं थी कि परमाणु विस्फोट करने के पहले कैसे उस राज को उजागर किया जाए। आज अग्निपथ का जितना विरोध हो रहा है, और उसकी जितनी आलोचना हो रही है, और उसे बचाने के लिए सरकार को जिस तरह फौजी वर्दियों को सामने बिठाकर उसका बचाव करना पड़ रहा है, उन सबसे सरकार की साख अच्छी नहीं हो रही है। इस पर आज लिखने की एक ताजा वजह यह है कि देश के आज मौजूद एकमात्र परमवीर चक्र विजेता और सियाचीन के हीरो, कैप्टन बानासिंह ने एक अखबार से बातचीत में खुलकर कहा है कि अग्निपथ की वजह से भारी कीमत चुकानी पड़ेगी, और ये योजना सेना को बर्बाद कर देगी, और पाकिस्तान चीन को फायदा पहुंचाएगी। बानासिंह 73 बरस की उम्र में सर्वोच्च फौजी सम्मान के साथ रिटायर्ड जिंदगी जी रहे हैं, और उन्होंने कहा कि जिस तरह अग्निपथ योजना सब पर थोपी गई है, वह तानाशाही के समान है। उन्होंने कहा कि सैनिक बनना खेल नहीं है, इसके लिए सालों की ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है, और महज छह महीने में कैसे किसी की ट्रेनिंग हो सकती है? उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने इस योजना को लाने का फैसला किया, उन्हें सशस्त्र बलों के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

किसी एक रिटायर्ड बहादुर फौजी की बात से असहमत होने वाले लोग भी हो सकते हैं, लेकिन फौजी रणनीति के जानकार बहुत से दूसरे लोगों का यह मानना है कि अग्निपथ और अग्निवीर का यह सिलसिला लोगों पर थोप दिया गया है, और चूंकि सरकार ने एक बार यह फैसला ले लिया है, तो अब उसे किसी भी कीमत पर लोगों पर लादा जा रहा है। जिस तरह नोटबंदी का फैसला लेकर, उसे लोगों पर लादने के लिए लगातार उसमें बदलाव किए गए थे, जिस तरह लॉकडाउन और टीकाकरण के फैसले लेकर फिर उन्हें लागू करवाने के लिए लगातार फेरबदल किए गए थे, जिस तरह जीएसटी को हड़बड़ी में आधी रात की आजादी की तरह का जलसा संसद में करके उसे लागू किया गया था, और उसके बाद उसमें सैकड़ों फेरबदल किए गए, ठीक उसी तरह दो दिनों के भीतर ही अग्निपथ के साथ भी हो रहा है, और सडक़ों पर आगजनी को देख-देखकर सरकार तरह-तरह के रास्ते निकालते दिख रही है कि चार बरस में रिटायर होने वाले अग्निवीरों को कहां-कहां नौकरी दी जा सकेगी। एक-एक करके भाजपा राज्य इसकी घोषणा कर रहे हैं, और उन राज्यों का नाम लिए बिना देश के सबसे बड़े फौजी अफसर खौल रही नौजवान पीढ़ी को गैरफौजी बातें समझाने में लगे हुए हैं। बिना किसी अपवाद के तमाम विश्लेषक इस बात को लेकर भी सरकार की आलोचना कर रहे हैं कि सरकारी और राजनीतिक बातों को सार्वजनिक रूप से समझाने के लिए फौज का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। और तो और, तीनों सेनाओं के सबसे बड़े अफसरों की संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में वर्दियों से यह तक कहलवा दिया गया कि अग्निपथ के खिलाफ आगजनी करवाने में कोचिंग सेंटरों का हाथ है जिन्होंने उन्हें फौजी बनवाने के लिए लाखों रूपए ले लिए थे। अब इतनी बात तो अब तक पुलिस भी किसी चार्जशीट में नहीं लिख पाई है, और ऐसी विवादास्पद और साबित न हुई बात फौज के सबसे बड़े अफसरों के मुंह से कहलवाई जा रही है।

यह पूरा सिलसिला एक खतरा खड़ा कर रहा है। फौज में आज सैनिकों का एक ही दर्जा है, उन सबके रिटायर होने की एक ही शर्तें हैं। लेकिन अग्निवीरों के पहुंचने के बाद वहां पर दो अलग-अलग तबके एक ही किस्म के काम में खड़े हो जाएंगे, कुछ तो अपनी नौकरी पूरी करके रिटायर होंगे, और बाकी पूरी जिंदगी पेंशन और सहूलियतें पाएंगे, और दूसरा तबका उन अग्निवीरों का रहेगा जो चार साल बाद वहां से निकाल दिए जाएंगे, और फिर किसी इंडस्ट्री में या भाजपा कार्यालय में चौकीदार का काम करेंगे। इस तरह के चार बरस लोगों की जिंदगी में देश के लिए जान कुर्बान कर देने की कितनी प्रेरणा भर सकेंगे, यह अंदाज लगाना मुश्किल नहीं है। और लोगों को यह शक है कि फौज के भीतर एक ही किस्म के काम के लिए, एक ही किस्म की वर्दी में इन दो किस्म के सैनिकों के बीच भेदभाव वहां के माहौल को खराब भी कर सकता है। दिक्कत यह है कि आज इस देश में सरकार की मर्जी से असहमति रखने को देशद्रोह करार दिया जा रहा है, और योग के नाम पर देश का एक सबसे बड़ा कारोबार खड़ा कर देने वाले रामदेव ने दो दिन पहले ही अग्निपथ के विरोधियों को देशद्रोही करार दिया है।

चूंकि सरकार अपनी इस योजना को हर कीमत पर पूरी तरह लागू करने पर आमादा है, इसलिए आज इस पर चर्चा की जरूरत फिर लग रही है। लोगों के अलग-अलग मंचों को इस पर चर्चा करनी चाहिए, क्योंकि हमने मोदी सरकार के तमाम बड़े फैसलों को लागू होने के बाद जनता के दबाव में सुधरते भी देखा है, और किसान कानूनों की तरह वापस होते भी देखा है। कई फैसलों को बिना लागू हुए ताक पर रखे जाते भी देखा है। इसलिए चार बरस के ठेके पर नौजवानों को शहादत के जज्बे के लिए तैयार करने की सरकार की जिद पर लोगों को शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक विरोध करना चाहिए, हो सकता है कि सरकार को खुद समझ में आए कि उसने जिद में गलत फैसला ले लिया है। यह देश मौजूदा सरकार का ही नहीं है, यह देश तमाम लोगों का है, और इसे सरकार के फैसलों पर सोचना चाहिए ताकि आने वाली पीढिय़ां उसे न भुगतें।
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