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अमेरिका में गर्भपात पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से हड़कंप, भारत में क्या है क़ानून
25-Jun-2022 8:33 PM
अमेरिका में गर्भपात पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से हड़कंप, भारत में क्या है क़ानून

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फ़ैसले में गर्भपात को क़ानूनी तौर पर मंज़ूरी देने वाले पांच दशक पुराने फ़ैसले को पलट दिया है जिसके बाद देश के अलग-अलग शहरों में प्रदर्शन हो रहे हैं.

इसके बाद अब महिलाओं के लिए गर्भपात का हक़ क़ानूनी रहेगा या नहीं इसे लेकर अमेरिका के अलग-अलग राज्य अपने-अपने अलग नियम बना सकते हैं.

माना जा रहा है कि इसके बाद आधे से अधिक अमेरिकी राज्य गर्भपात क़ानून को लेकर नए प्रतिबंध लागू कर सकते हैं.

13 राज्य पहले ही ऐसे क़ानून पारित कर चुके हैं जो गर्भपात को ग़ैरक़ानूनी करार देते हैं, ये क़ानून सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद लागू हो जाएंगे.

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को 50 साल पुराने रो बनाम वेड मामले में आए फ़ैसले को पलट दिया है जिसके ज़रिए गर्भपात कराने को क़ानूनी करार दिया गया था और कहा गया था कि संविधान गर्भवती महिला को गर्भपात से जुड़ा फ़ैसला लेने का हक़ देता है.

अर्कांसस राज्य के लिटिल रॉक में एक अबॉर्शन क्लीनिक में इस फ़ैसले का सीधा असर देखने को मिल रहा है.

राज्य में अदालत का फ़ैसला आते ही यहां त्वरित प्रभाव से गर्भपात पर प्रतिबंध की इजाज़त दे दी गई.

वहाँ जैसे ही अदालत ने अपना फ़ैसला ऑनलाइन पोस्ट किया, अबॉर्शन कराने वालों के लिए क्लीनिक के दरवाज़े बंद कर दिए गए. क्लीनिक स्टाफ़ ने फ़ोन कर-करके महिलाओं को बताया कि कोर्ट के फ़ैसले के बाद उनकी अप्वाइंटमेंट्स कैंसिल कर दी गई है.

एशली हंट एक नर्स हैं. उन्होंने बीबीसी को बताया कि कई बार हम बहुत बुरी ख़बरों को सुनने के लिए तैयारी तो करते हैं लेकिन अंत में जब वो ख़बर हमारे सिर पर पड़ती है तो उसकी चोट बहुत बड़ी होती है.

उन्होंने कहा, "इस फ़ैसले के बाद महिलाओं को कॉल करना और उन्हें बताना कि रो बनाम वेड फैसले को बदल दिया गया है, वाकई दिल दहलाने वाला अनुभव है."

क्लीनिक के बाहर खड़ी हेड एस्कॉर्ट्सकरेन कहती हैं, "मैंने सोचा था कि यह राज्य अभी भी लोगों की परवाह करेगा. अभी भी महिलाओं की परवाह करेगा."

वहीं क्लीनिक के बाहर एंटी-अबॉर्शन प्रदर्शनकारी जश्न मना रहे थे.

प्रदर्शन कर रहे लोग उन लोगों पर चिल्ला रहे थे जो क्लीनिक के बाहर अपनी कार पार्क करने की कोशिश कर रहे थे. वे ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे थे - 'आप नोटिस पर हैं.'

उनमें से एक शख़्स ने कार पार्क कर रहे एक दूसरे शख़्स को कहा- "मेरी आप लोगों को सलाह है कि आप लोग इस जगह से चले जाएं और अन्याय से भरी इस बुरी जगह को जितनी जल्दी हो सके छोड़ दें."

ग़रीब महिलाओं को होगी 'मुश्किल'
अर्कांसस की ही तरह लुइज़ियाना एक अन्य ऐसा राज्य है जहां इस फ़ैसले का सीधा और तुरंत असर देखा गया है.

फ़ैसला सार्वजनिक होने के साथ ही राज्य के तीन अबॉर्शन सेंटर्स में से एक वीमेन्स हेल्थ केयर सेंटर, को तुरंत बंद कर दिया गया और यहां काम करने वाले कर्मचारियों को उनके घर जाने को बोल दिया गया.

इस क्लीनिक के बाहर खड़ी लिंडा कोचेर ने बीबीसी से कहा कि अमीर महिलाओं के लिए कोई समस्या नहीं होगी. वे अबॉर्शन कराने के लिए दूसरे राज्य चली जाएंगी लेकिन ग़रीब महिलाओं को इसका ख़ामियाज़ा उठाना होगा.

हालांकि गर्भपात विरोधी कैंपेन में शामिल पादरी बिल शैंक्स ने कहा कि यह जश्न मनाने का दिन है.

ऐसे में अगर आंकड़ों के संदर्भ में बात करें तो ऐसी संभावना जताई जा रही है कि क़रीब 36 मिलियन (3.6 करोड़) महिलाओं से उनके राज्य में गर्भपात का अधिकार छिन जाएगा. यह आंकड़े एक हेल्थकेयर ऑर्गेनाइज़ेशन प्लान्ड पैरेंटहुड की ओर से जारी किए गए हैं.

इडाहो, टेनेसी और टेक्सस में अगले 30 दिनों में ये प्रतिबंध लागू हो जाएंगे
जिस समय यह फ़ैसला आया बहुत से प्रदर्शनकारी कोर्ट के बाहर मौजूद थे. इस फ़ैसले के आने के बाद अमेरिका के क़रीब 50 से अधिक शहरों में विरोध प्रदर्शन दर्ज किए गए हैं.

अमेरिका में लंबे समय से गर्भपात-विरोधी क़ानून पर बहस जारी है. हाल ही में हुए प्यू सर्वे में पाया गया है कि क़रीब 61 फ़ीसद वयस्क ने कहा कि गर्भपात पूरी तरह से क़ानूनी होना चाहिए या फिर अधिकांश मामलों में क़ानूनी होना चाहिए. जबकि 37 फ़ीसद ने कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए.

एंटी-अबॉर्शन एडवोकेट टेरे हार्डिंग के मुताबिक, हर जीवन को सुरक्षित किए जाने की ज़रूरत है.

उन्होंने कहा कि उन्होंने राष्ट्रपति बाइडन को सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले की निंदा करते हुए सुना. बाइडन ने अपने एक संबोधन में कहा था कि इस फ़ैसले ने महिलाओं के स्वास्थ्य और जीवन को ख़तरे में डाल दिया है.

बाइडन ने कहा था कि इस फ़ैसले से विचारधारा की कट्टरता का एहसास होता है और सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला बेहद दुखद है.

फ़ैसले के बाद अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करेंगे कि राज्य और वहां के स्थानीय अधिकारी गर्भपात के लिए यात्रा करने वाली महिलाओं को रोके नहीं. (उन राज्यों की यात्रा जहां यह क़ानून है)

अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने भी इस पर अपनी टिप्पणी ट्वीट की है.

उन्होंने लिखा है, "अमेरिका में आज दसियों लाख औरतें बिना किसी हेल्थ केयर और रीप्रोडक्टिव हेल्थ केयर के हो गयी हैं. अमेरिका की जनता से उसका संवैधानिक अधिकाार छीन लिया गया है."

इस बीच रो बनाम वेड फ़ैसले के लंबे समय से विरोधी रहे पूर्व उपराष्ट्रपति माइक पेंस ने एंटी-अबॉर्शन कैंपेन में शामिल लोगों से तब तक ना रुकने की अपील की हा जब तक कि जीवन की पवित्रता को हर राज्य में स्वीकार्यता ना मिल जाए.

अमेरिका में 1971 में गर्भपात कराने में नाकाम रही एक महिला की तरफ़ से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई. इसे रो बनाम वेड मामला कहा गया.
इसमें कहा गया कि गर्भधारण और गर्भपात काफ़ैसला महिला का होना चाहिए न कि सरकार का.
दो साल बाद 1973 में कोर्ट ने गर्भपात को क़ानूनी करार दिया और कहा कि संविधान गर्भवती महिला को फ़ैसला लेने का हक़ देता है.
इसके बाद अस्पतालों के लिए महिलाओं को गर्भपात की सुविधा देना बाध्यकारी हो गया.
फ़ैसले ने अमेरिकी महिला को गर्भधारण के पहले तीन महीनों में गर्भपात कराने का क़ानूनी हक़ दिया. हालांकि दूसरे ट्राइमेस्टर यानी चौथे से लेकर छठे महीने में गर्भपात को लेकर पाबंदियां लगाई गईं.
लेकिन अमेरिका के धार्मिक समूहों के लिए ये बड़ा मुद्दा था क्योंकि उनका मानना था कि भ्रूण को जीवन का हक़ है.
इस मुद्दे पर डेमोक्रेटिक पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी के विचार अलग-अलग थे. 1980 तक ये मुद्दा ध्रुवीकरण का कारण बनने लगा.
इसके बाद वहाँ कई राज्यों में गर्भपात पर पाबंदियां लगाने वाले नियम लागू किए, तो कईयों नेमहिलाओं को ये हक़ देना जारी रखा.

कैसे हुआ फ़ैसला
1971 में गर्भपात कराने में नाकाम रही एक महिला की तरफ़ से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई. इसे रो बनाम वेड मामला कहा गया. इसमें गर्भपात की सुविधाओं तक आसान पहुंच की गुहार लगाई गई और कहा गया कि गर्भधारण और गर्भपात का फ़ैसला महिला का होना चाहिए न कि सरकार का.

दो साल बाद 1973 में कोर्ट ने इस मामले मेंअपना फ़ैसला दिया. कोर्ट ने गर्भपात को क़ानूनी करार दिया और कहा कि संविधान गर्भवती महिला को गर्भपात से जुड़ा फ़ैसला लेने का हक़ देता है. इसके बाद अस्पतालों के लिए महिलाओं को गर्भपात की सुविधा देना बाध्यकारी हो गया.

लेकिन इसके बाद मामले ने तूल पकड़ा. धार्मिक समूहों के लिए ये बड़ा मुद्दा था क्योंकि उनका मानना था कि भ्रूण को जीवन का हक़ है. इस मुद्दे पर डेमोक्रेटिक पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी के विचार अलग-अलग थे. 1980 तक ये मुद्दा ध्रुवीकरण का कारण बनने लगा.

इसके बाद के दशक में कई राज्यों में गर्भपात पर पाबंदियां लगाने वाले नियम लागू किए, जबकि कईयों ने महिलाओं को ये हक़ देना जारी रखा.

सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा सत्र में जब डॉब्स बनाम जैक्सन वीमेन्स हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन का मामला सामने आया तब जाकर एकबार फिर गर्भपात को लेकर बहस छिड़ गई.

यह मामला मिसिसिपी का था जिसमें राज्य के क़ानून को (15वें सप्ताह के बाद अबॉर्शन के प्रतिबंध का कानून) चुनौती दी गई ती.

राज्य के पक्ष में फ़ैसला देते हुए कंज़रवेटिव-मेजोरिटी (कंज़रवेटिव-बहुल्य) कोर्ट ने गर्भपात के संवैधानिक अधिकार को प्रभावी ढंग से समाप्त कर दिया.

पांच जज इस फ़ैसले के पक्ष में थे जबकि तीन न्यायाधीश बहुमत के इस फ़ैसले से असहमत थे.

भारत में पिछले साल गर्भपात के बारे में क़ानून में संशोधन किया गया जिसके बाद गर्भपात करवाने के लिए मान्य अवधि को 20 हफ़्ते से बढ़ाकर 24 हफ़्ते कर दिया गया.

स्वास्थ्य और कल्याण मंत्रालय के अनुसार 16 मार्च 2021 भारत में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी (संशोधित) बिल 2020 को राज्यसभा में पास किया गया.

इसमें कहा गया कि गर्भपात के लिए मान्य अवधि विशेष तरह की महिलाओं के लिए बढ़ाई गई है, जिन्हें एमटीपी नियमों में संशोधन के ज़रिए परिभाषित किया जाएगा और इनमें दुष्कर्म पीड़ित, सगे-संबंधियों के साथ यौन संपर्क की पीड़ित और अन्य असुरक्षित महिलाएँ (विकलांग महिलाएँ, नाबालिग) भी शामिल होंगी.

इससे पहले भारत में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी एक्ट , 1971 था, जिसमें संशोधन किए गए हैं.

इस एक्ट में ये प्रावधान था कि अगर किसी महिला का 12 हफ़्ते का गर्भ है, तो वो एक डॉक्टर की सलाह पर गर्भपात करवा सकती है. वहीं 12-20 हफ़्ते में दो डॉक्टरों की सलाह अनिवार्य थी और 20-24 हफ़्ते में गर्भपात की महिला को अनुमति नहीं थी.

लेकिन इस संशोधित बिल में 12 और 12-20 हफ़्ते में एक डॉक्टर की सलाह लेना ज़रूरी बताया गया है.

इसके अलावा अगर भ्रूण 20-24 हफ़्ते का है, तो इसमें कुछ श्रेणी की महिलाओं को दो डॉक्टरों की सलाह लेनी होगी और अगर भ्रूण 24 हफ़्ते से ज़्यादा समय का है, तो मेडिकल सलाह के बाद ही इजाज़त दी जाएगी. (bbc.com)

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