सामान्य ज्ञान
संजय नाम के एक व्यक्ति का उल्लेख महाभारत काल में मिलता है। संजय, महर्षि व्यास के शिष्य था तथा धृतराष्ट्र की राजसभा का सम्मानित सदस्य थे। वे विद्वान गावाल्गण नामक सूत के पुत्र थे। जाति से वे बुनकर थे। वे विनम्र और धार्मिक स्वभाव का था और स्पष्टवादिता के लिए प्रसिद्ध थे।
संजय , धृतराष्ट्र के मंत्री तथा श्रीकृष्ण के परमभक्त थे। धर्म के पक्षपाती थे इसी कारण से धृतराष्ट्र के मंत्री होने पर भी पाण्डवों के प्रति सहानुभुति रखते थे और धृतराष्ट्र और उनके पुत्रों अधर्म से रोकने के लिये कड़े से कड़े वचन कहने में हिचकते नहीं थे। वे राजा को समय-समय पर सलाह देता रहते थे । धृतराष्ट्र को युद्ध का सजीव वर्णन सुनाने के लिए ही व्यास मुनि ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी। श्रीमद् भागवत् गीता का उपदेश जो कृष्ण ने अर्जुन को दिया, वह भी संजय द्वारा ही सुनाया गया। श्री कृष्ण का विराट स्वरुप, जो कि केवल अर्जुन को ही दिखाई दे रहा था, संजय ने दिव्य दृष्टि से देख लिया था। महाभारत युद्ध के पश्चात अनेक वर्षों तक संजय युधिष्ठर के राज्य में रहे। इसके पश्चात धृतराष्ट्र, गांधारी और कुन्ती के साथ सन्यास लेकर वन चले गये और धृतराष्ट्र की मृत्यु के बाद वे हिमालय चले गए।