विचार / लेख

राष्ट्रपति चुनाव और ‘अंतरात्मा की आवाज़..’
20-Jul-2022 6:19 PM
राष्ट्रपति चुनाव और ‘अंतरात्मा की आवाज़..’

-डॉ. राकेश पाठक 

तब इंदिरा गांधी ने ‘कांग्रेस’ के रेड्डी को हरवाकर अपने ‘निर्दलीय’ गिरि को जितवाया था।

 इस घटना के बाद हुआ था कांग्रेस पार्टी में हुआ बड़ा विभाजन

देश के अगले राष्ट्रपति चुनाव के लिए हलचल तेज हो गई है। दोनों तरफ के उम्मीदवार राज्यों की राजधानियों में घूम घूमकर सांसदों, विधायकों से संपर्क कर रहे हैं। एनडीए की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू भोपाल आ रहीं हैं जबकि विपक्ष के साझा उम्मीदवार यशवंत सिन्हा आकर जा चुके हैं।

राष्ट्रपति चुनाव हो और ‘अन्तरात्मा की आवाज’ का जुमला याद न आये ऐसा प्राय: होता नहीं है। वैसे तो राजनीति में ‘अंतरात्मा’ नाम की चिडिय़ा विलुप्त ही मानी जाती है फिर भी...

सिर्फ राजनीति को कोसना ठीक नहीं बाकी भी कहीं नहीं मिलती अंतरात्मा ..!

खैर, बात निकली है तो आइए जानते हैं कि ये ‘अंतरात्मा की आवाज’ का चक्कर क्या है..? आखिर ये आवाज सबसे पहले कब, क्यों, किसने लगाई थी..?

इस चुनाव में ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला फिर भी ये जान लेना समीचीन होगा कि तब क्या क्या हुआ था।

बात सन् 1969 की है। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ जाकिर हुसैन का अचानक इंतकाल हो गया।आज़ादी के बाद यह पहला अवसर था जब किसी राष्ट्रपति का पद पर रहते निधन हुआ था।

उपराष्ट्रपति वराह गिरि वेंकट गिरि कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाये गए। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चाहतीं थीं कि गिरि ही राष्ट्रपति बनें।

उस दौर में कांग्रेस पार्टी में एक सिंडीकेट बन गया था जो इंदिरा को ‘गूंगी गुडिय़ा’ मानकर पटखनी देने की फिराक में था। सिंडीकेट में कामराज, एस के पाटिल, अतुल्य घोष सरीखे खांटी कांग्रेसी दिग्गज थे जो इंदिरा गांधी को अपने इशारों पर चलाना चाहते थे लेकिन इंदिरा अपनी स्वतन्त्र छवि बना रहीं थीं।

पार्टी अध्यक्ष एस निजलिंगप्पा, कामराज, मोरारजी देसाई सहित तमाम दिग्गज इस फेर में थे कि इस चुनाव में इंदिरा को धूल चटा दी जाए। पार्टी ने इंदिरा की मर्जी के खिलाफ नीलम संजीव रेड्डी को उम्मीदवार घोषित कर दिया।

इंदिरा ने लगायी ‘अंतरात्मा’ की आवाज

इंदिरा गांधी ने दुस्साहसिक कदम उठाया और वी वी गिरि को उप राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिलवा कर स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति पद की लड़ाई में उतार दिया।

स्वतंत्र पार्टी, जनसंघ और अन्य विपक्षी दलों ने अपने संयुक्त उम्मीदवार के रूप में चिंतामणि द्वारिकानाथ देशमुख को उतार दिया।

देशमुख नेहरू मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री रहे थे।

इसी मौके पर इंदिरा गांधी ने वो ऐतिहासिक अपील की जो आजतक याद की जा रही है। इंदिरा ने अपील की-‘कांग्रेसजन अपनी अंतरात्मा की आवाज़ पर मतदान करें।’

इंदिरा गांधी ने तब सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों से (गैर कांग्रेसी भी) सीधे संपर्क किया।

16 अगस्त को राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान हुआ और 20 अगस्त 1969 को मतों की गिनती हुई ।

अंतत: इंदिरा गांधी के प्रत्याशी वी वी गिरि चुनाव जीत कर राष्ट्रपति बने और कांग्रेस के घोषित प्रत्याशी नीलम संजीव रेड्डी हार गए। रेड्डी लोकसभा अध्यक्ष और कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष तक रह चुके थे और सिंडिकेट के दम लगाने पर भी खेत रहे।

गिरि राष्ट्रपति बनने से पहले केंद्रीय मंत्री, कई राज्यों के राज्यपाल रहे थे। श्रम मंत्री के रूप में उनका योगदान ऐतिहासिक रहा था। आज भी मजदूरों के हक की कई बातों का श्रेय गिरि को ही जाता है।

वे आयरलैंड में कानून की पढ़ाई करने गए थे और तब के महान क्रांतिकारियों से संपर्क में रहे थे। देश लौट कर गांधीजी के साथ स्वतंत्रतता आंदोलन में कूद गए थे।

कई निर्दलीय उम्मीदवार लड़े थे चुनाव

सन 1967 के इस चुनाव में बहुत से अन्य नेता भी निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में थे।

चुनाव जीत कर राष्ट्रपति बने वी.वी. गिरि तो निर्दलीय थे ही चिंतामणि देशमुख के अलावा प्रतापगढ़ के स्वतंत्रता सेनानी चंद्रदत्त सेनानी, पंजाब की गुरुचरण कौर, बॉम्बे के नेता पीएन राजभोग, चौधरी हरिराम, खूबीराम, कृष्ण कुमार चटर्जी भी मैदान में थे। इनमें से कुछ को तो एक भी वोट नहीं मिला।

कांग्रेस का औपचारिक विभाजन

इस चुनाव का दूरगामी असर हुआ। पहला तो यह कि इंदिरा गांधी ‘गूंगी गुडिय़ा’ की छवि से न केवल मुक्त हो गईं बल्कि सिंडीकेट के दिग्गजों को धूल चटाकर निद्र्र्वंद नेता बन गईं।

दूसरा यह कि कांग्रेस पार्टी विभाजन के कगार पर पहुंच गई। राष्ट्रपति चुनाव के बाद नवंबर 1969 में पार्टी दो फाड़ हो गई।

अपने गठन के लगभग 84 साल बाद कांग्रेस पार्टी में यह बहुत बड़ा औपचारिक विभाजन था।

यद्यपि 1885 में अपनी स्थापना के बाद कांग्रेस में पहला विभाजन 1907 में सूरत अधिवेशन में हुआ था जहां पार्टी नरम दल और गरम दल में बंट गई थी।


जनता काल में राष्ट्रपति बने रेड्डी

1969 में हारने वाले नीलम संजीव रेड्डी के भाग्य में राष्ट्रपति बनना लिखा ही था। आपातकाल के बाद 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी और तब नीलम संजीव रेड्डी निर्विरोध राष्ट्रपति बने। वे निर्विरोध चुने गए एकमात्र राष्ट्रपति थे।

(डॉ राकेश पाठक वरिष्ठ पत्रकार हैं। वर्तमान करमवीर न्यूज के प्रधान संपादक हैं।)
 

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