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श्रीलंकाः सेना ने की प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई, बीबीसी पत्रकार पर हमला
22-Jul-2022 11:55 AM
श्रीलंकाः सेना ने की प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई, बीबीसी पत्रकार पर हमला

-जॉर्ज राइट

श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में सुरक्षाबलों ने प्रदर्शकारियों के मुख्य धरना स्थल पर शुक्रवार तड़के धावा बोला. उन्होंने मुख्य प्रदर्शन-स्थल पर मौजूद तंबुओं को एक-एक कर गिरा दिया.

राष्ट्रपति भवन के भीतर मौजूद प्रदर्शनकारियों को बाहर निकालने के लिए भी दर्जनों की संख्या में पुलिस और कमांडो अंदर घुस गए और लोगों को राष्ट्रपति भवन से बाहर खदेड़ दिया.

इस दौरान बीबीसी के एक वीडियो जर्नलिस्ट को भी पीटा गया. एक सैनिक ने उनसे उनका मोबाइल छीन लिया और उसमें मौजूद वीडियो डिलीट कर दिए.

सेना की यह कार्रवाई रानिल विक्रमसिंघे के राष्ट्रपति बनने के बाद हुई है. जनता के बीच काफी अलोकप्रिय रानिल ने प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की बात की थी.

हालाँकि, कुछ प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे उन्हें एक मौक़ा ज़रूर देंगे.

पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के देश छोड़कर भाग जाने के बाद रानिल राष्ट्रपति चुने गए हैं. इससे पहले उन्हें हाल ही में महिंदा राजपक्षे के इस्तीफ़ा देने के बाद प्रधानमंत्री बनाया गया था.

जब हमने ये सुना कि कोलंबों में पुलिस दल और सुरक्षा बल सरकार-विरोधी प्रदर्शन स्थलों पर, आधी रात के बाद कार्रवाई करने वाले हैं, हम मुख्य प्रदर्शन स्थल पर पहुंच गए. यह जगह कोलंबो में राष्ट्रपति कार्यालय के ठीक सामने है.

थोड़ी ही देर में, भारी लाव-लश्कर के साथ सैकड़ों की संख्या में सैन्य-बल और पुलिस-कमांडो वहां आ पहुंचे. उनके पास दंगा-रोधी उपकरण भी थे. वे दो दिशाओं से उस जगह पर पहुंचे. उनके चेहरे ढके हुए थे.

प्रदर्शन-स्थल पर मौजूद कार्यकर्ताओं ने जब उनकी मौजूदगी को लेकर आपत्ति जताई तो वे और आगे बढ़ने लगे और एकाएक आक्रामक हो गए. उन्होंने प्रदर्शनकारियों को पीछे धकेलना शुरू कर दिया.

कुछ पलों के भीतर ही हमने देखा कि वे फुटपाथ लगे तंबुओं को गिराने लगे. वे काफी आक्रामक थे और वहां लगे तंबुओं को एक-एक करके नष्ट कर रहे थे. सुरक्षाबल की एक टुकड़ी राष्ट्रपति भवन के भीतर चली गई, जहां 9 जुलाई को आम-जनता दाख़िल हो गई थी और जिसने राष्ट्रपति भवन को अपने कब्ज़े में लेकर राजपक्षे को भागने पर मजबूर कर दिया था.

हालांकि इससे पहले ही कार्यकर्ताओं की ओर से यह घोषणा की जा चुकी थी कि शुक्रवार तक सभी प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति भवन से बाहर निकल जाएंगे लेकिन राष्ट्रपति भवन में दाखिल हुई सैन्यबल की ये टुकड़ी अपने रास्ते में आने वाली हर चीज़ को किनारे करती हुई आगे बढ़ रही थी.

कार्यकर्ताओं को पीछे धकेल दिया गया और वे आगे ना बढ़ सकें, इसके लिए स्टील के बैरिकेड्स लगा दिए गए.

जिस समय उस इलाक़े से वापस लौट रहे थे, उस वक़्त एक शख़्स जिसने की साधारण कपड़े पहन रखे थे, उसने मेरे सहयोगी पर चिल्लाते हुए कहा कि वह उसके मोबाइल में मौजूद वीडियोज़ को डिलीट करना चाहता है. उस शख़्स के चारों ओर सैनिक थे. कुछ ही सेकंड्स में वो शख़्स मेरे साथी के पास आया, उसके एक ज़ोर का मुक्का मारा और उसका फ़ोन छीन लिया.

हालांकि मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की कि हम पत्रकार हैं और सिर्फ़ अपना काम कर रहे हैं, उन्होंने मेरी एक बात नहीं सुनी. इसके बाद भी मेरे साथी पर हमला हुआ और हमने इसका कड़ा विरोध किया. बीबीसी के अन्य साथी का माइक भी छीनकर फेक दिया गया.

उन लोगों ने वीडियो डिलीट करने के बाद मोबाइल वापस लौटा दिया. इस दौरान एख दूसरे आर्मी अधिकारी ने आखर हस्तक्षेप किया और हमें जान दिया.

मेरा साथी कांप रहा था लेकिन हम किसी तरह अपने होटल लौट आए जोकि उस जगह से कुछ सौ मीटर की ही दूरी पर है.

बीबीसी ने सेना से और पुलिस से इस हमले पर प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की लेकिन किसी ने भी हमारे फ़ोन-कॉल्स का जवाब नहीं दिया. बीते सप्ताह इस जगह पर आफातकाल की घोषणा की गई थी जोकि अभी भी कायम है.

श्रीलंका में जारी प्रदर्शन एक महीने या हफ़्ते भर पुराने नहीं हैं. इस साल की शुरुआत से ही श्रीलंका में आम लोगों का प्रदर्शन शुरू हो गया था. आर्थिक संकट और रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए तरसते लोग इस साल की शुरुआत में ही सड़कों पर उतर आए थे.

ये प्रदर्शन अप्रैल महीने में इतने उग्र हो गए थे कि आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी थी और अब जुलाई में तो प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति भवन के अंदर ही घुस गए.

देश की मौजूदा स्थिति के लिए एक बड़ा वर्ग राजपक्षे प्रशासन की ग़लत नीतियों को दोषी मानता है. वे विक्रमसिंघे को भी इस समस्या की एक बड़ी वजह मानते हैं. जिस दिन रनिल विक्रमसिंघे राष्ट्रपति चुनाव जीते, उस दिन सड़क पर प्रदर्शन कर रहे लोगों की संख्या बहुत अधिक नहीं थी. कुछ ही प्रदर्शनकारी सड़क पर मौजूद थे.

लेकिन जैसे ही रनिल विक्रमसिंघे ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली, उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि सरकार गिराना या सरकारी भवनों पर क़ब्ज़ा कर लेने का प्रयास करना, लोकतंत्र नहीं है. उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने और गतिविधियों में शामिल लोगों को किसी भी सूरत में बक़्शा नहीं जाएगा और उनसे सख़्ती से निपटा जाएगा.

प्रदर्शन कर रहे लोगों को इस बात की चिंता बिल्कुल थी कि सरकार धीरे-धीरे या फिर एकाएक, विरोध आंदोलनों पर आज नहीं तो कल, कार्रवाई कर सकती है.

श्रीलंकाः कुछ अहम तथ्य
भारत का पड़ोसी देश जो 1948 में ब्रिटेन से आज़ाद हुआ.
श्रीलंका की आबादी 2 करोड़ 20 लाख है, सिंहला आबादी बहुसंख्यक है, तमिल और मुस्लिम अल्पसंख्यक
राजपक्षे परिवार के कई भाई पिछले कई वर्षों से सत्ता में रहे
1983 में तमिल विद्रोही संगठन एलटीटीई और सरकार के बीच गृहयुद्ध छिड़ा
2005 में प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति चुनाव में विजयी रहे
2009 में एलटीटी के साथ लंबा युद्ध समाप्त हुआ, तमिल विद्रोही हारे, महिंदा राजपक्षे नायक बनकर उभरे
तब गोटाबाया राजपक्षे रक्षा मंत्री थे जो 2019 में राष्ट्रपति बने, वे महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई हैं
2022 में कई महीनों के ज़बरदस्त विरोध के बाद पहले महिंदा राजपक्षे ने प्रधानमंत्री पद से और फिर गोटाबाया ने राष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा दिया
रनिल विक्रमसिंघे पहले प्रधानमंत्री और अब राष्ट्रपति बनाए गए, वो 2024 तक पद पर रहेंगे
श्रीलंका में राष्ट्रपति देश, सरकार और सेना प्रमुख होता है
प्रधानमंत्री संसद में सत्ताधारी दल का प्रमुख होता है मगर कई विधायी शक्तियाँ राष्ट्रपति के पास होती हैं

विक्रमसिंघे बतौर नए राष्ट्रपति
नव-नियुक्त राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे का लक्ष्य है कि वे जितनी जल्दी हो सके देश में राजनीतिक स्थिरता बहाल कर सकें.

एकबार राजनीतिक स्थिरता कायम हो जाने के बाद ही देश अपने सबसे बड़े संकट, यानी आर्थिक तंगहाली से निपटने के प्रयासों को आगे बढ़ा सकेगा.

राजनीतिक स्थिरता कायम होने के बाद ही श्रीलंका अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ एक बेल-आउट पैकेज के लिए बातचीत शुरू कर सकेंगा. अनुमान है कि श्रीलंका इसके तहत तीन अरब डॉलर की मांग करेगा.

विक्रमसिंघे का लक्ष्य राजनीतिक स्थिरता बहाल करना है ताकि देश अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ एक बेलआउट पैकेज के लिए बातचीत फिर से शुरू कर सके, जिसका अनुमान लगभग 3 बिलियन डॉलर है.

श्रीलंका में महीनों से सरकार विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं क्योंकि देश अपनी आज़ादी के बाद के सबसे बुरे आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. देश में खाद्यान्न, ईंधन और दूसरी बुनियादी ज़रूरतों की भारी कमी है.

जुलाई के दूसरे सप्ताह में हज़ारोंकी संख्या में प्रदर्शनकारियों ने कोलंबो की सड़कों पर मार्च किया था और राजपक्षे और विक्रमसिंघे से इस्तीफ़ा देने की मांग की थी.

इसके बाद के घटनाक्रम में राजपक्षे 13 जुलाई को तड़के सुबह देश छोड़कर भाग गए. वह पहले मालदीव पहुंचे और उसके बाद सिंगापुर के लिए उड़ान भरी. सिंगापुर पहुंचकर उन्होंने स्पीकर को अपना इस्तीफ़ा मेल कर दिया.

हालांकि विक्रमसिंघे ने इस्तीफ़ा नहीं दिया, उन्होंने शुरू में पेशकश ज़रूर की थी लेकिन राजपक्षे के भाग जाने पर उन्होंने कार्यवाहक राष्ट्रपति का पद स्वीकार कर लिया.

रनिल ने पिछले सप्ताह कार्यवाहक राष्ट्रपति बनने के साथ ही सेना को आदेश दिया था कि पब्लिक-ऑर्डर को बहाल करने के लिए जो बी ज़रूरी हो, वे करें.

छह बार के पूर्व प्रधानमंत्री रह चुके विक्रमसिंघे राष्ट्रपति पद के लिए अपनी दो दावेदारियों में विफल रह चुके हैं.

बीते बुधवार संसदीय प्रकिया के बाद वह देश के राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं.

बुधवार को राष्ट्रपति पद के लिए उनकी जीत का मतलब यह है कि वह नवंबर 2024 तक राष्ट्रपति के शेष कार्यकाल को पूरा करेंगे. (bbc.com)

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